औषधीय गुणों से भरपूर तीसी एवं कुसुम भविष्य की महत्वपूर्ण फसलें हैं : डॉ एमएल जाट

झारखंड कृषि
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  • बीएयू में तेलहन वैज्ञानिकों की राष्ट्रीय समूह बैठक का समापन

रांची। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ एलएल जाट ने कहा है कि तीसी और कुसुम भविष्य की महत्वपूर्ण फसलें हैं। इन्हें किसानों के लिए आकर्षक बनाए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि ये केवल पेट नहीं भरतीं बल्कि स्वास्थ्य संवर्धन भी करती हैं। डॉ जाट बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय वार्षिक रबी दलहन समूह बैठक- 2025 के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे।

डॉ जाट ने कहा कि आनेवाले समय में ये दोनों फसलें किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं। ग्लैमर वाली फसलों द्वारा उत्पन्न चुनौतियां एवं स्वास्थ्य समस्याओं का मुकाबला करने में हमें समर्थ बना सकती हैं। तीसी सदियों से हमारी भोजन पद्धति में शामिल है। इन दिनों हर गतिविधि पैसा, लाभ और आर्थिक प्रतिस्पर्धा से प्रभावित है, किंतु इन तेलहनी फसलों का महत्व इससे ऊपर उठकर है।

बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम आदि राज्यों में धान की कटाई के बाद खाली पड़ी रहनेवाली 12 मिलियन हेक्टेयर भूमि के एक बड़े भाग को इन फसलों के अंतर्गत लाया जा सकता है। ये दोनों फसलें मौसम के अनुरूप अपने को ढाल लेती हैं। इनमें पानी और अन्य उपादान की कम आवश्यकता होती है।

डॉ जाट ने कहा कि देश में तीसी की औसत उत्पादकता प्रति हेक्टेयर लगभग 633 किलो है, किंतु अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण में देश में औसत उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 1000 किलो पाई गई है। शोध प्रयोगों के तहत प्राप्त उपज इंगित करती है की गुणवत्ता युक्त बीज, समुचित फसल प्रबंधन, आवश्यक ढांचगत सुविधाओं और नीतिगत समर्थन से प्रति हेक्टेयर 2 टन तक भी उपज ली जा सकती है।

डॉ जाट ने कहा कि समय की पुकार है कि इस फसल से जुड़े वैज्ञानिकों और किसानों का मनोबल ऊंचा किया जाए। मनोबल ऊंचा रहने पर व्यक्ति कोई भी काम और प्रत्येक काम करने में समर्थ हो सकता है। इस वर्ष अप्रैल में आईसीएआर के महानिदेशक का पदभार संभालने के पूर्व डॉ जाट कृषि अनुसंधान एवं विकास से संबंधित दुनिया की कई अग्रणी संस्थानों में लीडरशिप रोल में काम कर चुके हैं।

आईसीएआर के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ डीके यादव ने कहा कि इन फसलों से संबंधित शोध प्रयासों को गति प्रदान करते समय केवल उत्पादकता नहीं, बल्कि तेल की मात्रा, तेल की गुणवत्ता और फाइबर क्वालिटी का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

बीएयू के कुलपति डॉ एससी दुबे, आईसीएआर के सहायक महानिदेशक (तिलहन एवं दलहन) डॉ संजीव गुप्त और भारतीय तेलहन अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद के निदेशक डॉ आरके माथुर ने भी इन फसलों के वर्तमान फरिदृश्य और चुनौतियों पर प्रकाश डाला। बीएयू के अनुसंधान निदेशक डॉ पीके सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया। संचालन शशि सिंह ने किया।

बैठक ने दोनों फसलों के बारे में कई महत्वपूर्ण अनुशंसाएं भी की गयीं। तीसी फसल में रोगग्रस्त नर्सरी या खेत में उकठा रोग की स्क्रीनिंग सुदृढ़ करने, फसल में इच्छित गुणों के संवर्धन के लिए राष्ट्रीय क्रॉसिंग प्रोग्राम सुदृढ़ करने, बडफ्लाई कीट के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने, फाइबर एक्सट्रैक्शन और फाइबर क्वालिटी का आकलन करने के लिए नियोजित प्रयास करने की अनुशंसा की गई।

कुसुम फसल में लक्ष्यित खूबियों के विकास के लिए राष्ट्रीय क्रॉसिंग प्रोग्राम सुदृढ़ करने, पौधों की संख्या बढ़ाने संबंधी प्रयास शुरू करने और आत्मनिर्भर बीज व्यवस्था, सर्वोत्तम प्रौद्योगिकी के प्रत्यक्षण और मूल्य संवर्धन इकाई से युक्त आदर्श कुसुम ग्राम विकसित करने की अनुशंसा की गई।

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