झारखंड के समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण पर जोर

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  • बीएयू में बागवानी, वन, वन्य जीवन और जैव विविधता संरक्षण पर अतिथि व्याख्यान आयोजित

रांची। बीएयू में संचालित सेंटर फॉर एडवांस्ड एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नोलॉजी (नाहेप-कास्ट) परियोजना के विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला के तहत सोमवार को बागवानी, वन, वन्य जीवन और जैव विविधता संरक्षण विषय पर अतिथि व्याख्यान का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध बागवानी विशेषज्ञ डॉ अंगदी रब्बानी थे। वे एसोसिएट परियोजना निदेशक एवं प्रमुख (सेवानिवृत्त) पर्यावरण वन और बागवानी प्रभाग के पद पर इसरो, श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश में कार्यरत हैं।

डॉ अंगदी ने श्रीहरिकोटा के द्वीप में इसरो द्वारा चलाये जा रहे बागवानी, वन, वन्य जीवन और जैव विविधता संरक्षण कार्यक्रमों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि यह भूभाग भारत के तटीय उष्णकटिबंधीय शुष्क सदाबहार वन अवशेषों के बड़े मार्गो में से एक है। इस द्वीप में समृद्ध प्रमुख वनस्पतियों, विभिन्न पारिस्थितिक स्थितियों और अतीत और हाल के मानवजनित कारकों, स्क्रब जंगल, वृक्षारोपण, परित्यक्त गांव के जंगल, घास के मैदान और रेत के टिब्बा में वनस्पति भी मौजूद  हैं। एक समृद्ध पशु विविधता भी है।

हाल के दिनों में श्रीहरिकोटा जैसी जगहों पर सीमित मानव घुसपैठ के साथ जैव विविधता संरक्षण का महत्व बढ़ गया है। श्रीहरिकोटा के भूमि के विशाल पथ और उच्च-सुरक्षा स्थितियों  जैसे इसरो, परमाणु और अन्य बिजली संयंत्र और रक्षा प्रतिष्ठानों द्वारा जंगल की रक्षा करने की दिशा में प्रमुख भूमिका निभाया जा रहा है।

डॉ अंगदी ने कहा कि भारत में जैव विविधता का नुकसान खतरनाक संकेत दे रहा है। श्रीहरिकोटा स्थित इसरो संस्थान ने 180 वर्ग किलोमीटर में फैले इस द्वीप में बागवानी, वन, वन्य जीवन और जैव विविधता संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किये है। देशी वन पौध नर्सरी, एग्रो शेड नर्सरी, पौध अवशेषों का री-साइकिलिंग द्वारा कम्पोस्ट निर्माण, कासुरेना पौध, काजु पौध, नारियल पौध व बांस पौध नर्सरी की स्थापना कर वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जा रहा है। द्वीप में देशी जंगलों को पुनर्जीवित करने का प्रयास हो रहा है, ताकि द्वीप की प्राचीन महिमा वापस लाई जा सके।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि झारखंड की समृद्ध जैव विविधता की रक्षा में एकीकृत कृषि प्रणाली का समावेश किया जाना होगा। उन्होंने कहा कि इसरो जैसे संस्थान में कृषि वैज्ञानिक के रूप में पहचान स्थापित करना बड़ी चुनौती है। इसरो में डॉ अंगदी के अनुभवों एवं प्रयासों से सीख लेकर प्रदेश में जैव विविधता संरक्षण को दिशा देनी होगी। डॉ सुशील प्रसाद और डॉ जेडए हैदर ने परिचर्चा में भाग लिया।

मौके पर डॉ एमएस यादव ने एकीकृत कृषि प्रणाली मात्र के उपयोग से जैव विविधता संरक्षण के बारे में बताया। डॉ अब्दुल वदूद ने मौसम एवं जलवायु परिवर्तन और तापक्रम में वैश्विक वृद्धि को देखते हुए जैव विविधता संरक्षण की महत्ता पर प्रकाश डाला।

व्याख्यान का संचालन डॉ बीके अग्रवाल ने की। स्वागत में डॉ एमएस मल्लिक ने नाहेप-कास्ट परियोजना के उद्देश्यों के बारे में बताया। धन्यवाद डॉ अरविंद कुमार ने दी। व्याख्यान में पीजी छात्रों, रिसर्च फेलो और बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के शिक्षक, वैज्ञानिक और विश्वविद्यालय अधिकारियों ने भाग लिया।