हजारीबाग। बड़ी खबर झारखंड के हजारीबाग से आई है। विनोबा भावे विश्वविद्यालय में बड़ा घोटाला सामने आया है। विभावि के पूर्व कुलपति प्रो मुकुल नारायण देव के कार्यकाल में विश्वविद्यालय के लाखों रुपए की अनियमितता के आरोप को झारखंड सरकार के वित्त विभाग ने जांच में सही पाया है।
अंकेक्षण विभाग ने विभावि वित्त विभाग की कारगुजारियों का पर्दाफाश किया है। इसमें कुलपति को सलाह देनेवाले कुछ अधिकारी एवं कर्मचारियों के भी शामिल होने की आशंका जतायी गयी है। ऐसे लोगों को एक माह अर्थात 15 मार्च 2025 के अंदर चिह्नित कर रकम वसूली और नियम संगत कार्यवाही का निर्देश विनोबा भावे विश्वविद्यालय को दिया गया है।
वित्त विभाग ने सौंप दी है रिपोर्ट
इस संबंध में झारखंड सरकार के वित्त विभाग के अंकेक्षण निदेशालय ने विश्वविद्यालय के कुलसचिव को संपूर्ण अंकेक्षण प्रतिवेदन सौंप दिया है। प्रतिवेदन में कहा गया है कि अंकेक्षण प्रतिवेदन का अनुपालन करते हुए खर्च किए गए राशि की वसूली एवं दोषी व्यक्तियों को चिह्नित कर कार्रवाई करने को कहा गया है। प्रतिवेदन में विश्वविद्यालय के कुछ अधिकारियों की संलिप्तता की बात भी कही गयी है।
वित्त विभाग ने स्पष्ट किया है कि 44 लाख से भी अधिक रुपयों का दुरुपयोग किया गया हैं। यह जांच 2020 के जून से लेकर 2023 के मई के बीच केवल कुलपति कार्यालय, कुलपति आवास एवं कुलपति के उपयोग के वाहन के ईंधन मद में किये गये खर्च पर किया गया है। यह जांच विभावि के वित्तीय विभाग के एक बहुत छोटे से हिस्से की की गयी है।
अंकेक्षण विभाग ने स्पष्ट किया है कि विभावि के आंतरिक मद के आय का दुरुपयोग किया गया है। जबकि यह राशि विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों व उनके पठन-पाठन पर खर्च करने के लिए होता है। पूर्व कुलपति ने इस रकम को नियमानुसार खर्च न कर इसमें अनियमितता बरती है।
गवर्नर हाउस ने दिया था जांच का आदेश
पूर्व कुलपति प्रो मुकुल नारायण देव के कार्यकाल में उनकी कार्यशैली को लेकर कई सवाल उठते रहे। कुलपति ने इस संबंध में मिली शिकायत की अनदेखा की। नतीजन शिकायतकर्ता ने राजभवन से शिकायत की। राजभवन ने इस पर संज्ञान लेते हुए झारखंड सरकार के वित्त विभाग को जांच करने का आदेश दिया था।
हैरान कर देने वालीं गड़बड़ियां
कोरोना में बंद था कार्यालय, फिर भी अल्पाहार पर आठ लाख खर्च
रिपोर्ट में बताया गया है कि पूर्व कुलपति के कार्यालय में अल्पाहार इत्यादि पर लगभग आठ लाख रुपये खर्च किये गये हैं। वह भी उस समय जब कोरोना के कारण लंबे समय तक विश्वविद्यालय कार्यालय बंद रहे या लोगों का आना-जाना प्रतिबंधित रहा। विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए एक अच्छे वाहन रहने के बावजूद एक नये वाहन खरीदे जाने को अनावश्यक एवं आपत्तिजनक बताया गया है। कुलपति आवास में पलंग, सोफा, वाशिंग मशीन आदि सामान की खरीद के साथ-साथ महंगे चिकित्सीय उपकरण पर किये गये खर्च पर भी आपत्ति जतायी गयी है।
रंगरोगन पर लाखों रुपये का खर्च
कुलपति आवास के रंगरोगन पर लाखों रुपये अनावश्यक खर्च किये गये हैं। इसमें रंग रोगन से संबंधित सामग्री की खरीद में अनियमितता पायी गयी है। कार्य की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाया गया है। सरकारी वाहन का उपयोग निजी कार्य में किये जाने के कारण बेवजह के ईंधन पर भारी खर्च को भी दोषपूर्ण बताया गया है।
कंप्यूटर मद में खर्च, पर भुगतान अधिकारी के खाते में
पूर्व कुलपति के कार्यकाल में इलेक्ट्रॉनिक सामान के अनावश्यक खरीद पर भी आपत्ति दर्ज की गयी है। यह भी पाया गया है कि चार माह के अंतराल में विश्वविद्यालय के पैसे से दोबारा मोबाइल फोन खरीदा गया। कंप्यूटर की सुविधा रहने के बावजूद इस मद में भारी भरकम खर्च किये गये। भुगतान दुकान को नहीं किया गया है। भुगतान अधिकारी के खाते में किया गया है।
खरीदे गये सामान को भंडार पंजी में अंकित नहीं किया गया है। इसी प्रकार कुलपति आवास में सीसीटीवी लगाये जाने में भारी खर्च किया गया है। यात्रा भत्ता के खर्च में भी अनियमितता पायी गयी है।
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