बायोचार का उपयोग करने वाला टाटा स्टील बनी पहली भारतीय इस्पात निर्माता

मुंबई देश बिज़नेस
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  • कंपनी ने अब तक लगभग 30,000 टन जीवाश्म ईंधन को बदला

मुंबई। टाटा स्टील ने जमशेदपुर प्लांट में बायोचार (बायोमास आधारित चारकोल) का सफल उपयोग करते हुए एक नई मिसाल कायम की है। यह पहल न केवल कंपनी की सस्टेनेबिलिटी के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाती है, बल्कि 2045 तक नेट जीरो लक्ष्य हासिल करने के संकल्प को भी मजबूती प्रदान करती है।

जनवरी, 2023 में परीक्षण के रूप में शुरू हुई इस पहल के तहत, टाटा स्टील ने अब तक बायोचार का उपयोग कर लगभग 30,000 टन जीवाश्म ईंधन को प्रतिस्थापित किया है। यह रणनीति न केवल वार्षिक रूप से 50,000 टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने की क्षमता रखती है, बल्कि पिसे हुए कोयले के इंजेक्शन का आंशिक विकल्प के रूप में ऊर्जा दक्षता में भी उल्लेखनीय सुधार करती है।

यह कदम पर्यावरण संरक्षण और सतत औद्योगिक प्रथाओं के प्रति टाटा स्टील की अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। साथ ही, 3000 घन मीटर से अधिक और 9000 टन प्रति दिन (टीपीडी) उत्पादन क्षमता वाले ब्लास्ट फर्नेस में इसका सफल उपयोग वैश्विक इस्पात उद्योग के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।

राजीव मंगल, वाइस प्रेसिडेंट, सेफ्टी, हेल्थ एंड सस्टेनेबिलिटी, टाटा स्टील ने कहा कि कोयले जैसे कार्बन-गहन जीवाश्म ईंधन के आंशिक विकल्प के रूप में बायोचार का उपयोग शुरू करना न केवल टाटा स्टील के लिए, बल्कि पूरे भारतीय इस्पात उद्योग के लिए एक क्रांतिकारी कदम है। यह इस्पात निर्माण प्रक्रिया में वैकल्पिक ईंधन के व्यापक उपयोग का मार्ग प्रशस्त करता है। हमारे द्वारा जिम्मेदारीपूर्ण और सस्टेनेबल इस्पात उत्पादन के प्रति दृढ़ संकल्प को मजबूती से दर्शाता है। इस अनूठी सफलता से हमें एक ऐसा सस्टेनेबल इस्पात क्षेत्र बनाने का विश्वास मिलता है, जो न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी हो, बल्कि भारत के अन्य इस्पात उत्पादकों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत और आदर्श मानक भी बन सके।

यह नवोन्मेषी तकनीक ब्लास्ट फर्नेस में टुयर्स के माध्यम से पिसे हुए बायोचार को इंजेक्ट करने पर आधारित है। भारत में पहली बार 3000 घन मीटर से अधिक क्षमता वाले ब्लास्ट फर्नेस में इस विधि को सफलतापूर्वक लागू किया गया। एक ब्लास्ट फर्नेस में सफल परीक्षण के बाद, इस प्रक्रिया को जमशेदपुर प्लांट के तीन अन्य फर्नेस तक विस्तारित किया गया। आगे चलकर, टाटा स्टील ने इस बायोचार उपयोग को अपने अन्य इस्पात निर्माण केंद्रों में भी लागू करने की योजना बनाई है।

इस वर्ष की शुरुआत में, टाटा स्टील ने ओडिशा के कटक जिले के अथागढ़ स्थित अपने फेरोक्रोम प्लांट में बायोमास के उपयोग का सफल परीक्षण किया था। कंपनी के फेरो अलॉयज एंड मिनरल्स डिवीजन (एफएएमडी) के तहत संचालित इस प्लांट ने पारंपरिक कार्बन स्रोतों के स्थायी विकल्प के रूप में यह परीक्षण करने वाला भारत का पहला प्लांट बनकर एक नई मिसाल कायम की।

कार्बन-न्यूट्रल इस्पात निर्माता बनने की अपनी यात्रा में, टाटा स्टील ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिनमें उत्पादन सुविधाओं में सौर ऊर्जा जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग और कच्चे माल व तैयार उत्पादों की शिपिंग में बायोफ्यूल का समावेश शामिल है। इसके साथ ही, टाटा स्टील ने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए भारत की पहली इस्पात कंपनी का दर्जा प्राप्त किया, जिसने पूर्वी तट ऑस्ट्रेलिया से भारत तक की पूर्ण लदी हुई यात्रा बी 24 बायोफ्यूल मिश्रण और वीएलएसएफओ (वेरि लो सल्फर फ्यूल ऑयल) द्वारा संचालित की।

टाटा स्टील को 2024 के लिए वर्ल्डस्टील द्वारा लगातार सातवें वर्ष “स्टील सस्टेनेबिलिटी चैंपियन” के रूप में सम्मानित किया गया है, जो इसके सतत विकास के प्रति प्रतिबद्धता और विश्वस्तरीय मानकों के पालन को प्रमाणित करता है।

कंपनी का जमशेदपुर प्लांट भारत का पहला स्थल है जिसे रिस्पॉन्सिबल स्टीलTM प्रमाणन प्राप्त हुआ है, और इसके बाद कलिंगानगर और मेरामंडली प्लांट्स ने भी यह प्रतिष्ठित प्रमाणन हासिल किया है। अब, भारत में टाटा स्टील का 90% से अधिक इस्पात उत्पादन रिस्पॉन्सिबल स्टीलTM प्रमाणित स्थलों से आता है, जो इसके पर्यावरणीय और सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

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