
रांची। गुरुद्वारा श्री गुरु नानक सत्संग सभा कृष्णा नगर कॉलोनी द्वारा शहीदी सप्ताह के मौके पर आयोजित तीन दिवसीय कीर्तन समागम के अंतिम दिन गुरुवार को शाम 8 बजे से विशेष दीवान सजाया गया। विशेष दीवान की शुरुआत स्त्री सत्संग सभा की शीतल मुंजाल द्वारा ‘तुझ बिन अवर ना जांड़ा कोई..’ शबद गायन से हुई। हजूरी रागी जत्था भाई महिपाल सिंह एवं साथियों द्वारा ‘गुरु मेरा ज्ञान, गुरु मेरा ध्यान, गुरु गोपाल, पूरण भगवान..’ शबद गायन किया गया।
विशेष रूप से पधारे सिख पंथ के महान कीर्तनी जत्था भाई गुरबक्श सिंह शांत ने रात ‘गुरु बिन जीवन अलख अंधेरो, सर्व पूज्य शरण गुरु तेरो…’ और ‘इन पुत्रन के शीश पर वार दिये सूत चार चार मुये तो क्या हुआ जीवत कई हजार…’ जैसे कई शबद गायन कर साध संगत को गुरबाणी से जोड़ा।
चार साहिबजादों की शहादत के बारे कथावचान करते हुए हेड ग्रंथी ज्ञानी जिवेंदर सिंह ने बताया कि 1704 में चमकौर की घड़ी में गुरु गोविंद सिंह के दो बड़े सुपुत्र बाबा अजीत सिंह जी,बाबा जुझार सिंह जी शहीद हुए।
सरसा नदी पर जब गुरु गोबिंद सिंह जी परिवार जुदा हो रहे थे, तब एक ओर जहां बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ चले गए, वहीं दूसरी ओर छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह, माता गुजरी जी के साथ रह गए थे। उनके साथ ना कोई सैनिक था और ना ही कोई उम्मीद थी जिसके सहारे वे परिवार से वापस मिल सकते।
अचानक रास्ते में उन्हें गंगू मिल गया, जो किसी समय पर गुरु महल की सेवा करता था। गंगू ने उन्हें यह आश्वासन दिलाया कि वह उन्हें उनके परिवार से मिलाएगा और तब तक के लिए वे लोग उसके घर में रुक जाएं। माता गुजरी जी और साहिबजादे गंगू के घर चले तो गए, लेकिन वे गंगू की असलियत से वाकिफ नहीं थे। गंगू ने लालच में आकर तुरंत वजीर खां को गोबिंद सिंह की माता और छोटे साहिबजादों के उसके यहां होने की खबर दे दी, जिसके बदले में वजीर खां ने उसे सोने की मोहरें भेंट की।
खबर मिलते ही वजीर खां के सैनिक माता गुजरी और 7 वर्ष की आयु के साहिबजादा जोरावर सिंह और 5 वर्ष की आयु के साहिबजादा फतेह सिंह को गिरफ्तार करने गंगू के घर पहुंच गए। उन्हें लाकर ठंडे बुर्ज में रखा गया और उस ठिठुरती ठंड से बचने के लिए कपड़े का एक टुकड़ा तक ना दिया। रात भर ठंड में ठिठुरने के बाद सुबह होते ही दोनों साहिबजादों को वजीर खां के सामने पेश किया गया, जहां भरी सभा में उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करने को कहा गया।
कहते हैं सभा में पहुंचते ही बिना किसी हिचकिचाहट के दोनों साहिबजादों ने ज़ोर से जयकारा लगाया ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल।‘ यह देख सब दंग रह गए, वजीर खां की मौजूदगी में कोई ऐसा करने की हिम्मत भी नहीं कर सकता लेकिन गुरु जी की नन्हीं जिंदगियां ऐसा करते समय एक पल के लिए भी ना डरीं। सभा में मौजूद मुलाजिम ने साहिबजादों को वजीर खां के सामने सिर झुकाकर सलामी देने को कहा, लेकिन इस पर दोनों ने सिर ऊंचा करके जवाब दिया कि ‘हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अलावा किसी के भी सामने सिर नहीं झुकाते। ऐसा करके हम अपने दादा की कुर्बानी को बर्बाद नहीं होने देंगे, यदि हमने किसी के सामने सिर झुकाया तो हम अपने दादा को क्या जवाब देंगे जिन्होंने धर्म के नाम पर सिर कलम करवाना सही समझा, लेकिन झुकना नहीं’।
वजीर खां ने दोनों साहिबजादों को काफी डराया, धमकाया और प्यार से भी इस्लाम कबूल करने के लिए राज़ी करना चाहा, लेकिन दोनों अपने निर्णय पर अटल रहे.आखिर में दोनों साहिबजादों को पंजाब के सरहद प्रांत में जिंदा दीवारों में चुनवाने का एलान किया गया। कहते हैं दोनों साहिबजादों को जब दीवार में चुनना आरंभ किया गया तब उन्होंने ‘जपुजी साहिब’ का पाठ करना शुरू कर दिया। दीवार पूरी होने के बाद अंदर से जयकारा लगाने की आवाज़ भी आई।
सत्संग सभा के अध्यक्ष द्वारका दास मुंजाल एवं सचिव अर्जुन देव मिढ़ा ने रागी जत्था भाई गुरबक्श सिंह शांत एवं साथियों को गुरुघर का सरोपा देकर नवाजा। श्री अनंद साहिब जी के पाठ, अरदास, हुकुम नामा एवं कढ़ाह प्रसाद वितरण के साथ दीवान की समाप्ति रात 11.30 बजे हुई। मंच संचालन मनीष मिढ़ा ने किया। मौके पर सत्संग सभा द्वारा श्रद्धालुओं के लिए गुरु का अटूट लंगर भी चलाया गया।
दीवान में सभा के प्रधान द्वारका दास मुंजाल, सुंदर दास मिढ़ा, हरविंदर सिंह बेदी, अशोक गेरा, चरणजीत मुंजाल, जीवन मिढ़ा, मोहन काठपाल, हरगोविंद सिंह, सुरेश मिढ़ा, वेद प्रकाश मिढ़ा, नरेश पपनेजा, अमरजीत गिरधर, लक्ष्मण दास मिढ़ा, लक्ष्मण सरदाना, हरीश मिढ़ा, लेखराज अरोड़ा, राजकुमार सुखीजा, इंदर मिढा, रमेश पपनेजा, कवलजीत मिढ़ा, महेश सुखीजा, सुभाष मिढ़ा, हरजीत बेदी, जीतू काठपाल, पाली मुंजाल, राजेंद्र मक्कड़, अनूप गिरधर, बिनोद सुखीजा, लक्ष्मण दास सरदाना, अमरजीत मुंजाल, पवनजीत सिंह, महेन्द अरोड़ा, मोहन लाल अरोड़ा, जीतू अरोड़ा, नीरज गखड़, अश्विनी सुखीजा, सागर थरेजा, राकेश गिरधर, नीरज सरदाना, ईशान काठपाल, कमल अरोड़ा, रमेश तेहरी, हरविंदर सिंह, उमेश मुंजाल, कमल मुंजाल मौजूद थे।
इसके अलावा गुलशन मिढ़ा, रमेश गिरधर, पंकज मिढ़ा, मनीष गिरधर,ज्ञान मादन पोतरा, सूरज झंडई, गौरव मिढ़ा, रौनक ग्रोवर, अमन डावरा, पियूष मिढ़ा, आशु मिढ़ा, नवीन मिढ़ा, रिक्की मिढ़ा, बबली दुआ, गीता कटारिया, शीतल मुंजाल, रेशमा गिरधर, बंसी मल्होत्रा, मंजीत कौर, खुशबू मिढ़ा, दुर्गी देवी मिढ़ा, बिमला मिढ़ा, तीर्थी काठपालिया, नीता मिढ़ा, इंदु पपनेजा, रेशमा गिरधर, ममता सरदाना, मीना गिरधर, श्वेता मुंजाल, उषा झंडई, नीतू किंगर, ममता थरेजा, कंचन सुखीजा, सुषमा गिरधर, उषा झंडई, गरिमा पपनेजा, गूंज काठपाल समेत अन्य श्रद्धालु भी शामिल हुए।
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