रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) ने चारा खेसारी फसल की उन्नत प्रभेद बिरसा खेसारी-2 (बीएयू एल-106) विकसित किया है। इसे देश के उत्तर पूर्व क्षेत्र और मध्य क्षेत्र के लिए भारत सरकार के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय ने जारी किया है। सामयिक बुआई, सामान्य उर्वरता स्तर और कम सिंचाई वाली परिस्थितियों के लिए यह प्रभेद काफी उपयुक्त है।
चारा फसल एवं प्रयोग सम्बन्धी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 18 और 19 सितंबर को केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इम्फाल में हुई राष्ट्रीय समूह बैठक में रिलीज़ प्रस्ताव का अनुमोदन किया गया।
बीएयू के पौधा प्रजनक डॉ योगेन्द्र प्रसाद द्वारा वर्षों के प्रयोग एवं परिक्षण के बाद विकसित इस प्रभेद ने प्रति हेक्टेयर 211 क्विंटल हरा चारा का उत्पादन दिया। यह सर्वोत्तम राष्ट्रीय चेक प्रभेद प्रतीक (182 क्विंटल/ हे) की तुलना में 15.4 प्रतिशत अधिक है।
इससे प्रति हेक्टेयर 11.7 क्विंटल दाना की प्राप्ति हुई, जो नेशनल चेक की तुलना में 5 प्रतिशत अधिक है। बिरसा खेसारी-2 से प्रति हेक्टेयर 41 क्विंटल सूखा चारा प्राप्त हुआ, जो नेशनल चेक की तुलना में 16.5 प्रतिशत ज्यादा है।
इस प्रभेद ने प्रतिदिन प्रति हेक्टेयर 2.72 क्विंटल हरा चारा की उपज दी, जो नेशनल चेक की तुलना में 3.4 प्रतिशत अधिक है। उत्तर पूर्व क्षेत्र में लीफ ब्लाइट रोग के प्रति यह मध्यम प्रतिरोधी है तथा पौधे की उंचाई 56.5 सेमी है।
राष्ट्रीय समूह बैठक में केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अनुपम मिश्र, आइसीएआर के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ डीके यादव, सहायक महानिदेशक (खाद्य एवं चारा फसलें) डॉ एसके प्रधान, भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी के निदेशक डॉ पंकज कौशल, परियोजना समन्वयक डॉ वीके यादव सहित देश भर से आये चारा वैज्ञानिकों ने भाग लिया। बीएयू का प्रतिनिधित्व पौधा प्रजनक डॉ योगेन्द्र प्रसाद ने किया।
बीएयू के कुलपति डॉ एससी दुबे, निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह और आनुवंशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग की अध्यक्ष डॉ मणिगोपा चक्रवर्ती ने इस उपलब्धि के लिए डॉ योगेन्द्र को बधाई दी है!
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