बिहार में फसल विविधीकरण टिकाऊ कृषि का प्रमुख आधार है : संजय कुमार अग्रवाल

बिहार कृषि
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पटना। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना एवं बिहार राज्य जैव विविधता पर्षद के संयुक्त तत्वावधान में एक कार्यशाला का आयोजन 21 मई, 2025 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना में किया गया। इसका विषय ‘कृषि एवं बागवानी क्षेत्र में बिहार राज्य जैव विविधता रणनीति एवं कार्य योजना’ था।

कार्यशाला के मुख्य अतिथि कृषि सचि संजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि राज्य में कृषि से जुड़ी चुनौतियों की पहचान करना आवश्यक है। इसके समाधान के लिए फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने कतरनी, मर्चा, सोनाचूर, गोविंद भोग (धान), चिनिया व मालभोग (केला), शाही लीची, दूधिया मालदा व दीघा (आम), और जामुन जैसे स्थानीय फसलों एवं फलों के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि शोधकर्ताओं को किसानों की आवश्यकताओं के अनुसार उत्तम किस्मों के बीजों का विकास करना चाहिए, ताकि बिहार में टिकाऊ कृषि का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके।

बिहार राज्य जैव विविधता पर्षद के अध्‍यक्ष भरत ज्योति ने कार्यशाला के उद्देश्यों एवं ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जैव विविधता रणनीति व कार्य योजना के सूत्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डाला।

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र (मुजफ्फरपुर) के निदेशक डॉ. विकाश दास  ने कृषि जैव विविधता के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की भूमिका को रेखांकित किया। वहीं, बिहार के निदेशक (पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण) अभय कुमार ने जैव विविधता संरक्षण के ल‍िए दस्तावेज तैयार करने के महत्व पर प्रकाश डाला।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के निदेशक डॉ. अनुप दास ने कृषि-जैव विविधता पर कार्यशाला के आयोजन के लिए बिहार राज्य जैव विविधता पर्षद को बधाई दी। उन्होंने संदेश प्रेषित किया कि जैव विविधता टिकाऊ कृषि-खाद्य प्रणाली और पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी आश्वस्त किया कि हमारा संस्थान, बिहार राज्य जैव विविधता पर्षद के साथ मिलकर जैव विविधता के संरक्षण एवं सुधार हेतु उसके सतत और समुचित उपयोग के लिए कार्य करेगा।

डॉ. अशुतोष उपाध्याय (कार्यवाहक निदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना) ने मृदा, जल, फसल, पशुपालन, मत्स्य, जलवायु, मानव संसाधन आदि जैव विविधता को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों की विस्तार से जानकारी दी।

हेमकांत रॉय (संयुक्त निदेशक, बिहार राज्य जैव विविधता पर्षद) ने धन्यवाद किया। इस अवसर पर अटारी, पटना; राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, बिहार सरकार के अन्य अधिकारी, डॉ. उज्ज्वल कुमार (प्रमुख, सामाजिक-आर्थिक एवं प्रसार प्रभाग); डॉ. कमल शर्मा (प्रमुख, पशुधन एवं मात्स्यिकी प्रबंधन प्रभाग); भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के वैज्ञानिक तथा अन्य विशेषज्ञों ने सक्रिय सहभागिता दी।

तकनीकी सत्र में बागवानी पर डॉ. संजय सिंह, प्रधान वैज्ञानिक, भा.कृ.अनु.प. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ; डॉ. तन्मय कुमार कोले, वरिष्ठ वैज्ञानिक, एवं डॉ. कुमारी शुभा, वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना ने बिहार में फल एवं सब्जी पर आधारित जैव विविधता पर प्रस्तुतियां दीं। साथ ही, डॉ. नारायण भक्त, प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना ने बिहार में धान्य फसलों की जैव विविधता पर प्रस्तुति दी।

कार्यक्रम का समन्वय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के डॉ. पी.सी. चंद्रन, डॉ. रोहन कुमार रमण, डॉ. रजनी कुमारी, डॉ. विवेकानंद भारती, डॉ. अभिषेक कुमार, श्री उमेश कुमार मिश्र तथा बिहार राज्य जैव विविधता पर्षद के डॉ. जय कुमार द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में लगभग 75 अधिकारियों ने भाग लिया।

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