हड़ताल पर रहे नाबार्ड के कर्मी, मांगें नहीं माने जाने पर आंदोलन करेंगे तेज

झारखंड
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रांची। नाबार्ड के अधिकारियों, कर्मचारियों और सेवानिवृत्त स्टाफ-सदस्यों का संयुक्त मंच (यूएफओईआरएन) के बैनर तले कर्मियों ने 30 मार्च को हड़ताल किया। कर्मियों ने कहा कि मंच के बैनर तले करीब डेढ़ साल से आंदोलन किया जा रहा है। इस दौरान से लंबित पेंशन संबंधी मुद्दों को लेकर गेट के समक्ष प्रदर्शन किया। काला बिल्‍ला लगाया। धरना दिया। मांगें नहीं माने जाने पर 30 मार्च को हड़ताल करने का निर्णय लिया है। सदस्‍यों ने कहा कि इस हड़ताल के बाद भी मांगें नहीं मानी गई तो आने वाले दिनों में आंदोलन तेज किया जाएगा।

भारतीय रिजर्व बैंक के तीन विभागों- कृषि ऋण विभाग (एसीडी), ग्रामीण योजना एवं ऋण विभाग (आरपीसीडी) और कृषि पुनर्वित्त और विकास निगम (एआरडीसी) को मिलाकर नाबार्ड की स्थापना की गई। रिजर्व बैंक प्रबंधन ने कर्मियों को नाबार्ड में शामिल होने की अपील की। इस दौरान लिखित आश्वासन दिया था कि जब भी रिजर्व बैंक में कार्य करने वाले उनके सहयोगियों के वेतन, भत्ते और सेवानिवृत्ति लाभों को संशोधित किया जाएगा, तब ये सभी नाबार्ड में आने वाले सारे स्टाफ-सदस्यों को दिए जाएंगे।

कर्मियों ने कहा कि नाबार्ड के वर्कमैन एसोशिएशन के साथ पूर्व में किए गए सभी 7 द्विपक्षीय समझौतों में पेंशन सहित सेवा संबंधी सभी शर्तो में भारतीय रिजर्व बैंक में दी जाने वाली सुविधाओं के समान सुविधा वर्षों से दी जा रही है। इसके अलावा वर्ष 1993 में रिजर्व बैंक पेंशन नियमावली की तर्ज पर नाबार्ड पेंशन नियमावली बनाई गई।

कर्मियों ने कहा कि किए गए वादों को पूरा नहीं किया गया है। नाबार्ड अधिनियम के प्रावधानों का सम्मान नहीं किया गया है। इसलिए, सेवारत और सेवानिवृत कर्मचारियों के बीच असंतोष है। रिजर्व बैंक से सेवानिवृत्त कर्मचारी बेहतर सुविधाए प्राप्त कर रहे हैं। नाबार्ड के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को ये सुविधाए नहीं मिलने से उनमें असंतोष है।

एसोसिएशन के संयोजक विजय के भोसले, महासचिव अमलान दाश और महासचिव एससी वाधवा ने बताया कि वर्ष 2012 में भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी पेंशन नियमावली में संशोधन के लिए प्रस्ताव भेजा था। ठीक उसी वर्ष नाबार्ड ने उसी संशोधन के लिए नाबार्ड के निदेशक मंडल के अनुमोदन से डीएफएस को अपना प्रस्ताव भेजा था। नाबार्ड के निदेशक मंडल में भारतीय रिजर्व बैंक और डीएफएस दोनों के प्रतिनिधि शामिल हैं। रिजर्व बैंक द्वारा भेजे गए प्रस्तावों और उनकी निपटान अवधि को देख कर यह पता चलता है कि नाबार्ड के भेजे गए प्रस्तावों में किस तरह से विलंब हुआ है।

बीस साल की सेवा के बाद पूरी पेंशन (जनवरी, 2013 से भारतीय रिजर्व बैंक में लागू)

अंतिम वेतन या पिछले दस महीनों की औसत परिलब्धियां, इनमें से जो भी अधिक फायदेमंद हो, उसके आधार पर पेंशन की गणना। (नवंबर, 2017 से भारतीय रिजर्व बैंक में लागू)

प्रत्येक वेतन संशोधन के साथ पेंशन में संशोधन (मार्च, 2019 से भारतीय रिजर्व बैंक में लागू)

आखिरी बार पेंशन विकल्प को फिर से खोलना और उन कर्मचारियों को एक और विकल्प देना, जिन्होंने पेंशन का विकल्प नहीं चुना था। (जून, 2020 में भारतीय रिजर्व बैंक में लागू)

एसोसिएशन के सदस्‍यों ने बताया कि इसी बीच एक रिट याचिका के जवाब में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अधिनियम में प्रावधानों पर संज्ञान लेते हुए नवंबर, 2019 में एक आदेश पारित कर भारत सरकार को चार माह के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया। भारत सरकार ने डेढ़ साल बाद भी इस पर कोई फैसला नहीं लिया है, जिसके कारण सरकार पर कोर्ट की अवमानना का केस दायर किया गया है।

उपर्युक्त सामान्य पेंशन संबंधी मुद्दों के अलावा किसी कर्मचारी की मृत्यु के मामले में अनुकंपा पैकेज में संशोधन का प्रस्ताव भी नाबार्ड द्वारा डीएफएस के अनुमोदन के लिए भेजा गया था। इसके कारण सितंबर, 2019 से नाबार्ड के अधिकारियों, कर्मचारियों और सेवानिवृत्त स्टाफ सदस्यों का संयुक्त मंच (यूएफआईआरएन) के बैनर तले आंदोलन पर हैं।

इस बीच, नाबार्ड के छह पूर्व अध्यक्षों/ प्रबंध निदेशकों ने केंद्रीय वित्त मंत्री को एक संयुक्त पत्र लिखकर यह अपील की है कि नाबार्ड में पेशन से जुड़े सभी मुद्दों को भारतीय रिजर्व बैंक की तर्ज पर बिना किसी देरी के निपटाया जाए। यूनाइटेड फोरम ने संयुक्त रूप से और साथ ही अपने अन्य निकायों के माध्यम से वित्त मंत्री, वित्त राज्यमंत्री और डीएफएस के अधिकारियों सहित कई सांसदों, मंत्रियों से अलग-अलग मुलाकात की है। उनसे इन मुद्दों के त्वरित निपटान के लिए अनुरोध लिया है, परंतु हमारी किसी भी अपीत पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।