रांची। गुरुद्वारा श्री गुरु नानक सत्संग सभा ने सिख पंथ के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुरजी का 350वां शहीदी गुरुपर्व मनाया। इस उपलक्ष्य में 25 नवंबर को कृष्णा नगर कॉलोनी गुरुद्वारा साहिब में सुबह 8 बजे से विशेष दीवान सजाया गया। इसकी शुरुआत हजूरी रागी जत्था भाई महिपाल सिंह व साथियों के ‘गुरु तेग बहादुर सिमरियै घर नव निधि आवे धाई सब थाई होए सहाई…’ शबद गायन से हुई।
शहीदी गुरुपर्व में विशेष रूप से पहुंचे सिख पंथ के महान कीर्तनी जत्था भाई बलदेव सिंह (बुलंद नगर वाले) ने ‘धर्म हेत साका जिनि कीआ सीसु दीआ परु सिररु न दीआ..…’ और ‘तिलक जंझू राखा प्रभु ताका कीनो बडो कलू महि साका, साधन हेत इति जिन करी सीस दिया पर सी न उचरी….’ एवं ‘ठीकर फोर दिलीस सिर, प्रभु पुर किआ पयान, तेग बहादर सी क्रिया करी न किनहूं आन….’ व ‘मैं गरीब मैं मसकीन तेरा नाम है आधारा’…..’ जैसे कई शबद गायन कर साथ संगत को गुरुवाणी से जोड़ा।
शहीदी गुरुपर्व में विशेष रूप से शिरकत करने पहुंचे सिख पंथ के महान कीर्तनी जत्था भाई जसवंत सिंह (कोलकाता वाले) ने तिलक जंझू राखा प्रभु ताका, कीनो बडो कलू महि साका, साधन हेत इति जिन करी, शीश दिया पर सी न उचरी….’ जैसे शबद गायन के साथ संगत को गुरुवाणी से जोड़ा।
गुरु घर के सेवक मनीष मिढा ने श्री गुरु तेग बहादुरजी की शहादत के बारे में साध संगत को बताया। उन्होंने बताया कि उनके बचपन का नाम त्यागमल था। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुग़लों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया। उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग़ बहादुर (तलवार के धनी) रख दिया।
मुगल शासक औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुरजी को हिंदुओं की मदद करने और इस्लाम नहीं अपनाने के कारण उन्हें मौत की सजा सुना दी। इस्लाम अपनाने से इनकार करने की वजह से औरंगजेब के शासनकाल में उनका सर कलम कर दिया गया।
गुरु जी के त्याग और बलिदान के कारण उन्हें हिन्द दी चादर कहा जाता है, जहां गुरु तेग बहादुर जी ने शहादत दी चांदनी चौक दिल्ली के उसी स्थल पर उनकी याद में शीश गंज साहिब गुरुद्वारा बनाया गया है, जो उनके धर्म की रक्षा के लिए किए गए कार्यों को हमें याद दिलाता रहता है।
सत्संग सभा के अध्यक्ष अर्जुन देव मिढा ने श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत का वर्णन करते हुए साध संगत को बताया कि हिंदू धर्म की रक्षा के लिए श्री गुरु तेग बहादुर जी ने शहादत दी। ऐसी दूसरी मिसाल दुनिया में नहीं है।
श्री आनंद साहिब जी के पाठ, मनीष मिड्ढा द्वारा की गई अरदास एवं हुकुमनामा के साथ सुबह 11 बजे दीवान की समाप्ति हुई। कढ़ाह प्रसाद वितरण के बाद सत्संग सभा द्वारा साध संगत के लिए चाय नाश्ते का लंगर चलाया गया।
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