नई दिल्ली। दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित नोबल प्राइज का एलान कर दिया गया है। चिकित्सा क्षेत्र का नोबल पुरस्कार इस बार कैटालिन कारिको, ड्रू वीसमैन को दिया गया है। कोरोना के खिलाफ जंग में दोनों वैज्ञानिकों के अद्वितीय योगदान के लिए मेडिसीन का नोबल प्राइज संयुक्त रूप से दिया गया है।
कोरोना वैक्सीन बनाने में महत्वपूर्ण योगदान के लिए दोनों प्रोफेसर्स को नोबल पुरस्कार देने का फैसला किया गया है। प्रोफेसर कैटालिन कारिको, पेरेलमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन में न्यूरोसर्जरी के सहायक प्रोफेसर हैं, तो प्रोफेसर ड्रू वीसमैन पेरेलमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन में वैक्सीन रिसर्च के रॉबर्ट्स फैमिली प्रोफेसर हैं।
दोनों का न्यूक्लियोसाइड बेस मॉडिफिकेशन्स में महत्वपूर्ण योगदान है। इनकी इसी रिसर्च की वजह से एमआरएनए वैक्सीन का विकास संभव हो सका। इस mRNA वैक्सीन की वजह से दुनिया से कोरोना से जंग में सफलता मिली। नोबेल पुरस्कार के आधिकारिक एक्स अकाउंट ने ट्वीट किया कि कोविड-19 के खिलाफ जंग के लिए दोनों प्रोफेसर्स को मेडिसीन का नोबल पुरस्कार दिया गया।
प्रोफेसर कैटालिन कारिको और प्रोफेसर ड्रू वीसमैन ने साल 2005 में अपनी महत्वपूर्ण खोज के तहत न्यूक्लियोसाइड बेस मॉडिफिकेशन्स पर रिसर्च में सफलता पाई थी। दोनों वैज्ञानिकों की खोज की वजह से कोरोना में जब पूरी दुनिया में हाहाकार था, तो mRNA वैक्सीन का निर्माण संभव हो पाया।
एमआरएनए तकनीक का उपयोग करके दुनिया में पहली कोविड वैक्सीन फाइजर/बायोएनटेक और मॉडर्न द्वारा विकसित की गयी। पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में लंबे समय से सहयोगी रहे हंगरी के कारिको और संयुक्त राज्य अमेरिका के वीसमैन ने अपने शोध के लिए कई पुरस्कार जीते हैं। इसमें 2021 में प्रतिष्ठित लास्कर पुरस्कार भी शामिल है, जिसे अक्सर नोबेल के अग्रदूत के रूप में देखा जाता है।
पारंपरिक वैक्सीन के विपरीत, एमआरएनए वैक्सीन को यह जेनेटिक मालीक्युल्स को बताता है कि कौन से प्रोटीन को इंफेक्शन या इम्युन सिस्टम के लिए बढ़ाया जाए, जो असली वायरस को मार डालेगा। इस तरह के रिसर्च को पहली बार 1990 में प्रदर्शित किया गया था। लेकिन 2000 के दशक के मध्य तक वीसमैन और कारिको ने इन मालीक्युल्स के संपर्क में आने वाले जानवरों में देखी जाने वाली खतरनाक सूजन प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने के लिए एक तकनीक विकसित की, जिससे सुरक्षित मानव वैक्सीन विकसित करने का रास्ता खुल गया।
कारिको और वीसमैन की एमआरएनए तकनीक का उपयोग अब कैंसर, इन्फ्लूएंजा और हृदय विफलता जैसी बीमारियों व अन्य उपचार विकसित करने के लिए किया जा रहा है।
दोनों को 10 दिसंबर को स्टॉकहोम में एक औपचारिक समारोह में नोबेल प्राइज दिया जाएगा। किंग कार्ल XVI गुस्ताफ King Carl XVI Gustaf से अपना पुरस्कार प्राप्त करेंगे। इसमें एक डिप्लोमा, एक गोल्ड मेडल और 1 मिलियन डॉलर का चेक शामिल होगा। यह पुरस्कार वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की 1896 की डेथ एनिवर्सिरी पर दिया जाता है। यह पुरस्कार अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत से मिलता है।