तसर रेशम उद्योग जनजातीय समुदाय की परंपरा व संस्कृति का अभिन्न हिस्सा : राज्यपाल

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  • भारत में तसर रेशम उद्योग के समावेशी विकास संगोष्ठी आयोजित

रांची। राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने केंद्रीय तसर अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार) एवं जैव-विविधता बोर्ड एवं वन विभाग (झारखंड) द्वारा आज केंद्रीय तसर अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान में ‘भारत में तसर रेशम उद्योग के समावेशी विकास’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित किया। उन्‍होंने कहा कि तसर रेशम उद्योग न केवल एक कृषि आधारित उद्योग है, बल्कि यह जनजातीय समुदाय की परंपरा और संस्कृति का भी अभिन्न हिस्सा है।

राज्यपाल ने कहा कि झारखंड इस उद्योग में देश का अग्रणी राज्य है। बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों की आजीविका इससे जुड़ी हुई है। उन्होंने तसर रेशम उद्योग को पर्यावरण-संवेदनशील एवं सतत विकास का उदाहरण बताते हुए कहा कि इससे न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलता है, बल्कि वन संरक्षण को भी बढ़ावा मिलता है।

राज्यपाल ने कहा कि तसर रेशम उत्पादन से लगभग 10 मिलियन लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। भारत सरकार द्वारा केंद्रीय रेशम बोर्ड एवं कपड़ा मंत्रालय के माध्यम से विभिन्न योजनाओं को लागू किया जा रहा है, जिससे इस क्षेत्र में नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा मिल रहा है।

राज्यपाल ने अपने पूर्व के अनुभव साझा करते हुए कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में मई 2014 में केंद्रीय वस्त्र राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में कार्य करने का अवसर मिला। इस दौरान, उन्होंने रेशम कृषकों और बुनकरों के कल्याण के लिए किए जा रहे प्रयासों को निकटता से देखा और उनकी आय बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास किए। उन्होंने कहा कि झारखंड के तसर उत्पादकों को आगे बढ़ाने और उनकी आजीविका को स्थायी बनाने के लिए नीति-निर्माण में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

राज्यपाल ने कहा कि वैश्विक बाजार में तसर रेशम की मांग लगातार बढ़ रही है। हमें इस अवसर का लाभ उठाते हुए भारतीय तसर रेशम को एक विशेष पहचान दिलानी होगी। इसके लिए ब्रांडिंग, गुणवत्ता नियंत्रण, निर्यात संवर्धन एवं तकनीकी उन्नति पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

उन्होंने इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं नवाचार को और अधिक बढ़ावा देने का आह्वान किया। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि झारखंड के सारंडा जंगल को अक्सर ‘भारत की तसर राजधानी’ कहा जाता है और यह माना जाता है कि तसर की उत्पत्ति यहीं हुई थी। इस क्षेत्र को और अधिक सशक्त बनाने के लिए अनुसंधान एवं विकास (R&D) को प्राथमिकता देनी होगी।

राज्यपाल ने वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं से आह्वान किया कि वे तसर रेशम के उप-उत्पादों एवं उत्पाद विविधीकरण पर विशेष ध्यान दें, जिससे स्थानीय कारीगरों एवं बुनकरों की आय में वृद्धि हो सके।

इस अवसर पर उन्होंने तसर उत्पादों एवं उनके प्रसंस्करण प्रक्रियाओं का अवलोकन किया। राज्यपाल द्वारा एक पुस्तक/शोध पत्र का विमोचन भी किया गया। साथ ही, इस क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले व्यक्तियों को सम्मानित किया गया।

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