डॉ सुशील प्रसाद
वर्ल्ड मिल्क डे प्रत्येक वर्ष 1 जून को मनाया जाता है। इस दिवस को सर्वप्रथम 1 जून, 2001 को मनाया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देना है। साथ ही जन-जन तक प्रचार-प्रसार के माध्यम से लोगों को सुरक्षित एवं स्वच्छ दुग्ध की अहमियत के प्रति जागरूक करना है। वर्ष, 2021 में विश्व दुग्ध दिवस का मुख्य थीम ‘जलवायु परिवर्तन के आलोक में डेयरी व्यवसाय में प्रबंधन, आत्मनिर्भरता एवं संभवनाएं’ रखा गया है।
दुग्ध हमारे शरीर शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्वों का सबसे सरल एवं अच्छा श्रोत है। इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, फास्फ़रोस, आयोडीन, आयरन, पोटैशियम, विटामिन ए, डी, बी-12, राइनोफ्लेविन आदि मौजूद होते हैं। उच्च गुणवत्ता के प्रोटीन विद्यमान होते हैं। इसलिए यह शरीर को तुरंत उर्जा उपलब्ध कराता है। आज पूरे विश्व में बड़े स्तर पर दुग्ध उपलब्ध हो रहा है। दुग्ध उत्पादन के मामले में पूरे विश्व में भारत वर्ष का पहला स्थान है।
बढती वैश्विक गर्मी की वजह से वर्ष, 2030 तक दूध उत्पादन में 1.8 मिलियन टन की कमी का अनुमान है। वर्ष 2050 तक 15 मिलियन टन हो जाने की आशंका है। जलवायु परिवर्त्तन की वजह संकर गायें और भैंसे अधिक प्रभावित होंगे। जलवायु परिवर्त्तन से हरे चारे एवं दाने की उपलब्धता में कमी भी वजह दूध उत्पादन में प्रभावित होगा। पशु जनित रोगों से भी उत्पादन प्रभावित होगी, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों एवं सरकार को आर्थिक क्षति का अनुमान लगाया जा सकता है। नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टिट्यूट, करनाल ने जलवायु परिवर्त्तन का दूध उत्पादन सबंधी अध्ययन में 1832 मिलियन लीटर तक वार्षिक क्षति का अनुमान लगाया है। देशी नस्ल की गायों में संकर नस्ल की अपेक्षा जलवायु परिवर्त्तन के दबाव से लड़ने की क्षमता अधिक होती है। इसलिए देशी नस्ल की गायों को उत्पादकता की वृद्धि में शामिल किये जाने की आवश्यकता है।
भारत में कुल दुग्ध उत्पादन 187.75 मेट्रिक टन है और प्रति व्यक्ति खपत करीब 394 ग्राम प्रति दिन है। वहीं झारखंड को करीब 5 लाख लीटर प्रतिदिन दूध की आवश्यकता है। जबकि झारखंड मिल्क फेडरेशन मेधा डेयरी करीब 1.25 लाख लीटर दुग्ध की आपूर्ति करता है। बाकी 3.77 लाख लीटर दूध का बिहार एवं अन्य राज्यों से आपूर्ति होती है। प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता के मामले में झारखंड का पूरे देश में 16वां स्थान है। पहले स्थान पर पंजाब और अंतिम पायदान पर दमन व दीव है। एनडीआरआई के मुताबिक वर्ष 2001 में झारखंड में प्रति व्यक्ति 91 ग्राम दूध की उपलब्धता थी और वर्ष 2020 में 172 ग्राम प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता रही। वर्ष, 2021 में 177 ग्राम प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता दर्ज किया गया है, जो राष्ट्रीय स्तर से काफी कम है।
प्रदेश को दुग्ध उत्पादन मामले में आत्मनिर्भरता प्रदान कर राज्य के कम से कम 5 लाख परिवारों को रोजगार और आजीविका मुहैया कराई जा सकती है। इससे राज्य सरकार को भी 8-10 करोड का लाभ होगा।
झारखंड मिल्क फेडरेशन मेधा ब्रांड के नाम से पशुपालकों से दूध इकट्ठा कर प्रोसेसिंग करती है। इससे करीब एक लाख लोग प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े है। करीब 20 हजार पशुपालक सीधे संस्था को दूध दे रहे है। इनके बीच 12 से 15 करोड का भुगतान प्रतिमाह हो रहा है।
राज्य के प्रवासी मजदूर हमारी ताकत हो सकते है। इन्हे तुरंत रोजगार देने का यह सबसे बढ़िया सरल जरिया हो सकता है। इन्हें सरकारी स्तर से दुधारू गाय देकर दुसरे दिन से ही रोजगार का साधन मिलेगा। दूध मामले में अन्य राज्यों पर निर्भरता कम होगी।
राज्य सरकार और मिल्क फेडरेशन मिलकर प्रदेश में डेयरी प्लांट शुरू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। प्लांट्स के शुरू होने के बाद प्लांट्स को दूध की जरूरत होगी। केवल दुग्ध सेक्टर को थोड़ा प्रोत्साहित कर प्रदेश को दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया जाना संभव है। प्रदेश में देशी गाय की दूध की गुणवत्ता बहुत अच्छी है। हरे चारे की खेती को बढ़ावा देकर दूध की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में बढ़ोतरी की जा सकती है।
विश्व दुग्ध दिवस के अवसर पर हमें सुरक्षित और स्वच्छ दूध उत्पादन के लिए पशुपालकों के बीच जागरूकता फैलाने की जरूरत है। दूध के महत्व पर जागरुकता से ग्रामीण अर्थव्यवस्था और मानव स्वस्थ्य अभियान को बल मिलेगा।
(लेखक बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची के डीन वेटनरी हैं)