- झारखंडी संस्कृति में महापर्व है सरहुल : कुलपति
रांची। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में सरहुल महोत्सव का आयोजन किया गया। आयोजन विश्वविद्यालय परिसर में स्थित आखड़ा में किया गया। आदिवासी समुदाय की प्रसिद्ध पर्व सरहुल के अवसर पर सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित प्रसिद्ध साहित्यकार महादेव टोप्पो ने अपने साहित्यिक रचना के द्वारा झारखंड की कला एवं संस्कृति को आगे ले जाने के लिए बधाई दी। साथ ही देश-विदेश में झारखंडी कला को फैलाने के लिए पद्मश्री मुकुंद नायक की प्रशंसा की।
कार्यक्रम की शुरुआत पाहान प्रो. महेश पाहन एवं डॉ. जुरन सिंह मानकी के नेतृत्व में पूरी विधि-विधान एवं स्वागत नृत्य के साथ घड़ा में पानी लाकर आखड़ा स्थित पूजा स्थल में स्थापित करके किया। इसमें पाहन एवं आखड़ा में उपस्थित सभी सम्मानित अतिथि एवं विभिन्न विभाग के छात्र-छात्राएं खड़े प्रकृति के संरक्षक आराध्यदेव धर्मेश की आराधना एवं प्रार्थना किये। अतिथियों का स्वागत जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के कोर्डिनेटर डॉ. विनोद कुमार ने करते हुए कहा कि सरहुल झारखंडी समाज में सामाजिक, धार्मिक समरसता का प्रतीक है। स्वागत गीत के रूप में कुड़ुख एवं नागपुरी विभाग के छात्र-छात्राओं ने प्रस्तुत किया।
हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जिंदर सिंह मुंडा ने आदिवासी संस्कृति को वर्तमान में विश्व को ग्लोबल वार्मिंग से बचाने की दिशा में महत्वपूर्ण बताया। लोक कलाकार एवं पद्मश्री मधु मंसुरी ने अपने गीतों के माध्यम से झारखंड की धरती पर औधोगिक महामारी को रेखांकित करते हुए हमें अगाह किया कि ऐसे ही यदि औद्योगिक कल कारखाना दिन के दिन लगता रहेगा तो हमारे सांस्कृतिक जीवन शैली कैसे जीवित रहेगा? उन्होंने कहा कि जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग झारखंड की भाषा एवं संस्कृति के संरक्षक है।
पूर्व कुलपति डॉ. सत्यनारायण सिंह मुंडा ने सरहुल हजारों साल सभी जाति एवं धर्म के लोग मनाने की बात कहते हुए कहा कि इन प्राकृतिक संरक्षक पर्व-त्योहार को विभिन्न पत्र-पत्रिका, साहित्य एवं पढ़ाई लिखाई के माध्यम से लाने को कहा ताकि प्रकृति संरक्षण में महत्वपूर्ण मददगार हो सके। पद्मश्री मुकुंद नायक ने अपने गीतों के माध्यम से झारखंडी संस्कृति को विश्व के श्रेष्टम संस्कृति होने की बात कही।
झारखंड ओपेन यूनिभरसिटी के कुलपति डॉ. त्रिवेणी नाथ साहू ने सरहुल को प्रकृति और संस्कृति के बीच आत्मीय संबंध होने की बात कहते हुए हमारे पूर्वजों ने प्राकृतिक तत्वों पर देवत्व स्थापित कर पूजने की परंपरा बनाया। यह पर्व हमारे जीवन का श्रृंगार स्वरूप हम सब सुशोभित कर रहा है।
दर्शनशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. आभा झा ने यहां के नृत्य संगीत, प्रकृतिक पूजक के अंदर कई महत्वपूर्ण दर्शन को उल्लेख करते हुए हमें आदिवासी जीवन दर्शन को समझने, परखने एवं भावी पीढ़ी को हस्थांतरिक करने की बात कही।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) तपन कुमार शांडिल्य ने झारखंडी संस्कृति में सरहुल को महापर्व के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि यह पर्व झारखंड के साथ छत्तीसगढ़, ओडिशा में भी धूमधाम से मनाया जाता है। इन्होंने सरहुल को पर्यावरण संरक्षण के दृष्टि से पूरे विश्व को संदेश देने की बात कही।
मंच संचालन करते हुए हो विभाग के प्राध्यापक डॉ. जय किशोर मंगल एवं संताली के डॉ. डुमनी माई मूर्मू ने कहा कि अगर पर्यावरण एवं प्रकृति को बचाना है कि हमें झारखंडी एवं आदिवासी संस्कृति को अपनाने की बात कही। धन्यवाद नागपुरी विभाग के प्राध्यापक डॉ. मनोज कच्छप ने किया।
इस अवसर पर बीच – बीच में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के विभिन्न विभाग – कुड़ुख़, नागपुरी, हो, खोरठा, संताली, कुड़मालि, मुंडारी, पंचपरगनिया एवं खड़िया के विभाग छात्र-छात्राओं द्वारा अपने भाषा में परंपरागत नृत्य-संगीत की प्रस्तुति से आखड़ा को संगीत मय बनाता रहा। इस अवसर पर कुड़मालि के विभागाध्यक्ष डॉ. पी. पी. महतो, कुड़ुख के विभागाध्यक्ष प्रो. रामदास उरांव, कुड़मालि के प्राध्यापक डॉ. एन. सी. महतो, खोरठा के प्राध्यापक डॉ. अजय कुमार, सुशिला कुमारी, संताली के संतोष मुर्मू, कुड़ुख़ के डॉ. सीता कुमारी, सुनिता कुमारी, नागपुरी के डॉ. मनोज कच्छप, डॉ. मालति बागिशा लकड़ा, पंचपरगनिया के लक्ष्मीकांत प्रमाणिक, खड़िया शांति केरकेट्टा विभाग के शोधार्थी अशोक कुमार पुराण, रूपेश कुमार कुशवाहा, सुचित कुमार राय, प्रवीण कुमार, राजेश कुमार महतो, संजय आदि विभिन्न विभाग के हजारों छात्र-छात्राएं एवं विश्वविद्यालय के कर्मचारी उपस्थित थे।
पूजा के बाद में उपस्थित सभी अतिथियों को प्रसाद वितरित किया गया। समारोह में मंच संचालन विभाग के शोधार्थी अशोक कुमार पुराण एवं रूपेश कुमार कुशवाहा ने किया एवं धन्यवाद पंचपरगनिया विभाग के सहायक प्राध्यापक लक्ष्मीकांत प्रमाणिक ने किया।
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