- हजारों की संख्या में पहुंचेंगे शिवभक्त
गुमला। महाशिवरात्रि को लेकर बाबा टांगीनाथ धाम को पूरी तरह सजाया गया है। धाम परिसर के समस्त मंदिरों का रंगरोगन किया गया है। भक्तों व धाम स्थल की सुरक्षा को चाक चौबंद रखने के लिए पूरे मंदिर परिसर में सीसीटीवी कैमरे से निगरानी रखी जा रही है। जगह-जगह पर बैरिकेडिंग लगाकर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अनेकों वालंटियर्स और पुलिस बल की भी तैनाती की गई है।
बाबा टांगीनाथ धाम विकास सह मेला समिति ने भक्तों को होने वाली कठिनाइयों के मद्देनजर इस बार और बेहतर इंतजाम करने के प्रयास किए हैं। पूरा धाम परिसर तार की जाली से घिरा हुआ है। धाम परिसर के नीचे स्नानागार व शौचालय की व्यवस्था भी की गई है।
पांचवीं छठी शताब्दी से भी पूर्व के बताए जाने वाले इस धार्मिक धरोहर में सदियों से महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य में भव्य मेला का आयोजन होता रहा है। इसमें लाखों श्रद्धालुओं का आगमन होता है। देश के भिन्न भिन्न राज्यों से भक्त यहां अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति करने के लिए आते हैं। यहां मुख्य आकर्षण का केंद्र विशालकाय अक्षय त्रिशूल है। यह भगवान परशुराम का बताया जाता है।
किवदंतियों के अनुसार यह भगवान परशुराम की तपोभूमि के रूप में विख्यात है। आपरूपी निकले सैंकड़ों शिवलिग इस धाम को सुशोभित करते हैं। खुले स्थान में विराजित विशालकाय त्रिशूल पर किसी भी मौसम का कोई असर नहीं होता। ना ही इस पर कभी जंग लगती है।
धाम परिसर के इर्द-गिर्द देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि कालांतर में यह धाम बहुत ही भव्य मंदिरों एवं पाषाणिक मूर्ति कलाओं का केंद्र रहा होगा, जो प्रलय काल के दौरान जमींदोज हो गया हो। इसका स्वरूप धीरे धीरे खुदाई के माध्यम से दृष्टिगोचर होता जा रहा है। संभावना व्यक्त की जाती है कि खुदाई करने पर यहां के अनेकों रहस्य सामने आ सकते हैं।
पहाड़ी के ऊपर मूर्ति निर्माण के साक्ष्य आज भी देखे जा सकते हैं। यहां निर्मित मूर्तियां भगवान विश्वकर्मा की शिल्पकला का साक्षात उदाहरण प्रस्तुत करता है। झारखंड-छत्तीसगढ़ सीमा में स्थित यह प्राचीन धार्मिक स्थल पहाड़ी के उपर विराजमान होने से निरंतर अपनी मनोरम छंटा से श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।
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