टीआरएल संकाय में नागपुरी काव्य संग्रह ‘पलाश कर फूल’ का लोकार्पण

झारखंड
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  • वक्ताओं ने कहा, अपनी माटी की गंध हर व्यक्ति के मन को आकर्षित करता है

रांची। रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय के नागपुरी विभाग में प्रो. केदार नाथ दास लिखित नागपुरी काव्य संग्रह ‘पलाश कर फूल’ का लोकार्पण सह कृति चर्चा का आयोजन 12 दिसंबर को किया गया। विषय प्रवेश प्राध्यापक डॉ उमेश नन्द तिवारी, धन्यवाद डॉ रीझू नायक एवं संचालन डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो ने किया।

विभाग की अध्यक्ष डॉ सविता केशरी ने कहा कि साहित्य समाज का आईना होता है। प्रोफेसर दास ने नागपुरी भाषा साहित्य को एक नयी दिशा देने का काम किया है। एक समय था जब नागपुरी भाषा में पुस्तकों की कमी थी। इस भाषा को कोई महत्व नहीं दिया जाता था। इस कारण नागपुरी को गंवारी भाषा कहा जाता था। कालान्तर में इस भाषा में कई पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन के साथ-साथ स्थानीय समाचार पत्रों एवं आकाशवाणी-दूरदर्शन में प्रमुखतः से स्थान दिया जाने लगा। उन्होंने कहा कि कई विद्वानों ने यह सिद्ध किया है कि नागपुरी एक स्वतंत्र भाषा है। ऐसे में प्रो केदार नाथ दास की कविता संग्रह ‘पलाश कर फूल’ नागपुरी समाज के लिए एक आगाज है।

मुख्य वक्ता स्नातकोत्तर उर्दू विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ रिजवान अली ने कहा कि हमारे हृदय को छू जाय वही कविता है। अपनी माटी की गंध हर एक व्यक्ति के मन को आकर्षित करता है। नागपुरी एक संपर्क भाषा है, जो सबसे अधिक लोकप्रिय है। प्रो दास ने कविता संग्रह ‘पलाश कर फूल’ की रचना कर नागपुरी समाज को एक तोहफा दिया है। इसके लिए पूरा नागपुरी समाज कवि केदार नाथ दास का ऋणी रहेगा। उन्होंने कहा कि कवि ने अपने संग्रह के माध्यम से अपने जीवन के अनुभव, संघर्ष एवं सुख दुख को एक जगह समेटने का कार्य किया है। कवि खुद झारखंड आन्दोलन से लम्बे समय से जुड़े रहे हैं इस कारण वे जिन्दगी के हर पहलू को उजागर किया है।

वक्ता मेजर डॉ महेश्वर सारंगी ने कृति चर्चा करते हुए कहा कि नागपुरी में गीत लिखने की परम्परा थी परन्तु अब जोर शोर से कविता लिखने की शुरुआत हुई है। यह नागपुरी समाज के लिए अच्छा संकेत है। उन्होंने कहा कि कवि ने समाज में जो देखा, सुना और भोगा है उसी को कलमबद्ध किया है। उन्होंने कहा कि साहित्य समाज को प्रभावित करती है। भाषा जैसे जैसे बढ़ेगी, वैसे वैसे समाज का विकास होगा।

रचनाकार लेखक प्रो केदार नाथ दास ने कहा कि मेरे कविता संग्रह में मैंने अपने जीवन की तमाम अनुभवों को समाज के सामने साहित्य के रूप में रखने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति अथवा समाज को खत्म करना है तो उसकी भाषा संस्कृति को खत्म कर दें, वह स्वत: खत्म हो जायेगा। इसलिए समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मांय भाषा में साहित्य रचने व गढ़ने की आवश्यकता है तभी हम और हमारा अस्तित्व बच पायेगा। मौके पर विभाग के छात्र अशोक कुमार ने ‘पहचान’ शीर्षक कविता प्रस्तुत किया।

इस मौके पर प्राध्यापक बन्धु भगत, मनय मुण्डा, डॉ गीता कुमारी सिंह, डॉ कुमारी शशि, डॉ अर्चना कुमारी, महामनी कुमारी, डॉ अनुपमा मिश्रा, डॉ दिनेश कुमार, डॉ सरस्वती गागराई, डॉ बन्दे खलखो, अनुराधा मुण्डू, डॉ करम सिंह मुण्डा, डॉ नकुल कुमार, रवि कुमार, विक्की मिंज, निलोफर, जलेश्वर, बुद्धेश्वर, सूरज, संजय, पंकज, अभिजीत, सोनू, नमिता, सीमा, पूनम, ऊषा, आकाश के अलावे कॉलेज वरिष्ठ प्राध्यापक, शिक्षाविद्, साहित्यकार एवं शोधार्थी-छात्र मौजूद थे।

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