
जमशेदपुर। टाटा स्टील जूलॉजिकल पार्क में मित्रता दिवस के उपलक्ष्य में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन रविवार को किया गया। इसमें हाथों से पाले गए मैंड्रिल शावक ‘रंगा’ का पहला जन्मदिन उत्सवपूर्वक और भावनात्मक वातावरण में मनाया गया। यह आयोजन बच्चों में वन्यजीवों के प्रति जागरूकता, संवेदनशीलता और सह-अस्तित्व की भावना को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से किया गया था।
इस अवसर पर शहर के विभिन्न विद्यालयों और महाविद्यालयों से लगभग 100 छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। कार्यक्रम की शुरुआत सुबह 10 बजे सीटीए परिसर में स्वागत भाषण के साथ हुई, जिसमें चिड़ियाघर प्रशासन ने आयोजन की पृष्ठभूमि और उद्देश्य को साझा किया।
बच्चों ने वृक्षों को ‘फ्रेंडशिप बैंड’ बांधकर पर्यावरण और जैव विविधता के साथ आत्मीयता व मित्रता का प्रतीकात्मक संदेश प्रस्तुत किया। इसके पश्चात, सीटीए भवन में आयोजित एक विशेष सत्र में रंगा की जीवन यात्रा पर प्रभावशाली पॉवरपॉइंट प्रस्तुति दी गई।
चिड़ियाघर की बायोलॉजिस्ट सुश्री निशा माझी एवं लैब टेक्नीशियन अर्चित अर्णव द्वारा प्रस्तुत इस सत्र में रंगा के जन्म, माता द्वारा अस्वीकृति, चिड़ियाघर टीम की देखभाल, व्यवहारिक विकास और सामाजिक समायोजन की संपूर्ण यात्रा को विस्तार से दर्शाया गया।
डिप्टी डायरेक्टर डॉ. पालित ने मैंड्रिल प्रजाति की जैविक विशेषताओं, पालन-पोषण में आने वाली चुनौतियों और देखरेख में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की महत्ता पर प्रकाश डाला।
रंगा की देखभाल में अभूतपूर्व भूमिका निभाने वाले श्री एवं श्रीमती कुंडु को चिड़ियाघर के सचिव कैप्टन अमिताभ द्वारा विशेष रूप से सम्मानित किया गया। साथ ही, समर्पित कर्मचारियों श्रीमती नम्पसी एवं श्री लिंसा को भी उनके सेवा योगदान के लिए प्रशस्ति-पत्र प्रदान किए गए।
इसके पश्चात रंगा का जन्मदिन केक काटकर मनाया गया, जिसमें उपस्थित सभी विद्यार्थियों, अधिकारियों, कर्मचारियों और अतिथियों ने उत्साहपूर्वक सहभागिता की। कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन एवं सामूहिक भोज के साथ हुआ।
इस अवसर पर चिड़ियाघर के सचिव कैप्टन अमिताभ, मानव संसाधन प्रमुख अजय कुमार, डिप्टी डायरेक्टर डॉ. मानिक पालित, डॉ. नईम अख्तर, कंपनी सेक्रेटरी प्रशांत कुमार, श्री एवं श्रीमती कुंडु, चिड़ियाघर के अधिकारी, कर्मचारी एवं वैज्ञानिक दल उपस्थित रहे।
यह आयोजन टाटा स्टील जूलॉजिकल पार्क की उस मूल भावना का सजीव उदाहरण है, जिसमें विज्ञान, सेवा और संवेदनशीलता के समन्वय से वन्यजीव संरक्षण को एक मानवीय दृष्टिकोण प्रदान किया जाता है। रंगा की यात्रा यह सिद्ध करती है कि स्नेह, अनुशासन और वैज्ञानिक प्रयास मिलकर असंभव को संभव बना सकते हैं।
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