रांची। झारखंड हाईकोर्ट से गुरुवार को हेमंत सरकार को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने झारखंड में बालू घाटों और लघु खनन क्षेत्रों के आवंटन पर लगाई गई रोक हटाने का राज्य सरकार का आग्रह अस्वीकार कर दिया है।
आज (गुरुवार) चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की बेंच ने इस संबंध में दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए एक बार फिर स्पष्ट किया कि राज्य सरकार जब तक पेसा, 1996 को अधिसूचित नहीं करती, तब तक कोर्ट इसकी अनुमति नहीं देगा।
राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल राजीव रंजन ने कोर्ट को बताया कि नियमावली लागू करने के लिए जो ड्राफ्ट तैयार किया था, उस पर 17 विभागों से मंतव्य मांगा गया था।
इनमें से पांच विभागों का मंतव्य अब तक नहीं मिल पाया है। सभी विभागों का मंतव्य मिलने के बाद इसे कैबिनेट में भेजा जाएगा। फिर कैबिनेट की मंजूरी के बाद पेसा नियमावली लागू कर दी जाएगी।
महाधिवक्ता ने इसके लिए कोर्ट से समय देने का आग्रह किया। इस पर पीठ ने बालू घाटों और लघु खनन क्षेत्रों के आवंटन पर रोक के अपने अंतरिम आदेश को बरकरार रखते हुए सुनवाई की अगली तारीख 30 अक्टूबर निर्धारित की है। सुनवाई के दौरान कोर्ट के आदेश पर पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव मनोज कुमार भी उपस्थित रहे।
बता दें कि, 9 सितंबर को इस मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य में पेसा कानून लागू होने तक बालू घाट समेत सभी प्रकार के लघु खनिजों के लीज आवंटन पर रोक लगा दी थी।
कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि राज्य सरकार 73वें संविधान संशोधन की मंशा को कमजोर कर रही है। अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार स्थानीय निकायों को मिलने चाहिए, लेकिन सरकार नियमावली लागू करने में लगातार टालमटोल कर रही है।
हाईकोर्ट ने जुलाई, 2024 में एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद झारखंड सरकार को दो माह के अंदर राज्य में पेसा नियमावली अधिसूचित करने का आदेश दिया था।
कोर्ट ने कहा था कि संविधान के 73वें संशोधन के उद्देश्यों के अनुरूप तथा पेसा कानून के प्रावधान के अनुसार पेसा नियमावली बना कर लागू किया जाए। इस आदेश का अनुपालन अब तक न होने पर आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने अवमानना याचिका दायर की है।
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