- पूर्वी क्षेत्रीय आईसीएआर-दलहन शोध परियोजनाओं की पंचवर्षीय समीक्षा बैठक संपन्न
रांची। पूर्वी क्षेत्र के राज्यों में दलहनी फसल के आच्छादन क्षेत्र को बढ़ावा की जरूरत है। दिसंबर में धान कटाई से दलहनी फसल के आच्छादन क्षेत्र, उत्पादन एवं उत्पादकता में कमी होती है। कम अवधि वाली धान किस्मों की खेती से नवंबर में धान की कटाई के बाद दलहनी फसलों की खेती को बढ़ावा मिलेगा। किसानों को लाभ होगा। दलहनी फसल की खेती की ओर आकर्षित होंगे। उक्त बातें कांके स्थित बीएयू में आयोजित पूर्वी क्षेत्रीय आईसीएआर-दलहन शोध परियोजनाओं की पंचवर्षीय समीक्षा बैठक के समापन पर समीक्षा दल के अध्यक्ष डॉ एसके शर्मा ने कही।
परती जमीन में इन फसलों की संभावना
डॉ शर्मा ने कहा कि पूर्वी क्षेत्र के राज्यों में धान की परती भूमि में दलहनी फसलों में चना, मसूर एवं मटर की खेती की प्रबल संभवना है। इनकी 90-120 दिनों वाली किस्मों को प्रोत्साहित कर दलहन का आच्छादन क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है। लंबी अवधि करीब 220-240 दिनों वाली अरहर की किस्मों से खरीफ एवं रबी दोनों मौसम में खेत आच्छादित होने से किसानों को नुकसान होता है। वैज्ञानिकों को अरहर की 140 दिनों अवधि वाली किस्मों की खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि रबी मौसम में चना, मसूर एवं मटर की खेती से किसान लाभ ले सकें। बिहार एवं झारखंड में धान-गेहूं फसल-चक्र में कृषि विविधिकरण को बढ़ावा देने में मूंग और मसूर की 55-65 दिनों वाली किस्मों की खेती को अपनाना होगा। उन्होंने दलहन शोध कार्यक्रमों से जुड़े वैज्ञानिकों को दलहनी फसलों की कम अवधि वाली, सुखा सहिष्णु, रोग एवं कीट रोधी, कम सिंचाई क्षमता तथा अधिक उपज देने वाली किस्मों के विकास में सतत शोध प्रयास में लगे रहने को कहा।
अम्लीय भूमि की वजह से कम आच्छादन
आईसीएआर-भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आईआईपीआर), कानपुर के सौजन्य से आयोजित बैठक में राष्ट्रीय परियोजना समन्यवयक डॉ जीपी दीक्षित ने बताया कि आईसीएआर दलहन शोध परियोजनाओं की इस पंचवर्षीय समीक्षा बैठक में पूर्वी राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों के 11 केन्द्रों में संचालित 21 परियोजनाओं से जुड़े परियोजना अन्वेंषकों ने भाग लिया। उत्तर-पूर्वी राज्यों में अम्लीय भूमि की वजह से दलहन का आच्छादन कम है। इस क्षेत्र में लोगों में दाल सेवन को प्रोत्साहन और मटर, राजमा एवं राइसबीन की उपयुक्त किस्मों को सीड चैन में बढ़ावा देने पर चर्चा हुई। बैठक में परियोजना अन्वेंषकों ने वर्ष 2015-16 से वर्ष 2019-20 तक की शोध उपलब्धियों को रखा। पूर्वी राज्यों में दलहनी विकास की भावी शोध रणनीति पर वैज्ञानिकों और एक्सपर्ट्स ने अपने विचार दिये। सुझावों को रखा। छह सदस्यीय समीक्षा दल सभी परियोजनाओं की उपलब्धियों की समीक्षा एवं मूल्यांकन कर भावी योजना पर सुझाव देगी।
किस्मों को स्टेट सीड चैन में बढ़ावा मिलेगा
बीएयू के कुलपति डॉ ओएन सिंह ने कहा कि विवि द्वारा हाल में विकसित एवं सेंट्रल वेरायटल रिलीज कमेटी से अनुमोदित फसल किस्मों के अधिक से अधिक नाभकीय बीज एवं प्रजनक बीज उत्पादन के प्रयास किये जायेंगे। सभी किस्मों को स्टेट सीड चैन में बढ़ावा दिया जायेगा। जिलों में कार्यरत कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा किसानों के बीच अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण के माध्यम से प्रसार कार्यक्रम चलाये जायेंगे, ताकि प्रदेश के किसान लाभान्वित हो सके।
मिड डे मील में दाल को कर सकती है
डॉ जीपी दीक्षित ने कहा कि भारत सरकार ने दलहन का 20 लाख टन बफर स्टॉक सुरक्षित रखा है। ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण की समस्या के समाधान में छात्रों को मिड डे मील में दाल को राज्य सरकारें शामिल कर सकती है। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची में आईसीएआर संपोषित अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजना के तहत अरहर, चना एवं मुलार्प की तीन परियोजनाओं की उपलब्धि सराहनीय रही है। विवि द्वारा विकसित अरहर की किस्म बिरसा अरहर-2 और उरद की बिरसा उरद-2 को सेंट्रल वेरायटल रिलीज कमेटी से अनुमोदन बड़ी उपलब्धि है।
समीक्षा दल में ये भी थे शामिल
दो दिवसीय समीक्षा बैठक का आयोजन बीएयू के आनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग में किया गया। समीक्षा दल में डॉ डीपी सिंह, डॉ एसके शर्मा, डॉ बीबी आहूजा, डॉ पी कुमार तथा डॉ केआर कौंडल शामिल थे। बैठक में डॉ सोहन राम, डॉ पीके सिंह, डॉ एस कर्मकार, डॉ सीएस महतो, डॉ नीरज कुमार, डॉ कमलेश्वर कुमार, डॉ एचसी लाल एवं डॉ विनय कुमार सहित 21 परियोजनओं के परियोजना अन्वेंषकों ने भी भाग लिया।