खेती में खेती ऋषि खेती। ऋषि खेती हमारी प्राचीन भारतीय कृषि पद्धति है। इसके तहत सभी वनस्पतियों को एक साथ उगने दिया जाता है, जिसमें ऊंचे पेड़ से लेकर जमीन के नीचे कंदमूल तक होते हैं। ऐसी ही ऋषि खेती करते हैं पूर्णिया जिले के रामनगर गांव के किसान हिमकर मिश्र। ऋषि खेती की उनकी पद्धति और इसकी सफलताओं को देखने के लिए राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों से लेकर कृषि विशेषज्ञ और प्रगतिशील किसान लगातार यहां आते रहते हैं।
सबने इसे जैविक खेती से एक कदम ऊपर की कृषि पद्धति करार दी है। इस ऋषि खेती ने 50 एकड़ की बलुई और बंजर जमीन को चंद सालों में हरा-भरा बना दिया है। साथ ही कृषि-वानिकी और जैविक खेती के लिए सरकार की ओर से की जा रही पहल और सोच के लिए एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण साबित हुआ है। इस खास किस्म की खेती को निजी तौर पर सफलतापूर्वक किया जा रहा है और इसमें किसी तरह के सरकारी सहयोग की अभी तक जरुरत नहीं पड़ी है।
इस परिसर में सात लेयर फार्मिंग होती है यानि एक ही जमीन पर पेड़ से लेकर जड़ तक के पौधे लगाए जाते हैं। आम के पेड़ से नीचे सहजन की झाड़ियां और उसके नीचे पिंक पीपर, फिर गंधराज नींबू और उनके नीचे जमीन में गुणकारी हल्दी और अन्य। इस तरह एक ही परिसर में सात तरह के कृषि उत्पाद। ऋषि खेती जिसमें जुताई नहीं होती यानि जीरो टिलेज फार्मिंग। केमिकल खाद और रासायनिक दवाओं का उपयोग नहीं होता, इसलिए पूरी तरह जैविक।
अनाज और फल दोनों यहां साथ होते हैं। साथ ही इमारती लकड़ी और औषधीय पौधे तथा सहजन भी। खस की खेती भी साथ होती है, जिसकी जड़ें भूस्खलन और कटाव को रोकती हैं और इनकी जड़ों का तेल औषधीय महत्व का होता है। यहां से खस को भारतीय सेना के इको टास्क फोर्स ने भी ट्रकों से मंगाया है और भूस्खलन रोकने केउपयोग में लाया है। कृषि वानिकी और बिना जुताई से यह पूरी तरह प्राचीन और पारंपरिक ऋषि खेती है।