गणित, ज्योतिष और चिकित्सा के क्षेत्र में पूर्व-औपनिवेशिक भारत की एक शानदार परंपरा थी। हालांकि, उपनिवेशवाद के परिणामस्वरूप परंपरा का बहुत क्षरण हुआ। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पूर्वी भारतीय क्षितिज पर विज्ञान के कई उत्कृष्ट पुरुष प्रकट हुए। ऐसे ही एक व्यक्ति थे पी एन बोस। एक जोशीला भूविज्ञानी, अपने देश की बेहतरी और प्रगति के लिए वैज्ञानिक ज्ञान का लाभ उठाने के लिए सदैव तत्पर। स्वदेशी आंदोलन से प्रभावित हो कर प्रमथ नाथ बोस ने भारत के प्रमुख वैज्ञानिकों के साथ दो क्षेत्रों में भारत के भविष्य को सुरक्षित करने की ठानी। इनमें से पहला था ‘राष्ट्रीय हितों अनुरूप और राष्ट्रीय नियंत्रण में शिक्षा को बढ़ावा देना’ और दूसरा था ‘देश का औद्योगिकीकरण और सामग्रियों का उन्यनयन।’
पीएन बोस का जन्म 12 मई, 1855 को पश्चिम बंगाल के गायपुर नामक गांव में हुआ था। उनकी शिक्षा कृष्णनगर कॉलेज और बाद में सेंट जेवियर्स कॉलेज में हुई। उन्होंने 1874 में लंदन में अध्ययन के लिए गिलक्रिस्ट स्कॉलरशिप प्राप्त की। वे किसी ब्रिटिश यूनिवर्सिटी से बीएससी की डिग्री पाने वाले पहले भारतीय थे। अपनी वापसी पर वे जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के साथ एक असिस्टेंट सुपरीटेंडेंट के रूप में जुड़ गए। ऐसा करने वाले पहले भारतीय थे। उनका प्रारंभिक कार्य शिवालिक के जीवाश्मों पर केंद्रित है, जो आज भी ब्रिटिश म्यूजियम में संग्रह का एक हिस्सा है। उन्हें असम में पेट्रोलियम की खोज का श्रेय दिया जाता है। उन्हें पूरे भारत में, यहां तक म्यांमार में भी खनिज और कोयले के कई भंडार की खोज का श्रेय दिया जाता है। यह उनका वैज्ञानिक पुरुषार्थ ही था, जिसने भारत में पहला साबुन का कारखाना स्थापित करने में मदद की। एक भूवैज्ञानिक के रूप में उनके महत्वपूर्ण योगदान ने जमशेदपुर में टाटा स्टील वर्क्स की स्थापना की।
पीएन बोस का मानना था कि भारत का उद्धार अपनी जड़ों की ओर लौटने में है, जो कभी वैज्ञानिक ज्ञान और शिक्षा में मजबूती से टिकी थी। अपने समय के अन्य महान वैज्ञानिकों के साथ, वे मानते थे कि प्रचलित सोच के विपरीत कि भारतीय वैज्ञानिक यूरोपीय विचारकों और जांचकर्ताओं के प्रतिद्वंद्वी बन सकते हैं। इसलिए, जब लॉर्ड कर्ज़न ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के लिए जे एन टाटा की योजना को तोड़ने की कोशिश की, तो उन्होंने एकमत से इसकी निंदा की। रॉयल स्कूल ऑफ माइन्स में पीएन बोस ने राजनीतिक बैठकों में भी हिस्सा लिया। सरकार के कृत्यों पर हमला किया। जीएसआई में अपने 20 साल के कार्यकाल में उन्होंने नर्बदा घाटी, रीवा स्टेट, मध्य भारत और शिलांग पठार का सर्वेक्षण किया। उनकी पुस्तक ‘नेशनल एजुकेशन एंड मॉडर्न प्रोग्रेस’ भारत में तकनीकी-वैज्ञानिक शिक्षा के लिए उनके जुनून को दर्शाता है। उनके प्रयासों से कोलकाता में बेंगाल टेक्नीकल इंस्टिट्यूट की स्थापना हुई, जिसे आज जादवपुर यूनिवर्सिटी के रूप में जाना जाता है। पीएन बोस संस्थान के पहले मानद प्राचार्य थे।
अपने देश के प्रति पीएन बोस की गहरी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता ने उन्हें भारत में गरीबी के कारण और संभावित समाधानों की खोज करने के लिए प्रेरित किया। एक किताब में उन्होंने लिखा, ‘हमारी आबादी का एक वर्ग ऐसा है, जिस शायद ही समृद्ध कहा जा सकता है। हमारे कारीगर, हमारे किसान, हमारे मजदूर, हमारे शिक्षित वर्ग, सभी गरीबी में डूब चुके हैं। उनके लिए आने वाला समय भी इसी प्रकार अंधकारमय है। सरकारी सेवाएं लाखों प्यासों के बीच केवल कुछ बूंद पानी की पेशकश कर सकती हैं। एकमात्र उपाय, जिसमें बहुत व्यापक अनुप्रयोग की संभावना है और जिसमें हमारे लोगों के सभी वर्गों को पर्याप्त राहत देने की संभावना है, वह हमारे उद्योगों का विकास है। सिर्फ उद्योग ही भूमि पर दबाव को कम कर लोगों के संकट को दूर कर सकते हैं, सिर्फ उद्योग ही क्लर्कशिप के अलावा अन्य द्वार खोल कर हमारे मध्यम वर्गों के संकट को दूर कर सकते हैं।‘
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने पीएन बोस के बारे में कहा था, ‘वे उस समय भी भूवैज्ञानिक संसाधनों विशेषकर कोयला, लोहा और इस्पात के विकास से औद्योगिक विस्तार के लिए बड़ी संभावनाओं का पूर्वानुमान लगा सकते थे।‘
जहां जमशेदजी टाटा ने अपनी पूंजी और उद्यमशीलता की क्षमता का निवेश किया, वहीं पीएन बोस ने भारत के पहले लौह व इस्पात उद्योग को स्थापित करने में मदद करने के लिए विज्ञान और भूविज्ञान के अपने ज्ञान का निवेश किया। वे इस तथ्य से अवगत थे कि उनकी पिछली सभी भूवैज्ञानिक खोजों का उपयोग ब्रिटिश राज द्वारा किया गया था। इस प्रकार जब उन्होंने मयूरभंज में समृद्ध लौह अयस्क भंडार की खोज की, तब उन्होंने इसे 24 फरवरी, 1904 के अपने प्रसिद्ध पत्र के माध्यम से स्वदेशी उद्योगपति जेएन टाटा के संज्ञान में लाया और जिसके कारण साकची में टिस्को की स्थापना हुई।
जहां तक भारत के औद्योगिकीकरण की बात है, तो छोटे-से साबुन कारखाने से लेकर भारत में पहली बार एकीकृत स्टील प्लांट की स्थापना में उनके योगदान और साथी भारतीयों के बीच वैज्ञानिक और तकनीकी कौशल के विकास के साथ भारत को प्राकृतिक संसाधनों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनका अथक प्रयास को देख कर कहा जा सकता है कि पीएन बोस ने वास्तव में ‘आत्मनिर्भर’ भारत का नेतृत्व किया।