बिहार एवं झारखंड में चल रहा ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’

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समेकित बागवानी एवं पशुधन आधारित कृषि अपनाएं, बढ़ाएं आय और पोषण : डॉ. अनुप दास

पटना। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा संचालित ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के चौदहवें दिन भी बिहार एवं झारखंड में यह अभियान पूरी ऊर्जा और उत्साह के साथ जारी रहा। इस दौरान वैज्ञानिकों, कृषि विशेषज्ञों एवं अधिकारियों की टीमों ने ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा किया। किसानों से प्रत्यक्ष संवाद स्थापित किया। किसानों को उन्नत, वैज्ञानिक एवं टिकाऊ कृषि तकनीकों की जानकारी दी गई। साथ ही, किसानों ने भी अपनी जमीनी समस्याएं खुलकर साझा कीं, जिनके समाधान मौके पर ही सुझाए गए।

इस अभियान के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के निदेशक डॉ. अनुप दास, प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अभय कुमार एवं अन्य कृषि वैज्ञानिकों की टीम ने झारखंड के कोडरमा जिले के मदनगुंडी और रामगढ़ जिले के केरिबंदा एवं जमीर गांवों का दौरा किया।

किसानों के साथ संवाद के दौरान यह पाया गया कि वे मिर्च में मुरझाने की बीमारी, धान में ब्लैक स्मट रोग, मक्का में कीट प्रकोप और धान में खरपतवार नियंत्रण जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, किसानों को मृदा स्वास्थ्य हानि, यंत्रों की कमी, अत्यधिक बीज दर का उपयोग, बीजों की अधिक लागत तथा संकर बीजों के कारण हर बार बीज खरीदने की आवश्यकता जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है।

कुछ क्षेत्रों में कोयला खनन के प्रभाव भी कृषि पर दिखाई दे रहे हैं। वहीं, यह भी देखा गया कि खेती मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा की जा रही है, जबकि पुरुष प्रायः खनन जैसे अन्य कार्यों में संलग्न हैं।

निदेशक डॉ. अनुप दास ने किसानों को आय, पोषण और जलवायु-अनुकूल उत्पादन प्रणाली के लिए समेकित बागवानी आधारित कृषि अपनाने का सुझाव दिया। उन्होंने आय बढ़ाने के लिए पशुपालन विशेषकर सूअर, मुर्गी, बकरी पालन, बहुवर्षीय चारा फसलें, द्वितीयक कृषि गतिविधियां आदि को बढ़ावा देने के अवसरों पर बल दिया। धान और रबी फसलों के लिए सीधी बुआई, स्वर्ण श्रेया जैसी कम अवधि की धान की किस्में, शून्य जुताई तकनीक अपनाने की सलाह दी गई।

अधिक आय के लिए ड्रिप फर्टिगेशन और मल्चिंग तकनीक के साथ उत्थित क्यारियों में सब्जी उत्पादन की सलाह दी गई। झारखंड कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा पीएम-कुसुम, टपक सिंचाई प्रणाली पर अनुदान, किसान क्रेडिट योजना (केसीसी) आदि सरकारी योजनाओं की जानकारी भी साझा की गई।

इसी कड़ी में, अटारी, पटना के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. डी.वी. सिंह ने अपनी टीम के साथ चतरा जिले के लड़कुआ एवं गया जिले के गोपालपुर गांव का दौरा किया, जिसमें संबंधित कृषि विज्ञान केन्द्रों के प्रमुख भी मौजूद थे। वहां उन्होंने किसानों से सीधा संवाद कर मिट्टी की गुणवत्ता के अनुसार उर्वरक प्रबंधन, प्राकृतिक और जैविक खेती की तकनीकें, वर्षा पर आधारित कृषि की रणनीतियां और कृषि यंत्रों के समुचित उपयोग की विस्तृत जानकारी दी। यह अभियान किसानों को आत्मनिर्भर बनाने और उनकी खेती को अधिक लाभकारी और टिकाऊ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल सिद्ध हो रहा है।

अभियान की सफलता में बिहार एवं झारखंड में कार्यरत कृषि विज्ञान केन्द्रों, राज्य एवं केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसंधान संस्थानों एवं केंद्रों तथा राज्य सरकारों के कृषि विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इन सभी संस्थानों ने किसानों तक आधुनिक कृषि तकनीकों की जानकारी पहुंचाने एवं कार्यक्रमों के आयोजन में सक्रिय योगदान दिया।

इस अभियान का समन्वयन कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (अटारी), जोन-IV, पटना एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना द्वारा किया जा रहा है। दोनों संस्थानों के नेतृत्व में सभी सहभागी संस्थानों की टीमें गांव-गांव जाकर जागरूकता फैला रही हैं। अभियान में पारंपरिक ज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के समन्वय पर विशेष बल दिया जा रहा है, जिससे किसान पर्यावरण के अनुकूल, लाभकारी और दीर्घकालिक कृषि को अपना सकें।

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