
नई दिल्ली। बिहार में जातीय सर्वे के आंकड़े जारी होने के बाद सियासी भूचाल आ गया है। ऐसे में यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है। आइए जानें…
बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने हाल ही में जाति आधारित सर्वे के आंकड़े को सार्वजानिक किया था। इसके बाद कोई इस आंकड़े को गलत, तो कोई सही बता रहा है। जब यह मामला शीर्ष अदालत में पहुंचा, तो आज (शुक्रवार) इस पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अदालत ने जाति आधारित सर्वे पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया और अगली सुनवाई जनवरी में करने के लिए कहा।
सुनवाई करने वाली पीठ के अध्यक्ष जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, “हम किसी राज्य सरकार को नीति बनाने या काम करने से नहीं रोक सकते। सुनवाई में उसकी समीक्षा कर सकते हैं। हाईकोर्ट ने विस्तृत आदेश पारित किया है और हमें भी विस्तार से ही सुनना होगा। ये बात भी सही है कि सरकारी योजनाओं के लिए आंकड़े जुटाना जरूरी है। हम आप सभी को सुनना चाहेंगे।”
अदालत में अपना पक्ष रखते हुए वकील ने कहा कि सर्वे की प्रक्रिया ही निजता के अधिकार का हनन थी। इस दलील पर न्यायधीश ने कहा कि हम नोटिस जारी कर रहे हैं और अगली सुनवाई जनवरी में होगी। इसके बाद वकील द्वारा यथास्थिति का आदेश जारी करने का निवेदन किया गया, तो जज ने कहा कि हम किसी सरकार को नीति बनाने से नहीं रोक सकते, लेकिन लोगों के निजी आंकड़े भी सार्वजनिक नहीं होने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार करने पर, बिहार के मंत्री अशोक चौधरी ने कहा, “यह हमारे जैसे लोगों के लिए खुशी की बात है, जो इसका (जाति-आधारित सर्वेक्षण) समर्थन करते हैं। यह अच्छा है। यह आनंददायक है।”
जो लोग जाति-आधारित जनगणना का समर्थन करते हैं और नीतीश कुमार के साथ राजनीति में हैं-जिन्होंने सबसे पिछड़ों को पंचायत राज प्रणाली में आरक्षण प्रदान करके सशक्त बनाने का प्रयास किया, दलितों और महिला आरक्षण को सशक्त बनाने का प्रयास किया।