
रांची। प्रधानमंत्री के निर्देश पर कोल इंडिया की सहायक कंपनी सीएमपीडीआई ने सक्रिय और परित्यक्त कोयला खदानों में 437 खदान रिक्तियों का व्यापक मानचित्रण और जल गुणवत्ता मूल्यांकन किया है। इसका उद्देश्य जल संसाधन में परिवर्तन की उनकी क्षमता का मूल्यांकन करना है।
इस अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि ये शून्य सामूहिक रूप से प्रति वर्ष अनुमानित 2 लाख सात सौ साठ लाख किलोलीटर अतिरिक्त जल प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त, पश्चिमी देशों में खदानों का पानी अम्लीय होने के विपरीत अधिकांश भारतीय कोयला खदानों से निकलने वाला खदान जल तुलनात्मक रूप से अच्छी गुणवत्ता का होता है। मामूली (मॉडरेट) उपचार के बाद ही घरेलू, औद्योगिक और कृषि उपयोग के लिए उपयुक्त होता है।
कुछ मामलों में उपचारित जल स्वयं सहायता समूहों (सेल्फ हेल्प ग्रुप्स) की भागीदारी के माध्यम से लागत-प्रभावी दरों पर बोतलबंद पानी के उत्पादन के लिए भी उपयुक्त हो सकता है। सीएमपीडीआई के अध्ययन ने संभावित अनुप्रयोगों के लिए इसकी गुणवत्ता की पुष्टि करने के लिए सीपीसीबी वर्गीकरण और बीआईएसः10500 मानकों के आधार पर खदान जल की गुणवत्ता का मानकीकरण किया।
इसके अलावा, सीएमपीडीआई ने सिंचाई, सामुदायिक आपूर्ति और बोतलबंद पानी के लिए उपचारित खदान जल के उपयोग का प्रदर्शन और आगे अनुसंधान करने के लिए झारखंड सहित देश के छह राज्यों में 22 पायलट परियोजनाओं की पहचान की है। यह पहल स्वच्छ जल, स्वच्छता और जलवायु कार्रवाई के लिए संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (यूएन सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स) के अंतर्गत भारत की प्रतिबद्धताओं में प्रत्यक्ष योगदान देती है।
एक समीक्षा बैठक में कोयला मंत्रालय के सचिव (कोयला) ने सीएमपीडीआई की सराहना की। कोयला कम्पनियों को खदान जल के उपचार और पुनः उपयोग के लिए कार्य योजनाएं विकसित करने का निर्देश दिया। इसका उद्देश्य स्थानीय सामुदायिक कल्याण और जल सुरक्षा को बढ़ाना है।
यह भारत के कोयला क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण सतत्ता मील का पत्थर है, जो पूर्व पर्यावरणीय देनदारियों को मूल्यवान सामुदायिक और औद्योगिक संसाधनों में बदल रहा है।
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