Jharkhand : रांची। झारखंड प्रदेश संयुक्त शिक्षक मोर्चा ने छात्र हित में आदर्श दिनचर्या में संशोधन करने के साथ कई अन्य मांगें की है। इसे लेकर शिक्षा सचिव को ज्ञापन सौंपा है। इसकी प्रति मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री सहित निदेशक, माध्यमिक एवं प्राथमिक शिक्षा को भी सौंपा। आवश्यक निर्णय लेने की मांग की।
मोर्चा के संयोजक विजय बहादुर सिंह, अमीन अहमद एवं प्रदेश प्रवक्ता अरुण कुमार दास ने कहा कि राज्य की भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं बाल मनोवैज्ञानिक पहलुओं के तथ्यों पर आधारित विद्यालय समय सारणी के साथ आदर्श दिनचर्या पूर्व से संचालित होते आ रहा हैं। इसमें अनावश्यक छेड़छाड़ से बच्चों सहित शिक्षा हित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, झारखंड राज्य उर्दू शिक्षक संघ, झारखंड स्टेट प्राईमरी टीचर्स एसोशिएशन और राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ +2 संवर्ग के विजय बहादुर सिंह, अमीन अहमद, मंगलेश्वर उरांव, डॉ सुधांशु कुमार सिंह एव अरुण कुमार दास ने मांग पत्र सौंपा। उन्होंने कहा कि तथ्यों का अवलोकन करते हुए पूर्व से चली आ रही समय सारणी में अनावश्यक छेड़छाड़ नहीं की जाए। संपूर्ण राज्य के लिए अविलंब लागू किया जाय।
मोर्चा ने कहा कि दिवाकालीन 10 AM से 4 PM या 8 AM से 2 PM और शनिवार 8 AM से 11.30 AM एवं प्रातः कालीन 6.30 AM से 11.30 AM एवं शनिवार 6.30 AM से 9.30 AM लागू हो।
मोर्चा ने की ये मांगें
(1) विद्यालय समय सारणी से संबंधित विभागीय अधिसूचना (संख्या-2144, दिनांक 2 नवंबर, 2021) के साथ-साथ अब तक कई आदेश इस संबंध में जारी किए गए हैं, जो आपस में ही अंतर्द्वंद एवं भ्रम की स्थिति उत्पन्न करते हैं।
(2) विगत 2017 से लेकर अब तक राज्य के सभी शिक्षक संगठनों के साथ विभागीय वार्ता एवं बैठकों में पारित प्रस्तावों को नजरअंदाज कर छात्र एवं शिक्षक हितों के प्रतिकूल विभागीय आदेश जारी करते हुए नित्य नए-नए अव्यवहारिक प्रयोग किए जा रहे हैं।
(3) आरटीई द्वारा निर्धारित मानक वार्षिक शैक्षणिक घंटे से राज्य में लगभग 350 घंटे से भी ज्यादा शैक्षणिक घंटे संचालित किए जा रहे हैं। इसके बावजूद मात्र कोरोना संक्रमण काल का हवाला देते हुए विद्यालय समयावधि को बढ़ाने की अव्यवहारिक विभागीय जिद छात्र हित के प्रतिकूल से ज्यादा और कुछ भी नहीं प्रतीत होता है। क्योंकि कोरोना संक्रमण से पड़ोसी राज्य बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि देश के तमाम राज्य प्रभावित हुए हैं, ना कि सिर्फ झारखंड ही प्रभावित रहा है। अतः उन सभी राज्यों के विद्यालय समय सारणी का भी अवलोकन किया जा सकता है।
(4) शैक्षणिक गुणवत्ता की संवृद्धि मात्र शैक्षणिक घंटे में वृद्धि करके नहीं प्राप्त की जा सकती है। इससे बच्चों में शिक्षा के प्रति अरुचि से ज्यादा कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
(5) शिक्षा में गुणवत्ता हासिल करने के लिए कक्षा एवं बच्चों की संख्या के अनुरूप शिक्षकों की उपलब्धता, कक्षा कक्ष, खेलकूद के लिए पर्याप्त खेल मैदान, पेयजल की उपलब्धता जैसे अति आवश्यक भौतिक संसाधनों की मुहैया कराई जाए, ये गतिविधियां मानक रूप से संचालित की जा सके।
(6) विगत वर्षों से विभाग की शिक्षा बजट की बहुत बड़ी राशि NGO पर खर्च किए जाने की परंपरा विकसित हो चुकी है, जो सरकारी राजस्व का घोर अपव्यय है, क्योंकि NGO की भूमिका छात्रों की शैक्षणिक गुणवत्ता के उन्नयन में अब तक नगण्य रही है। इस राजस्व का उपयोग विद्यालय को आवश्यक संसाधनों से युक्त कर शिक्षा में गुणवत्ता के वांछित लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
(7) राज्य में पड़ने वाली गर्मी एवं सर्दी को देखते हुए खेल एवं शारीरिक गतिविधियां अपराह्न 1 बजे एवं 3 बजे से कराने का विभागीय आदेश बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों के बहुमूल्य मानव संसाधन को एक बड़ी क्षति पहुंचाने वाला आत्मघाती कदम साबित होगा।
(8) शिक्षा एवं बाल मनोवैज्ञानिकों के साथ-साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुसार विद्यालय में बच्चों को 6 से 7 घंटे लगातार शैक्षणिक एवं शारीरिक गतिविधियों में बनाए रखना उनके मानसिक और स्वास्थ्य के प्रतिकूल है।
(9) सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों की आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति के अनुरूप लगभग 90% से भी ज्यादा बच्चे घर से बिना भोजन किए ही प्रतिदिन विद्यालय आते हैं। ऐसी परिस्थिति में उन्हें लंबी अवधि तक भूखे पेट शैक्षणिक एवं शारीरिक गतिविधि में संलग्न रखना उनमें शिक्षा के प्रति अरुचि पैदा करेगा। इसका परिणाम विद्यालय से बच्चों का पलायन अथवा ड्रॉप आउट के रूप में आना तय है। क्योंकि एक बच्चे के नैसर्गिक आवश्यकता को किसी भी प्रतिकूल सरकारी आदेश के अधीन नहीं किया जा सकता है।
(10) झारखंड के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, भाषाई एवं भौगोलिक क्षेत्रों में विविधता पाई जाती है। इसके कारण बच्चों के शैक्षणिक, नैतिक एवं मानसिक शिक्षण की आवश्यकताएं भिन्न भिन्न है। इन आवश्यकतओं के लिए विभाग के द्वारा जारी किए गए आदर्श दिनचर्या एक सराहनीय कदम है, परंतु इसे पूरे राज्य के लिए एक रोबोटिक तरीके से लागू करना बच्चों के लिए उबाऊ ही नहीं अपितु उन्हें शिक्षा के प्रति अरुचि पैदा करेगा। इससे राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने में एक बड़ा बाधक सिद्ध होगा। इसके लिए यह आवश्यक होगा कि एक शिक्षक जो बच्चों के सर्वथा समीप रहता है एवं उनकी आवश्यकताओं को भली-भांति समझता है। उन्हें विवेकाधिकार होना चाहिए कि वे सामयिक आवश्यकतानुसार आदर्श दिनचर्या में विचलन कर सके।