भारतीय व्यापार व्यवस्था को भव्य बनाने के लिए व्यावहारिक शोध जरूरी : नयन पारिख

झारखंड
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  • आईआईएमआर में भारतीय व्यापार प्रणाली पर संगोष्ठी का आयोजन

रांची। भारत आज वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में आगे बढ़ रहा है। इस संदर्भ में भारतीय व्यापार प्रणाली के मूल्यों, सिद्धांतों और आधुनिक दुनिया में स्थायी व्यावसायिक मॉडलों की जानकारी और संभावनाओं पर चर्चा जरूरी है। इस उद्देश्य के साथ भारतीय प्रबंधन संस्थान (आइरआईएम) रांची में 22 मार्च 2025 को एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। विषय  ‘भारतीय व्यापार प्रणाली’ पर विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी।

संगोष्ठी में बतौर अतिथि वक्ता नयन पारिख एंड कंसल्टेंसी के सीइओ नयन पारिख, आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर आशीष पांडेय और एक्सएलआरआई जमशेदपुर के एसोसिएट प्रोफेसर कुमार आलोक ने भारतीय व्यापार प्रणाली और पद्धति पर चर्चा की।

आईआईएम रांची के निदेशक प्रो. दीपक श्रीवास्तव ने कहा कि शैक्षणिक संस्थान किसी भी व्यावहारिक ज्ञान को पाठ्यक्रम व सैद्धांतिक रूप देने की कोशिश करता है। इसके लिए नियमित शोध की जरूरत है। भारतीय व्यापार प्रणाली के त्रियामी पक्ष – सूचना, परिचालन और आत्म-विद्या है। जिनका पालन किया जाये तो अच्छे व्यावसायी बन सकेंगे। भारत में समस्या समाधान की परंपरा रही है। इसी जुगार टेक्नोलॉजी को समय के साथ विकसित किया जा रहा है। भारतीय व्यापार प्रणाली के ज्ञान, आध्यात्म और पारंपरिक मूल्यों का पालन करें, तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी व्यावसाय को आगे बढ़ाना आसान होगा।

कार्यक्रम समन्वयक प्रो. संतोष प्रुस्ती ने कहा कि आज भी भारतीय व्यावसायी अन्य देशों की व्यावसायिक प्रणाली को अपनाने में जुटे हुए है। व्यावसाय और बाजार की समझ विकसित करने के लिए इसके सैद्धांतिक पाठ्यक्रम को विकसित करने की जरूरत है। व्यावसाय में नवाचार के साथ विषय की सटिक जानकारी, अनुभव और पूंजी हो तो इसे मल्टीनेशनल ब्रांड के रूप में स्थापित किया जा सकेगा।

नयन पारिख एंड कंसल्टेंसी के सीइओ नयन पारिख ने भारतीय व्यापार प्रणाली को भव्य बनाने पर चर्चा की। इसके लिए उन्होंने नये व्यापारी को विश्वास और अन्य व्यावसायियों के साथ व्यक्तिगत परिचय स्थापित करने की लाह दी। कहा कि किसी उत्पाद को ब्रांड बनाने के लिए – गंभीरता, उत्कृष्ठता और समाज सेवा जैसे सिद्धांतों का पालन करने से व्यापार व्यवस्था में टिक सकेंगे। व्यापार में हमेशा पैसे के पीछे न भागकर आध्यात्मिक और सेवा के नजरिये से भी काम करना होगा। ताकि, व्यापार के अंतिम लक्ष्य तक पहुंचने का संतोष हो।

एक्सएलआरआई जमशेदपुर से एसोसिएट प्रोफेसर कुमार आलोक ने धर्म को व्यापार का केंद्र बताया। प्रो. आलोक ने भारतीय दर्शन के अनुसार व्यापार कैसे अलग-अलग समय में व्यक्ति और समाज की छवि को निर्धारित करता है, पर अपनी बातें रखीं। बताया कि आज शुरू हो रहे 85% स्टार्टअप अगले तीन वर्षों में बंद हो जा रहे, इसका सबसे बड़ा कारण है व्यावसाय में केवल लाभ का दृष्टिकोण रखना। जबकि, व्यापार के पारंपरिक पद्धति में – सही-गलत में भेद करना, दूसरे व्यावसायी का सहयोग करना, सामाजिक सेवा और विश्वास जीतने के लिए काम करना था। आज के व्यावसायी इन्हें पूंजी बनायेंगे, तो व्यापार में धन लाभ स्वत: होगा।

आईआईटीम बॉम्बे के प्रो. आशीष पांडेय ने व्यापार और व्यापारी के आचरण पर व्यावसाय के टीके होने की बात कही। बताया कि मैनेजमेंट किसी खास नतिजे के लिए किया गया काम है, जबकि व्यावसाय दूसरों के लाभ और संतोष के लिए होना चाहिये। व्यावसाय में व्यक्ति का लिंग या अनुभव बड़ा अंतर तैयार नहीं करती, जबकि इसका आंकलन काम के निष्पादन और प्रबंधन से जांचा जाता हैं। आज के दौर के युवा अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए स्टार्टअप शुरू कर रहें, जबकि व्यावसाय धर्म संकल्प को पूरा करने का एक माध्यम है। अपने व्यवसाय को व्यवस्थित रखने के लिए समय-समय पर उसका आंकलन करते रहने की जरूरत है।

कार्यक्रम के समापन सत्र में एक परिचर्चा सत्र का आयोजन हुआ। इसमें विद्यार्थियों और प्राध्यापकों ने विशेषज्ञों के समक्ष अपनी जिज्ञासा रखी। इस दौरान ग्लोबल मार्केट, बिजनेस प्रैक्टिसेस, बिजनेस के लांग टर्म व्यू और रिव्यू मैनेजमेंट पर भी चर्चा हुई।

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