वक्फ संशोधन बिल को लेकर आमया ने रखा पक्ष, दिए ये सुझाव

झारखंड
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रांची। वक्फ संशोधन बिल 2024 को वापस लेने अथवा बिल के असंवैधानिक प्रावधान को हटाने को लेकर आमया संगठन ने पक्ष रखा। कई सुझाव दिए हैं। वक्फ संशोधन बिल 2024 को वापस लेने अथवा असंवैधानिक प्रस्ताव को हटाए जाने की मांग की है।

संगठन के केन्द्रीय अध्यक्ष एस अली ने संयुक्त सचिव (जेएम) के नाम पत्र भेजा। इसकी प्रतिलिपि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केन्द्रीय गृहमंत्री, केन्द्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल, जेपीसी सदस्य असदुद्दीन ओवैसी, निशिकांत दुबे, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, पूर्व उप मुख्यमंत्री सुदेश महतो को भी भेजा है।

सुझाव के माध्यम से बताया

(1) वर्तमान नाम वक्फ़ अधिनियम 1995
संशोधन : संयुक्त वक्फ़ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता एवं विकास अधिनियम 1995 कर दिया गया,

(2) वक्फ़ संपत्ति का गठन : वर्तमान अधिनियम वक्फ़ के गठन या किसी भूमि को वक्फ़ घोषित करने की अनुमति निम्नलिखित तरीकों से देता है। घोषणा द्वारा (वक्फ़ बोर्ड द्वारा निर्धारित करना) दीर्घकालिक उपयोग के आधार पर मान्यता (उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ़ की घोषणा)
यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति मदरसा आदि धार्मिक कार्यों के उपयोग के लिए देता है, किंतु कुछ समय बाद मदरसे की देखभाल करने वाला उसे वक्फ संपत्ति के रूप में बदलने की मांग करता है, तो यह वक्फ बोर्ड का अधिकार होगा कि वह उस भूमि को वक्फ घोषित करे या नहीं।
संशोधन : नये बिल आने के बाद ऐसा करना संभव नहीं होगा, जब तक भूमि का वास्तविक स्वामी अपनी सहमति नहीं देता है।

(3) वक्फ-अलल-औलाद : इस इस्लामी कानून के अनुसार किसी संपत्ति को वक्फकर्ता के अपने परिवार या उसके बच्चों या उसके बच्चों के बच्चों के कल्याण के लिए वक्फ किया जाता है।
संशोधन : संसोधित विधेयक के अनुसार केवल कम-से-कम पांच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही वक्फ़ की घोषणा कर सकता है।
यदि कोई व्यक्ति वक्फ़ की घोषणा करता है तो वक्फ़ घोषित की जा रही संपत्ति का मालिक होना चाहिए, यह ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ़ की घोषणा’ को समाप्त करता है, विधेयक के अनुसार, वक्फ़-अलल-औलाद के परिणामस्वरूप महिला उत्तराधिकारियों सहित दानकर्ता के उत्तराधिकारी को अपने अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

(4) सरकारी व गैर सरकारी संपत्ति को वक्फ़ मानना : वक्फ अधिनियम के अनुसार सादियों से कोई भी धार्मिक स्थल व धार्मिक कार्य हो रहे है और वक्फ़ के रूप में पहचान की गई कोई भी संपत्ति (सरकारी व गैर-सरकारी) वक्फ़ मानी जा सकती है। अधिनियम की धारा 40 के अनुसार वक्फ़ बोर्ड को यह जांच करने और निर्धारित करने का अधिकार है कि कोई संपत्ति वक्फ़ है या नहीं।
संशोधन : विधेयक के अनुसार, वक्फ़ के रूप में पहचान की गई कोई भी सरकारी संपत्ति वक्फ़ नहीं मानी जाएगी। अनिश्चितता की स्थिति में उस क्षेत्र का कलेक्टर स्वामित्व का निर्धारण करेगा। राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपेगा। संशोधित विधेयक द्वारा अधिनियम की धारा 40 (वक्फ़ बोर्ड की वक्फ़ निर्धारित करने की शक्ति) के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।

(5) वक्फ़ का सर्वेक्षण : वर्तमान अधिनियम में वक्फ़ का सर्वेक्षण करने के लिए सर्वेक्षण आयुक्त एवं अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान है।
संशोधन : विधेयक कलेक्टरों को सर्वेक्षण करने का अधिकार देता है। लंबित सर्वेक्षण राज्य के राजस्व कानूनों के अनुसार किए जाएंगे।

(6) केंद्रीय वक्फ़ परिषद : वर्तमान अधिनियम में केंद्रीय वक्फ़ परिषद के गठन का प्रावधान है, जो केंद्र व राज्य सरकारों तथा वक्फ़ बोर्ड्स को सलाह देती है।
वक्फ़ के प्रभारी केंद्रीय मंत्री परिषद के पदेन अध्यक्ष होते हैं।
परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए। उनमें से कम-से-कम दो महिलाएं होनी चाहिए।

संशोधन : विधेयक में प्रावधान है कि दो सदस्य गैर-मुस्लिम होने चाहिए। संशोधन के बाद परिषद में नियुक्त सांसदों, पूर्व न्यायाधीशों व प्रतिष्ठित व्यक्तियों का मुस्लिम होना आवश्यक नहीं है।
हालांकि, कई सदस्यों का मुस्लिम होना ज़रूरी है : (i) मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि, (ii) इस्लामी कानून के विद्वान (iii) वक्फ़ बोर्ड्स के अध्यक्ष।
मुस्लिम सदस्यों में से दो महिलाएं अवश्य होनी चाहिए।

(7) वक्फ़ बोर्ड की संरचना : वक्फ़ बोर्ड अधिनियम 1995 के अनुसार, किसी राज्य और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए बोर्ड में निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे : एक अध्यक्ष
निर्वाचित सदस्य : सदस्यों (प्रत्येक वर्ग से अधिकतम दो सदस्य अर्थात अधिकतम 8 निर्वाचित सदस्य संभव) का निर्वाचन प्रत्येक निर्वाचक मंडल द्वारा होगा। निर्वाचक मंडल के चार वर्ग होंगे, जो आपस में ही सदस्यों का चुनाव करेंगे। निर्वाचक मंडल में निम्नलिखित व्यक्ति (वर्ग) शामिल होंगे:

राज्य से संसद के मुस्लिम सदस्य

राज्य विधानमंडल के मुस्लिम सदस्य, संबंधित राज्य या संघ राज्य क्षेत्र की बार काउंसिल के मुस्लिम सदस्य, यदि बार काउंसिल का कोई मुस्लिम सदस्य नहीं है, तो राज्य/संघ सरकार राज्य/संघ राज्य क्षेत्र से किसी वरिष्ठ मुस्लिम अधिवक्ता को नामित कर सकता है।
मुतवल्ली (वक्फ़ देखभालकर्ता) जिनकी वार्षिक आय एक लाख रुपए या उससे अधिक है।
शिया एवं सुन्नी इस्लामिक धर्मविद से सदस्य।
यदि उल्लिखित किसी भी श्रेणी में कोई मुस्लिम सदस्य नहीं हैं, तो वहां संसद, राज्य विधानमंडल के पूर्व मुस्लिम सदस्य या राज्य बार काउंसिल के पूर्व सदस्य से निर्वाचक मंडल का गठन करेंगे।

यदि उल्लिखित किसी भी श्रेणी के लिए निर्वाचक मंडल का गठन करना उचित रूप से व्यवहार्य नहीं है, तो राज्य सरकार ऐसे व्यक्तियों को बोर्ड के सदस्यों के रूप में नामित कर सकती है जिन्हें वह ठीक समझे।
केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार का कोई मंत्री बोर्ड के सदस्य के रूप में निर्वाचित या मनोनीत नहीं किया जाएगा, बोर्ड में नियुक्त कम-से-कम दो सदस्य महिलाएं होंगी।

संशोधन : विधेयक राज्य सरकार को बोर्ड में उपरोक्त प्रत्येक पृष्ठभूमि से एक व्यक्ति को नामित करने का अधिकार देता है। साथ ही, उन्हें मुस्लिम होने की आवश्यकता नहीं है। नामित सदस्यों की योग्यता को लेकर पूर्व व्यवस्था लागू रहेगी, किंतु सदस्यों के समुदाय से संबंधित कुछ संशोधन प्रस्तावित है, संशोधन के अनुसार बोर्ड में निम्नलिखित सदस्य होने चाहिए : (i) दो गैर-मुस्लिम सदस्य (ii) शिया, सुन्नी व पिछड़े मुस्लिम वर्गों से कम-से-कम एक सदस्य (iii) इसमें बोहरा व आगाखानी समुदायों से भी एक-एक सदस्य होना चाहिए, यदि उनके पास राज्य में वक्फ़ संपति है।

(8) न्यायाधिकरणों की संरचना : वर्तमान अधिनियम के अनुसार राज्यों को वक्फ़ से संबंधित विवादों को निपटाने के लिए न्याधिकरणों का गठन करना होगा। इन न्याधिकरणों के अध्यक्ष प्रथम श्रेणी, जिला, सत्र या सिविल न्यायाधीश के समकक्ष रैंक के न्यायाधीश होने चाहिए।
अन्य सदस्यों में अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के बराबर का एक राज्य अधिकारी और मुस्लिम कानून व न्यायशास्त्र का जानकार व्यक्ति शामिल हैं।
संशोधन : विधेयक तीसरे सदस्य के रूप में मुस्लिम कानून व न्यायशास्त्र के जानकार व्यक्ति को न्यायाधिकरण से हटा देता है।

संशोधन केवल निम्नलिखित दो सदस्यों को न्याधिकरण में शामिल करता है : (i) अध्यक्ष के रूप में एक वर्तमान या पूर्व जिला न्यायालय का न्यायाधीश और (ii) राज्य सरकार के संयुक्त सचिव के रैंक का एक वर्तमान या पूर्व अधिकारी होगें।

एस अली का कहना है कि वक्फ संशोधन विधेयक 2024 के कई प्रावधान समानता का अधिकार व धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। यह संशोधन संविधान की अनुच्छेद 14 एवं 26 द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता, धार्मिक संप्रदायों को अपनी संपित्त के स्वामित्व और अधिग्रहण करने के अधिकार का उल्लंघन हो सकता हैं। क्योंकि विधेयक में प्रावधान है कि गैर-मुस्लिम भी वक्फ बोर्ड के सदस्य हो सकते हैं। यह धर्म की आस्था एवं स्वतंत्रता पर हमला है। 

वक्फ बोर्ड की स्थापना एवं संरचना में संशोधन करने से प्रशासनिक अव्यवस्था उत्पन्न होगी। नए विधेयक से वक्फ बोर्ड्स की स्वायत्ता एवं स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी। हितधारकों के साथ पर्याप्त परामर्श किए बिना संशोधन करने से तनाव एवं विवाद में वृद्धि हो सकती है।

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