रांची। ऑल इंडिया पोस्टल /आरएमएस पेंशनर्स एसोसिएशन, झारखंड ने रांची जीपीओ में राष्ट्रीय पेंशनर्स दिवस 17 दिसंबर को मनाया गया। डीएस नकारा की स्मृति में हर वर्ष राष्ट्रीय पेंशनर्स दिवस मनाया जाता है। नकारा के प्रयास के कारण ही पेंशन में भेदभाव की गुंजाइश खत्म सी हो गई है।
भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने 1983 के डीएस नाकरा बनाम भारत संघ के मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया, जिसने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के प्रयोग को काफी हद तक व्यापक बना दिया। यह कानून के समक्ष समानता और कानून के तहत समान है।
इसके बाद के निर्णय (1985) में सुप्रीम कोर्ट ने पेंशन को कर्मचारियों की सेवानिवृति के बाद दिया गया संवैधानिक अधिकार की संज्ञा दी थी। पेंशन ना तो सरकार की दया पर दिया गया अनुदान है और ना भीख, बल्कि एक संवैधानिक अधिकार है। एक सामाजिक जिम्मेदारी है।
इस दिवस पर बात रखते हुए वक्ताओं ने कहा कि सरकार पेंशन जैसे सामाजिक सुरक्षा कवच को समाप्त करना चाहती है। एनपीएस और यूपीएस का उदाहरण देते हुए सदस्यों ने कहा कि ये पेंशन का निजीकरण है। कर्मचारियों की बड़ी संख्या को इस व्यवस्था में लाकर उनका सामाजिक एवं आर्थिक शोषण किया जा रहा है। इस व्यवस्था में 10% का मासिक अंशदान देने के बावजूद एक छोटी सी राशि मासिक पेंशन के रूप में दी जाती है, जो न्यायोचित नहीं है। एसोसिएशन सभी कर्मचारियों और पेंशनर्स को ओपीएस में लाने की मांग की।
एसोसिएशन के पदधारियों ने कहा कि सिमडेगा के 50-60 पोस्टल पेंशनर्स का केवाईसी के नाम पर 17 दिनों के बाद भी भुगतान नहीं किया जाना नैतिक एवं अपराधिक कृत है। जब हमारा डेलिगेशन 16 दिसंबर को संबंधित अधिकारी से मिला तो कहा गया कि कार्रवाई हो रही है। इससे साफ दिखता है कि केंद्रीय पेंशनर्स आज भी प्रताड़ित किए जा रहे हैं।
सभा को एमजेड ख़ान, केडी राय व्यथित, त्रिवेणी ठाकुर, गौतम विश्वास, हसीना तिग्गा आदि ने संबोधित किया। सभा में त्रिलोकी नाथ साहू, सुखदेव राम, रामचंद्र प्रसाद, राजेंद्र महतो, रमेश सिंह, बी बारा, रंगनाथ पांडेय, दीपक वर्मा, गणेश चंद्र डे, देवीचरण साहू आदि उपस्थित थे।
रांची के अलावा धनबाद, गोमो, जमशेदपुर आदि स्थानों पर भी पेंशन दिवस मनाया गया।
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