छठी जेपीएससी की मेरिट लिस्ट को निरस्त करने की एकल पीठ के आदेश के खिलाफ दायर की गई अपील पर बुधवार को हाइकोर्ट में सुनवाई पूरी कर ली गई। चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत में इस मामले पर पूरे दिन बहस चली। ऐसे में सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने फैसले को सुरक्षित रख लिया है।
अब सभी अभ्यर्थियों को इंतजार करना होगा कि अदालत का फैसला कब आता है। सुनवाई के दौरान जेपीएससी की ओर से अधिवक्ता संजय पिपरावाल और अधिवक्ता प्रिंस कुमार, सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल राजीव रंजन, प्रार्थियों की ओर से सुमीत गाड़ौदिया, अधिवक्ता तान्या सिंह, कुमारी सुगंधा सहित अन्य अधिवक्ताओं ने पक्ष रखा। एकल पीठ ने जेपीएससी की ओर से जारी मेरिट लिस्ट को रद्द कर दिया था।
अपने फैसले में एकल पीठ ने कहा था कि विज्ञापन की शर्तों के अनुसार पेपर वन (हिंदी व अंग्रेजी) के अंक को कुल प्राप्तांक में नहीं जोड़ा जाना था। चूंकि पेपर वन में सिर्फ क्वालिफाइंग अंक लाना था। फिर भी पेपर वन के अंक को जोड़ कर मेरिट लिस्ट तैयार की गई। इस फैसले के बाद 326 चयनित अभ्यर्थियों की नौकरी खतरे में पड़ गई। इसके खिलाफ शिशिर तिग्गा सहित सौ से अधिक अपील याचिका दाखिल की गई है। याचिका में कहा गया है कि जेपीएससी की ओर से जारी मेरिट लिस्ट में कोई गड़बड़ी नहीं है।
विज्ञापन की शर्तों के अनुरूप ही जेपीएससी ने पेपर-वन के अंक को कुल प्राप्तांक में जोड़ कर मेरिट लिस्ट जारी की है। हालांकि पूर्व में सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। दरअसल छठी जेपीएससी परीक्षा के परिणाम जारी होने के बाद असफल परीक्षार्थियों ने इसे गलत बताया था। उन्होंने इसके लिए अदालत से गुहार लगाई थी कि गलत तरीके से रिजल्ट निकाल कर कुछ लोगों को फायदा पहुंचाया गया है।
इसलिए इस रिजल्ट को रद्द कर फिर से रिजल्ट प्रकाशित करने की मांग की गई थी, जिसमें कहा गया था कि मुख्य परीक्षा के पेपर वन का कुल प्राप्तांक जोड़ा जाना गलत है। इसमें सिर्फ क्वालिफाइंग अंक ही लाने का प्रावधान है। अदालत ने उसे सही मानते हुए रिजल्ट को रद्द करते हुए फिर से रिजल्ट प्रकाशित करने का आदेश दिया है। हाइकोर्ट की एकल पीठ के इसी आदेश को झारखंड हाइकोर्ट में चुनौती दी गई है।