रांची। प्राकृतिक खेती, पर्यावरण के अनुकूल एवं रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल किए बिना प्रकृति में आसानी से मिलने वाले प्राकृतिक तत्वों एवं जीवाणुओं का इस्तेमाल कर फ़सलों की लागत कम की जा सकती है। पर्यावरण भी साफ़ रह सकता है। उक्त बातें बीएयू के कृषि संकाय के सेवानिवृत्त अधिष्ठाता डॉ. ए.के. सरकार ने कही। वे ‘प्रकृति सकारात्मक कृषि की अवधारणा’ विषय पर विश्वविद्यालय के कृषि संकाय सभागार में व्याख्यान दे रहे थे।
डॉ सरकार ने सभागार में लगभग 300 की संख्या में उपस्थित वैज्ञानिक और स्नातक एवं स्नातकोत्तर छात्रों को बताया कि बिना मिट्टी एवं पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएं कैसे पैदावार को बढ़ाई जाए। डॉ सरकार ने वैज्ञानिक एवं छात्रों के बीच व्याख्यान में प्रकृति सकारात्मक कृषि पर विचार विमर्श किया। झारखंड में कृषि उत्पादन को बढ़ाने एवं स्थायित्व पर प्रकाश डाला।
पूर्व कृषि अधिष्ठाता ने कहा कि इससे भूमि क्षरण को कम, अजैविक और मृदा क्षरण को नियंत्रित, स्थायी और उच्च कृषि उत्पादन में सुधार, बढ़ती जनसंख्या के स्वास्थ्य और पोषण में सुधार की जा सकती हैं। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती के लिए खेतों में जैविक कार्बन को बढ़ाने की काफी जरूरत है। इसका आयोजन इंडियन सोसाइटी ऑफ सॉइल साइंस, नई दिल्ली की रांची चैप्टर ने किया था।
मंच पर अधिष्ठाता (कृषि संकाय) डॉ डी.के. शाही, निदेशक अनुसंधान डॉ पी. के. सिंह, निदेशक छात्र कल्याण डॉ बी.के. अग्रवाल उपस्थित थे। मंच संचालन डॉ बी.के. अग्रवाल और धन्यवाद ज्ञापन डॉ अरविंद कुमार ने किया।
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