सचिव की तानाशाही और अव्यवहारिक शिक्षा नीति के खिलाफ आवाज उठाएगा शिक्षक मोर्चा

झारखंड
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रांची। झारखंड प्रदेश शिक्षक संघर्ष मोर्चा की आपात बैठक संयोजक मंडल के वरिष्ठ सदस्य अमीन अहमद की अध्यक्षता में 15 अप्रैल को रांची के अरगोड़ा स्थित श्री साईं राज शांतिकुंज में हुई। इसमें कई मुद्दों पर चर्चा हुई। शिक्षकों से सिर्फ शैक्षणिक कार्य कराने और शिक्षा में गुणात्मक सुधार करने की पहल करने की मांग की गई। शिक्षा सचिव की तानाशाही और अव्‍यवहारिक शिक्षा नीति के खिलाफ आवाज उठाने का निर्णय भी लिया गया।

मोर्चा के सदस्‍यों ने कहा कि राज्य के शिक्षा हित में नीति निर्धारण वातानुकूलित कमरे से बाहर निकल कर झारखंड के सुदूरवर्ती, पर्वतीय क्षेत्रों से लेकर शहरों में स्थित विद्यालयों और वहां पढ़ने वाले छात्रों के सामाजिक सांस्कृतिक एवं आर्थिक दशाओं का अध्ययन कर किया जाना सुनिश्चित किया जाए। इसमें राज्य के शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधि, अभिभावक प्रतिनिधि और प्रबुद्धजनों को रखा जाए। उनकी राय सुमारी करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर रहे राज्यों दिल्ली, केरल अथवा केंद्रीय विद्यालय की नीतियों का अनुसरण किया जाए।

सदस्‍यों ने कहा कि शिक्षा सचिव किसी भी संस्था अथवा संगठन का विचार लेना तो दूर, वे प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों से मिलना भी दुश्वार समझते हैं। प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को घंटों प्रतीक्षा कराने के बाद उनके विरुद्ध प्रशासनिक कार्रवाई करने की धमकी तक देते हैं। यह राज्य के लोकतंत्र एवं संवैधानिक अधिकारों के हनन का परिचायक है। मोर्चा ने विभाग की सभी प्रतिकूल बातों को राज्य के तमाम मंत्रि‍यों और राज्य के प्रतिनिधियों के साथ-साथ अभिभावकों के समक्ष ले जाने का निर्णय लिया है।

सदस्‍यों ने कहा कि राज्य के सरकारी विद्यालय की समय सारणी में पुनः संशोधित करते हुए प्रातः 6 बजे से 12 बजे तक किया गया है। राज्य के सभी सरकारी विद्यालयों की 9वीं से लेकर 12वीं कक्षा के छात्र बिना खाना खाए विद्यालय आते हैं। ऐसे बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन की कोई व्यवस्था नहीं होती है। प्राथमिक विद्यालय के बच्चों के लिए भी अहले सुबह भोजन की कोई व्यवस्था नहीं होती है, जिन्हे मात्र मध्याह्न भोजन के ही भरोसे रहना पड़ता है। ऐसे में वे भूखे पेट कैसे शिक्षा ग्रहण करेंगे। उन्हे 12 बजे तक विद्यालय में रखना कहीं न कहीं उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना है। ऐसी स्थिति में राज्य को एक नई महामारी की ओर ले जाने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।

मोर्चा ने सचिव से छात्र हित में अपनी पूर्वाग्रह एवं जिद्द को छोड़कर पूरी तरह से केंद्रीय विद्यालय की तर्ज पर स्‍कूल की समय सारणी अथवा छुट्टी तालिका को लागू कराने की मांग की। उनके मुताबिक यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुकूल है। ऐसा नहीं होने पर पूर्व की भांति दिवाकालीन समय सारणी 9 बजे पूर्वाह्न से लेकर 3 बजे अपराह्न तक को ही लागू कि‍या जाए, ताकि कम से कम बच्चे घर से भरपेट खाना खाकर विद्यालय आ सकें।

इसके अतिरिक्त राज्य के शिक्षकों की सेवा शर्तों के अनुरूप एवं अन्य कर्मचारियों अथवा सचिवालय कर्मियों की भांति समयबद्ध तरीके से प्रोन्नति, स्थानांतरण और वित्तीय लाभ देना सुनिश्चित किया जाए, ना कि उनके प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर दमन की राह में चला जाए। इससे राज्य की शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त नहीं किया जा सकता है।

कोरोना काल में शिक्षा में हुए गिरावट को पाटने के लिए शिक्षा में गुणात्मक सुधार की लक्ष्य को निर्धारित करने की जरूरत है। इसके लिए विद्यालयों के भौतिक संसाधनों को दुरुस्त करना, छात्र के अनुपात में शिक्षक की बहाली करना, जब तक स्थाई शिक्षक की नियुक्ति नहीं की जा सकती है, तब तक के लिए घंटी आधारित शिक्षकों को बहाल कर विद्यालयों में तैनात करना, शिक्षकों से सिर्फ और सिर्फ शिक्षण कार्य ही करना सुनिश्चित कराया जाए।

मोर्चा ने कहा कि वर्तमान में राज्य के किसी भी कर्मचारी अथवा अधिकारियों के लिए बायोमेट्रिक उपस्थित दर्ज करना बाध्यकारी नहीं है। यह शिक्षकों के लिए ही बाध्यकारी क्यों किया गया है। ऐसी शिक्षक विरोधी मानसिकता से भला राज्य की शिक्षा व्यवस्था को कैसे सुधारा जा सकता है।

मोर्चा सरकार से आह्वान किया कि शिक्षकों को सम्मान देते हुए उन्‍हें विद्यालयों में सिर्फ शिक्षण कार्य करने दिया जाए। उन्हें बदनाम एवं जनमानस के विरुद्ध करने का कृत्य नहीं कर शिक्षा में गुणात्मक सुधार करने की पहल की जाए।

बैठक में आशुतोष कुमार, विजय बहादुर सिंह, अरुण कुमार दास, डॉ सुधांशु कुमार सिंह, मकसूद जफर के साथ ऑनलाइन रूप से मंगलेश्वर उरांव, शैलेंद्र कुमार सुमन, प्रेम प्रसाद राणा उपस्थित थे।