पलाश–आदिवा ब्रांड ने जीता दिल्ली का दिल

झारखंड
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  • झारखंड की सखी मंडलों ने रचा नया कीर्तिमान
  • 14 लाख से ज्यादा के आदिवा ज्वेलरी की बिक्री
  • आदिवा ज्वेलरी और रागी लड्डू की अधिक मांग

रांची। नई दिल्ली के भारत मंडपम में 14 से 27 नवंबर 2025 तक आयोजित 44वें व्यापार मेले-2025 में जेएसएलपीएस से जुड़े सखी मंडलों की महिलाओं ने अत्यंत प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज की। झारखंड सरकार और जेएसएलपीएस का लक्ष्य है कि सखी मंडल की महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी होकर सफल उद्यमी बनें। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी विकास और आजीविका सशक्तिकरण का मजबूत संकेत है।

उत्पादों की बिक्री एवं प्रदर्शन किया

नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित व्यापार मेले में झारखंड की ग्रामीण महिलाओं ने पलाश और आदिवा ब्रांड के अंतर्गत अपने हस्तनिर्मित खाद्य एवं गैर-खाद्य उत्पादों की बिक्री एवं प्रदर्शन किया।

पलाश ब्रांड के उत्पादों में रागी/तिल के लड्डू, रागी मिक्सचर, अचार, अरहर दाल, सरसों का तेल इत्यादि शामिल रहे, वहीं आदिवा ब्रांड के अंतर्गत पारंपरिक चांदी व ऑक्सीडाइज़्ड ज्वेलरी, तसर सिल्क साड़ियाँ, प्राकृतिक ब्यूटी उत्पाद और डोकरा कला जैसी वस्तुओं ने खास आकर्षण बटोरा।

आभूषण व लड्डू को पसंद किया

दिल्ली के लोगों ने विशेष रूप से आदिवा ब्रांड के आभूषणों को पसंद किया, जिससे 14.84 लाख रुपये से अधिक की ज्वेलरी बिक्री दर्ज हुई। खाद्य उत्पादों में सिमडेगा की ‘कॉलेबिरा फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी’ की महिलाओं द्वारा बनाए गए रागी और तिल के लड्डू स्वाद और गुणवत्ता के कारण काफी सराहे गए। इनकी बिक्री भी उल्लेखनीय रही।

इसी तरह, जमशेदपुर की मीनू रक्षित के नैचुरल ब्यूटी प्रोडक्ट्स, गोड्डा जिला के तसर सिल्क और दुमका जिला के डोकरा कला को भी लोगों ने काफी पसंद किया।

30 लाख से ज्यादा की बिक्री की

इस राष्ट्रीय मंच ने ग्रामीण महिला कारीगरों को अपने कौशल, परंपरा और उत्पादों को देशभर के उपभोक्ताओं के सामने प्रस्तुत करने का अवसर दिया। मेले के दौरान झारखंड की महिला उद्यमियों ने 30.72 लाख रुपये का व्यापार किया, जो उनके उत्पादों की गुणवत्ता और बाज़ार में बढ़ती मांग को दर्शाता है।

जेएसएलपीएस, ग्रामीण विकास विभाग द्वारा ग्रामीण महिलाओं को कौशल प्रशिक्षण, बाज़ार से जुड़ाव और उद्यमिता विकास के माध्यम से लगातार सशक्त बनाया जा रहा है। इसी पहल के परिणामस्वरूप अब तक 9.82 लाख ग्रामीण महिलाएँ ‘लखपति दीदी’ के रूप में उभर चुकी हैं। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा और गति मिली है।

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