- भारत सरकार करे पुनर्विचार याचिका दायर
- राज्यपाल के माध्यम से पीएम को भेजा पत्र
रांची। शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के पहले से नियुक्त शिक्षकों को शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करने को अनिवार्य करने, पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण नहीं करने पर सेवा मुक्त करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से झारखंड के शिक्षक खासे नाराज और आहत हैं। एक सितंबर, 2025 को सुप्रीम कोर्ट के दिए इस फैसले राज्य के लगभग तीस हजार शिक्षकों की नौकरी खतरे में आ गई है।
अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के बैनर तले राज्य के विभिन्न जिलों के शिक्षकों ने राजभवन मार्च किया। सभा की। राज्यपाल को प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन समर्पित किया। मार्च कोर्ट कंपाउंड से शुरू होकर राजभवन तक गया।
राज्यपाल के माध्यम से प्रधानमंत्री को दिए मांग पत्र में संघ ने कहा है कि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के 2010 की अधिसूचना में यह व्यवस्था दी गई है कि इसके निर्गत की तिथि से पूर्व के नियुक्त सेवारत शिक्षकों को शिक्षक पात्रता परीक्षा की अहर्ता प्राप्त करने की जरूरत नहीं है। संघ ने कहा कि जब विधायिका ने इतनी सुस्पष्ट व्यवस्था पहले दी है, तब सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसके विपरीत दिया गया फैसला चुनौती देने योग्य है।
इसलिए संघ ने प्रधानमंत्री से मांग की है कि भारत सरकार कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करे। आरटीई कानून में आवश्यक व्यवस्था अंकित करने के लिए संशोधन की कार्रवाई करे। राजभवन मार्च में हजारों की संख्या में शिक्षक और शिक्षकाएं शामिल हुए।
राजभवन का मार्च का नेतृत्व अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनूप केसरी ने किया। महासचिव राम मूर्ति ठाकुर ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि झारखंड के शिक्षक इस विषय पर राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे मुहिम के साथ काम करेंगे।
संघ के पूर्व अध्यक्ष उत्तिल यादव, संगठन महामंत्री असदुल्लाह, कोषाध्यक्ष संतोष कुमार, उपाध्यक्ष दीपक दत्ता, बाल्मीकि कुमार, प्रमंडलीय अध्यक्ष अजय सिंह, सलीम सहाय तिग्गा, सुधीर दुबे, राजेश सिन्हा, सुनील कुमार, माणिक प्रसाद, अमरेश सिंह, व्रमचंद्र खेरवार, शंभू शरण शर्मा, विभूति कुमार, हरीश कुमार, उपेन्द्र कुमार, बिनोद चौधरी, श्रीकांत सिन्ह, राधाकांत साह सहित अन्य पदधारियों ने संबोधित किया।
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