नई दिल्ली। सोमवार को लोकसभा चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग के आदेश से नेताओं के होश उड़ गए हैं। आयोग ने राजनीतिक दलों से कहा कि, वे पोस्टर एवं पर्चों समेत प्रचार की किसी भी सामग्री में बच्चों का इस्तेमाल ‘‘किसी भी रूप में” न करें। राजनीतिक दलों को भेजे परामर्श में निर्वाचन आयोग ने दलों और उम्मीदवारों द्वारा चुनावी प्रक्रिया के दौरान किसी भी तरीके से बच्चों का इस्तेमाल किए जाने के प्रति अपनी ‘‘कतई बर्दाश्त नहीं करने” की नीति से अवगत कराया।
आयोग ने कहा कि नेताओं और उम्मीदवारों को प्रचार गतिविधियों में बच्चों का इस्तेमाल किसी भी तरीके से नहीं करना चाहिए, चाहे वे बच्चे को गोद में उठा रहे हों या वाहन में या फिर रैलियों में बच्चे को ले जाना हों।
आयोग ने एक बयान में कहा, ‘‘किसी भी तरीके से राजनीतिक प्रचार अभियान चलाने के लिए बच्चों के इस्तेमाल पर भी यह प्रतिबंध लागू है, जिसमें कविता, गीत, बोले गए शब्द, राजनीतिक दल या उम्मीदवार के प्रतीक चिह्न का प्रदर्शन शामिल है।”
आयोग ने कहा कि लेकिन यदि कोई नेता जो किसी भी राजनीतिक दल की चुनाव प्रचार गतिविधि में शामिल नहीं है और कोई बच्चा अपने माता-पिता या अभिभावक के साथ उसके समीप केवल मौजूद होता है, तो इस परिस्थिति में यह दिशा निर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने निर्वाचन आयोग के प्रमुख हितधारकों के रूप में राजनीतिक दलों की महत्वपूर्ण भूमिका पर लगातार जोर दिया है। उन्होंने खासकर, आगामी संसदीय चुनावों के मद्देनजर लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने में उनसे सक्रिय भागीदार बनने का आग्रह किया है।
इससे पहले चुनाव आयोग ने 2009 में सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को फटकार लगाई थी, जब उसने देखा था कि बिहार के भागलपुर में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ले जाने के लिए बच्चों को नियुक्त किया गया था।
चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों के अनुसार, जिला चुनाव अधिकारियों को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ले जाने के लिए बच्चों को नियुक्त करने के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा और कानून के परिणामों का सामना करने के अलावा गंभीर अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करने के लिए भी उत्तरदायी होंगे।