जमशेदपुर। हर साल 3 मार्च को टाटा समूह उस दूरदर्शी व्यक्तित्व की विरासत का सम्मान करता है, जिसने भारत के औद्योगिक और सामाजिक परिदृश्य को नई दिशा दी। गुजरात के नवसारी में 1839 में जन्मे जमशेतजी नसरवानजी टाटा ने परंपरागत सीमाओं को तोड़ते हुए भारत के सबसे प्रभावशाली समूहों में से एक की नींव रखी।
उनकी प्रगतिशील सोच उनके पूरे जीवन में झलकती रही। भारत के स्वतंत्र होने और एक राष्ट्र के रूप में स्थापित होने से बहुत पहले, उन्होंने आधुनिक उद्योग और बुनियादी अवसंरचना की कल्पना की, जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सके। टाटा की गहरी व्यावसायिक समझ केवल लाभ तक सीमित नहीं थी, बल्कि उसमें समाज की प्रगति और समृद्धि की मजबूत प्रतिबद्धता भी शामिल थी।
उनके लिए लाभ केवल व्यापार का उद्देश्य नहीं था, बल्कि राष्ट्र निर्माण का एक साधन था। टाटा की दूरदर्शी सोच ने उद्योग, सामाजिक कल्याण और पर्यावरणीय जिम्मेदारी को एक साथ जोड़ा, जिससे उनका हर प्रयास सिर्फ आर्थिक विकास तक सीमित न रहकर देश और समाज की समग्र प्रगति में योगदान देने वाला बना।
उनकी विरासत का सबसे प्रभावशाली प्रतीक 1907 में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (टिस्को) की स्थापना है, जो आज टाटा स्टील के नाम से जानी जाती है। यह उनकी दूरदृष्टि का प्रमाण है, जो उनके निधन के सिर्फ तीन साल बाद साकार हुआ।
एक छोटा सा गांव साकची विकसित होकर जमशेदपुर बना, जहां आज भी हर सड़क, हरियाली, मनोरंजन सुविधाएं और शहर का हर कोना उनकी सोच और सपनों की गवाही देता है। आज टाटा स्टील दुनिया की सबसे बड़ी और भूगोलिक रूप से विविधीकृत एकीकृत इस्पात कंपनियों में से एक है, जिसकी उपस्थिति एशिया, यूरोप और उत्तर अमेरिका तक फैली हुई है।
टाटा स्टील न केवल भारत की आर्थिक प्रगति में योगदान देने पर गर्व करती है, बल्कि समाज के हर वर्ग के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने के अपने दायित्व को भी निभाती है। भारत में अपनी इस्पात उत्पादन क्षमता का विस्तार करते हुए और यूरोप में कम उत्सर्जन वाली इस्पात निर्माण तकनीक अपनाते हुए, टाटा स्टील संस्थापक की दूरदृष्टि से प्रेरित रहती है और समाज को अपने हर प्रयास के केंद्र में रखती है।
आज सोशल मीडिया पर कर्मचारी कल्याण और वर्क-लाइफ बैलेंस जैसे शब्दों की गूंज सुनाई देती है, लेकिन यह जानकर आश्चर्य होता है कि जमशेदजी टाटा इन मूल्यों को एक सभ्य जीवन के लिए अनिवार्य मानते थे। 1860 के दशक में, जब उन्होंने नागपुर में सेंट्रल इंडिया स्पिनिंग, वीविंग एंड मैन्युफैक्चरिंग कंपनी की स्थापना की, तब उन्होंने केवल एक उद्योग स्थापित नहीं किया, बल्कि एक समावेशी कार्यसंस्कृति की नींव रखी।
जमशेतजी ने न केवल उचित कार्य समय निर्धारित किया, बल्कि भविष्य निधि योजना शुरू की, चिकित्सा बीमा की सुविधा दी और डिस्पेंसरी की स्थापना की—ताकि कर्मचारी न केवल कार्यस्थल पर स्वस्थ और सुरक्षित रहें, बल्कि सेवानिवृत्ति के बाद भी एक सम्मानजनक जीवन जी सकें।
टाटा की विरासत का सबसे प्रेरणादायक पहलू उनकी परोपकारी सोच है, जो उदारता और व्यापकता में अद्वितीय है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा को केंद्र में रखते हुए, उन्होंने लगभग 102 अरब डॉलर का दान दिया, जिससे उन्हें सदी के सबसे महान दानवीरों में स्थान मिला। समाज के उत्थान के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता आज भी टाटा ट्रस्ट्स के प्रभावशाली कार्यों के रूप में जीवंत है, जो न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में लाखों जीवन को संवार रहा है।
जमशेतजी टाटा की दूरदृष्टि और अमर विरासत पीढ़ियों को प्रेरित करती रही है। उनका जीवन इस बात की मिसाल है कि सच्ची सफलता केवल संपत्ति और उपलब्धियों से नहीं, बल्कि समाज में लाए गए सकारात्मक बदलाव से परिभाषित होती है। टाटा समूह लाभ से परे एक व्यापक उद्देश्य का प्रतीक है—सतत प्रगति और सामाजिक समरसता का संकल्प, जो अनगिनत समुदायों के लिए एक उज्जवल और समान भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
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