कोविशील्ड की तरह कोवैक्सीन के साइड इफेक्ट्स को लेकर बड़ा खुलासा, पढ़ें

नई दिल्ली देश
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नई दिल्ली। हैरान कर देने वाली खबर आई, पढ़ने के बाद आप हिल जाएंगे। जी हां, आपने सही पढ़ा। वैश्विक महामारी कोरोना से बचने के लिए देश के करोड़ों लोगों ने कोविशील्ड और कोवैक्सीन के टीके लगवाये थे। पहले एस्ट्रेजेनेका ने ब्रिटिश के कोर्ट में माना था कि उसके टीके के कुछ साइड इफेक्टस हो सकते हैं। लेकिन अब कोवैक्सीन को लेकर भी हैरान करने वाली जानकारी सामने आ रही है। मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एक साल के अंदर ठीक ठाक संख्या में लोगों में इसके साइड इफेक्ट देखे गए हैं।

भारत में बनी कोवैक्सीन के साइड इफेक्ट्स पर एक अध्ययन किया गया है। इसमें शोधकर्ताओं ने पाया कि किशोरियों और जिनको एलर्जी की बीमारी पहले से है। उन सभी को AESI का ज्यादा खतरा है। टीका लगवाने वाले ज्यादातर लोगों में एक साल तक साइड इफेक्ट का असर देखा गया।

स्टडी में 1024 लोगों को शामिल किया गया। इसमें 635 किशोर और 391 एडल्ट लोग थे। इन सभी से टीका लगवाने के एक साल बाद तक फॉलोअफ चेकअप के लिए संपर्क किया गया। स्टडी में 304 किशोरों यानी करीब 48 फीसदी में वायरल अपर रेस्पेरेट्री ट्रैक इंफेक्शन्स देखा गया। ऐसी स्थिति 124 यानी 42.6 युवाओं में भी दिखी थी। इसके अलावा 10.5 फीसदी किशोरों में न्यू-ऑनसेट स्कीन एंड सबकुटैनियस डिसऑर्डर जैसी दिक्कत देखने को मिली।

10.2 फीसदी लोगों में जनरल डिसऑर्डर यानी आम परेशानी देखने को मिली। 4.7 फीसदी में नर्वस सिस्टम डिसऑर्डर यानी नसों से जुड़ी परेशानी पाई गई। इसी तरह 8.9 फीसदी युवा लोगों में आम परेशानी, 5.8 फीसदी में मुस्कुलोस्केलेटल डिसऑर्डर यानी मांसपेशियों, नसों, जोड़ों से जुड़ी परेशानी भी देखने को मिली और 5.5 में नर्वस सिस्टम से जुड़ी परेशानी देखी गई।

रिपोर्ट के मुताबिक कोवैक्सीन का साइड इफेक्ट महिलाओं में भी देखा गया। 4.6 फीसदी महिलाओं में पीरियड से जुड़ी परेशानी सामने आई। 2.7 फीसदी लोगों ने ओकुलर यानी आंख से जुड़ी दिक्कत के लिए संपर्क किया। 0.6 फीसदी में हाइपोथारोइडिज्म पाया गया। वहीं, अब बात ज्यादा गंभीर साइड इफेक्ट की करें, तो यह केवल एक ही फीसदी लोगों में पाया गया।

0.3 फीसदी यानी कि 300 में से एक व्यक्ति को स्ट्रोक की परेशानी और 0.1 फीसदी में गुईलैइन-बैरे सिंड्रोम पाया गया। इतना ही नहीं, स्टडी में यह भी कहा गया कि इस वैक्सीन को लगवाने के बाद में महिलाओं में थायराइड की बीमारी का प्रभाव ज्यादा बढ़ गया।