सुजीत कुमार केशरी
समाज, राज्य और देश की सेवा करने वाले कालजयी होते हैं। उन्हें ना तो काल अपने समय में बांध पाता है और ना तो भौगोलिक सीमाओं में वे सिमटते होते हैं। ऐसे लोग दैहिक रूप से हमारे बीच नहीं रहते हैं, लेकिन अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। ऐसे ही विलक्षण गुणों से सम्पन्न थे।
ईश्वरी प्रसाद नौकरी करते हुए आराम से अपना जीवन जी सकते थे। जब युवावस्था में लोग भोग-विलास व विलासिता को जीवन में आत्मसात करने से नहीं चुकते हैं, उस उम्र में उन्होंने झारखंड की सांस्कृतिक विकृति को दूर कर, पुनः दिव्य रूप में उसकी स्थापना कर, झारखंडी अस्मिता की रक्षा करने का दायित्व अपने कंधों पर लिया। छोटानागपुर सांस्कृतिक संघ की स्थापना कर अपने इस सपने को पूरा करने का संकल्प लिया।
इनकी सबसे बड़ी विषेषता यह थी कि ये अपनी सुलझी विचारधारा के कारण एक अच्छी टीम बना सके। इनकी टीम के सदस्यों में झारखंड रत्न डॉ बीपी केशरी, पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा, पद्मश्री डॉ गिरिधारी राम गौंझू, पद्मश्री मुकुंद नायक, पद्मश्री मधु मंसूरी, डॉ राम प्रसाद, कुरमाली भाषी रामसाय महतो, मानसिंह महतो, खोरठा भाषी डॉ एके झा सहित अन्य नाम इस कड़ी में जुड़े हैं। सौम्य आचरण के कारण ये सभी को अपने विश्वास में लेकर चलने में सफल रहे। इसलिए ये अपने जीवन में एक साथ अनेक मोर्चें पर अपनी सफलता का परचम लहरा सके।
इसी क्रम में ‘डहर’ पत्रिका का प्रकाशन मील का पत्थर साबित हुआ। पत्रिका के माध्यम से झारखंड की सभ्यता-संस्कृति को संवारने वाले लोगों को ‘डहर’ पत्रिका में विशेष स्थान देकर अनेक अंक निकाले गये। इस प्रयास से अच्छे कार्य करने वालों को मान्यता देकर स्थापित करते गए। आमजन मानस में अपनी संस्कृति के प्रति आत्म-सम्मान की भावना भरते गए। 50 वर्ष से निरंतर इस पत्रिका का प्रकाशन ईश्वरी प्रसाद की विलक्षण प्रतिभा को प्रतिष्ठित करता रहा।
बड़े पिताजी ईश्वरी प्रसाद से मेरा परिचय तकरीबन 30 वर्ष पूर्व अपने बड़े पिताजी डॉ बीपी केशरी के माध्यम से हुआ। मौका था सिल्ली (रांची) में आयोजित सांस्कृतिक एवं छऊ नृत्य कार्यक्रम में न्योता देने का। इनके निमंत्रण पर मैं, मेरे बड़े पिताजी डॉ बीपी केशरी और मेरा चचेरा भाई शेखर कुमार सिल्ली पहुंचे। इसके बाद तो मिलने-जुलने का सिलसिला अनवरत चलता रहा। बाद के दिनों में नागपुरी संस्थान (शोध एवं प्रशिक्षण) केंद्र, पिठोरिया के सभी कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति और सानिध्यता हमें मिलती रही।
सच कहूं तो इनकी संगति से झारखंड को जानने-समझने की दृष्टि मिली। वहीं वैचारिक परिपक्वता भी आई। इनकी असीम खुशी तब देखने को मिली, जब इनकी कृति ‘समाज, संस्कृति और झारखंड’ छपकर आई। लोकार्पण के निमित्त इनके रांची डिबडीह स्थित आवास में 15 जुलाई, 2019 को लतीफ अंसारी के साथ पहुंचा। गौंझू चाचा, बड़े पिताजी ईश्वरी प्रसाद, उनके पुत्र राहुल मेहता के साथ विचार-विचार के बाद तय हुआ कि लोकार्पण नागपुरी संस्थान पिठोरिया में 21 जुलाई, 2019 को होगा। उस दिन वात्सल्य भाव से उनके द्वारा खिलाया गया मछली-भात स्मरणीय है।
21 जुलाई, 2019 को संस्थान में लोकार्पण हुआ। इस अवसर पर डॉ अशोक प्रियदर्शी, पद्मश्री डॉ गिरिधारी राम गौंझू, पद्मश्री मुकुंद नायक, साहित्यकार विद्या भूषण, धनेन्द्र प्रवाही, महादेव टोप्पो, डॉ सविता केशरी, डॉ शकुंतला मिश्रा सहित अन्य गणमान्य उपस्थित थे। उस दिन आत्म-सम्मान पाकर वे बहुत खुश थे। अबोध बालक-सा नैसर्गिक सुख पाकर आत्म-विभोर थे।
अनुराग और विराग को आत्मसात कर लेने वाले ईश्वरी प्रसाद अपने स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि दुनिया को सुख देने के लिए जीये। नीव के पत्थर कभी नजर नहीं आते, लेकिन उन पर ही पूरा भवन टिका होता है। लघु प्राण मानव होकर भी अपनी दूरदशिता, निष्ठा, ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता के कारण सर्व समर्थवान होकर अपने लक्ष्यों को प्राप्तकर सामान्य मानव के लिए नजीर बन गए।
हम सब आपके सपनों को जीएंगे। हां, आपके नहीं रहने से जो सुनापन है, वह समय के साथ भरेगा। नागपुरी संस्थान पिठोरिया की ओर से आपको प्रथम पुण्य तिथि अश्रूपूरित श्रद्धांजलि…….. सादर नमन। इन दो पंक्तियों के साथ-
मरना भला है उसका, जो अपने लिए जिए।
जीता है वह, जो मर चुका है इंसान के लिए।।