रांची। कार्तिक कृष्ण अमावस्या 21 अक्टूबर को जैनियों के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का मोक्ष कल्याणक महोत्सव मनाया गया। रांची स्थित दोनों मन्दिरों में प्रातः निर्वाण लाड़ू समर्पित कर विशेष पूजा अर्चना की गई। भगवान महावीर के मुख्य गणधर गौतम स्वामी को भी इसी दिन संध्या काल में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। संध्या बेला पर दोनों मन्दिर में भव्य आरती कर निर्वाण महोत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
संवत 2551 वर्ष पूर्व 72 वर्ष की अवस्था में भगवान महावीर का मोक्ष कल्याणक हुआ था। दिवाली का त्योहार जैन धर्म के अनुयायियों के लिए गहन आध्यात्मिक अर्थ रखता है। जहां आमतौर पर दीपावली को धन और समृद्धि का पर्व माना जाता है, वहीं जैन समुदाय के लिए यह महावीर निर्वाण दिवस के रूप में श्रद्धा, संयम और मोक्ष का प्रतीक है।
यह वही दिन है जब भगवान महावीर जैन धर्म के 24 वें और अंतिम तीर्थंकर ने पावापुरी (बिहार) में अपना देह त्यागकर मोक्ष प्राप्त किया था। जैन व्यापारी समुदाय के लिए दीपावली का दिन नए लेखा-वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। शाम के समय वे अपने नए बही-खातों (लेखा पुस्तकों) का शुभ मुहूर्त करते हैं, जिसे चोपड़ पूजन कहा जाता है। यह केवल व्यापारिक परंपरा नहीं, बल्कि सत्कर्म और ईमानदारी से नए आरंभ का प्रतीक माना जाता है।
मौके पर पूर्व अध्यक्ष पूरणमल सेठी, छीतरमल गंगवाल, नरेन्द्र गंगवाल, अध्यक्ष प्रदीप बाकलीवाल, मंत्री जीतेन्द्र छाबड़ा, कोषाध्यक्ष प्रमोद झांझरी सहित विनोद झांझरी, राकेश काशलीवाल, संजय काशलीवाल एवम् कई गणमान्य मौजूद थे। दोनों जिनालयों में निर्वाण लाडू समर्पित करने के बाद संध्या आरती की गई। यह जानकारी मीडिया प्रभारी राकेश काशलीवाल ने दी।
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