सुंदरम केशरी
गुमला। झारखंड के गुमला जिले के जारी प्रखंड की जरडा पंचायत का यह मंगरूतला गांव है। यह पहाड़ों की चोटी पर बसा है। यहां के ग्रामीण आज भी आला अधिकारियों की कृपा दृष्टि की बाट जोह रहा है। यहां शादी के लिए रिश्ते तक नहीं आते हैं।
आवास योजना का लाभ नहीं
मंगरूतला में 25 से 30 परिवार रहते हैं। हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि सरकार द्वारा चलाई जा रही ‘अबुआ आवास’ और ‘पीएम आवास’ जैसी योजनाओं का लाभ आज तक किसी भी परिवार को नहीं मिला है। ग्रामीण धनो खेरवाईन ने बताया कि सड़क के अभाव में शादी के लिए रिश्ते तक नहीं आते। आज तक कोई भी सरकारी अधिकारी उनके गांव तक नहीं पहुंचा है। स्वास्थ्य संबंधी समस्या होने पर मरीजों को खाट के सहारे 3 किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग तक पैदल ले जाना पड़ता है। बरसात के दिनों में तो पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है।
सड़क का नामोनिशान नहीं
गांव तक पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं है। पगडंडीनुमा रास्ते में बड़े-बड़े पत्थर और गहरी घाटियां हैं, जिससे हर रोज ग्रामीणों को सब्र का इम्तिहान देना पड़ता है। बड़ी मुश्किल से दोपहिया वाहन गांव तक पहुंच पाते हैं।

गंदे चुएं से बुझ रही प्यास
ग्रामीण पानी की हर जरूरत के लिए एकमात्र ‘चुएं’ पर निर्भर है। यह चुआं भी बढ़ती गर्मी के साथ सूखता जाता है। बरसात के दिनों में पानी लाल व दूषित हो जाता है। एकमात्र चुएं से ग्रामीणों की पानी की हर जरूरत पूरी नहीं हो पाती। आजादी के अमृतकाल में भी मूलभूत जरूरतों के लिए ग्रामीण तरस रहे हैं।
पानी-सड़क के लिए संघर्ष जारी
ग्रामीण धनो कोरवाइन, तेजू बड़ाइक और प्रसाद खेरवार का कहना है कि पानी के लिए कई बार आवेदन दिए गए हैं, लेकिन हर बार “हो जाएगा” कहकर टाल दिया जाता है। आज तक पानी नहीं आया है। ग्रामीण आज भी ढिबरी युग में जी रहे हैं। गांव में बिजली का पोल लगा है, लेकिन बिजली नहीं आई। ग्रामीण मोबाइल और टॉर्च चार्ज करने के लिए दूसरे गांव जाते हैं या सोलर का सहारा लेते हैं।
शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं
स्कूली बच्चे सोलर से बैटरी चार्ज करके या लालटेन की रोशनी में पढ़ाई करते हैं। स्कूली बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाती है। दिन के उजाले में तो पढ़ाई होती है, लेकिन रात के अंधेरे में पढ़ाई में दिक्कत होती है। ग्रामीणों के मुताबिक, जन समस्या शिविरों में भी शिकायतें की गईं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। ग्रामीण जहां भी जन समस्या शिविर लगते हैं, वहां आवेदन लेकर जाते हैं। सारे अधिकारी समस्या के समाधान का आश्वासन देते हैं, लेकिन आज तक कुछ भी नहीं हुआ।

आंगनबाड़ी तक नहीं है यहां
नरुता कुमारी, दुर्गा खेरवार और तेतरू खेरवार ने बताया कि उनके गांव में 20 से 25 छोटे बच्चे-बच्चियां हैं, लेकिन आज तक यहां एक भी आंगनबाड़ी नहीं बनी है। इससे उनके बच्चों के भविष्य पर गहरा असर पड़ रहा है।
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