कॉलेज ऑफ हॉर्टिकल्चर के विद्यार्थियों ने चलाया मिट्टी बचाओ अभियान

कृषि झारखंड
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  • मिट्टी को बचाने, एक स्वस्थ समाज और टिकने योग्य धरती बनाने पर जोर

रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय अधीन संचालित कॉलेज ऑफ हॉर्टिकल्चर के विद्यार्थियों ने ईशा फाउंडेशन से प्रेरणा लेकर राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के बैनर तले मिट्टी बचाओ अभियान की शुरुआत शनिवार को की। ऑनलाइन एवं ऑफलाइन मोड में कृषि संकाय के ऑडिटोरियम में आयोजित इस कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने किया।

कुलपति ने कहा कि मिट्टी पृथ्वी और जीवों की जननी है। पिछले 100 वर्षो में पूरे विश्व की करीब 52 प्रतिशत उपजाऊ मिट्टी बहकर समुंद्र में चली गयी है। मिट्टी अवनति से उसमें मौजूद पोषक तत्व भी बहकर चले जाते है। इस समस्या ने वैश्विक तौर पर जैव विविधता, खाद्यान सुरक्षा एवं पृथ्वी के अस्तित्व पर आने वाले संकट से रूबरू कराया है। मिट्टी बचाओ अभियान मानव जीवन को भविष्य के खतरे से बचाने के लिए पूरे वैश्विक समाज की प्राथमिक जरूरत है।

विशिष्ट अतिथि डीन एग्रीकल्चर डॉ एसके पाल ने कहा कि पृथ्वी पर मिट्टी के निर्माण में हजारों वर्ष लगे है। हालांकि इसे हम चंद सेकंड में गवां देते है। मिट्टी की अवनति जैव विविधता के अस्तिव के लिए एवं मानव एवं पशुओं के भोजन संकट का सबसे बड़ा खतरा है। मिट्टी में तीन गुणा कार्बन मौजूद होते है। इसके अपरदन के बाद कार्बन की बर्बादी से पर्यावरण असंतुलन मानव जीवन के लिए नुकसानदायक है। इस विकट समस्या के समाधान के लिए मिट्टी बचाओ अभियान में आम लोगों को आज जागरूक करने एवं जोड़ने की आवश्यकता है।

मृदा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ डीके शाही ने कहा कि मिट्टी के अवनति से मिट्टी की रासायनिक, भौतिक एवं जैविक गुणों पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है। पंजाब एवं हरियाणा में कृषि कार्य में रासायनिक उर्वरकों एवं रासायनिक दवाओं के अंधाधुंध प्रयोग से खेत बंजर एवं मिट्टी विषैली हो गये हैं। झारखंड के किसान स्वभावतः जैविक खेती से जुड़े है। प्रदेश में रासायनिक उर्वरक एवं जैविक व जीवाणु खाद के संतुलित प्रयोग से टिकाऊ खेती बढ़ावा दिया जा सकता है। भावी पीढ़ी की रक्षा के लिए पूरे प्रदेश में मिट्टी बचाओ अभियान चलाने की जरूरत है।

हॉर्टिकल्चर के एसोसिएट डीन डॉ पीबी साहा ने कहा कि दुनिया की 60 प्रतिशत आबादी में किसी न किसी तरह की पोषण की कमी है। मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता इसकी मुख्य वजह है। भोजन में जरूरी पोषक तत्वों की कमी है, क्योंकि हमारी मिट्टी की अवनति हो रही है। उसमें जैविक तत्वों की पर्याप्त मात्रा नहीं है। अगर हम अपनी मिट्टी को स्वस्थ नहीं रखते है तो आने वाली पीढ़ियों के स्वस्थ रहने का कोई तरीका नहीं है।

यूनिवर्सिटी एनएसएस को-ऑर्डिनेटर डॉ बीके झा ने कहा कि मिट्टी को बचाने का यही उपयुक्त समय है. मिट्टी को बचाने और एक स्वस्थ और टिकने योग्य धरती बनाने के लिए समाज के सभी लोगों के प्रयासों और इस अभियान से जुड़ने की आवश्यकता है।

मौके पर सहायक प्राध्यापक डॉ अदिति गुहा चौधरी ने ईशा फाउंडेशन के संस्थापक, सद्गुरु के द्वारा शुरू गये मिट्टी बचाओ अभियान और सौ दिनों में पूरी दुनिया की 30 हजार किलो मीटर बाइक से मिट्टी के विनाश से दुनिया का ध्यान खींचने के प्रयासों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के दौरान वीडियो, क्विज, प्रश्न एवं उत्तर का भी आयोजन किया गया। मौके पर ईशा फाउण्डेशन से झारखंड में जुड़े 8 विद्याथियो की टीम ने मिट्टी आधारित गीत एवं नृत्य से लोगों को जागरूक किया।

कार्यक्रम में कृषि संकाय के कृषि, उद्यान एवं कृषि अभियंत्रण महाविद्यालय के 300 से अधिक विद्यार्थी ऑनलाइन शामिल हुए। मौके पर डॉ सीएस महतो, डॉ जय कुमार, डॉ अमित कुमार, डॉ अर्केंदु घोष, डॉ श्‍वेता सिंह, डॉ अपूर्बा पाल, डॉ नीता कुमारी एवं डॉ श्‍वेता कुमारी सहित विभिन्न महाविद्यालयों के करीब 350 छात्र-छात्राए भी मौजूद थे।