रांची। दुर्लभ एवं गंभीर बीमारी अप्लास्कि एनीमिया के इलाज के लिए झारखंड के लोगों को अब बाहर जाने की जरूरत नहीं है। उनका इलाज राज्य की राजधानी रांची के सेंटेवीटा अस्पताल में संभव है। गंभीर स्थिति में इस बीमारी से पीड़ित मरीज की जान अस्पताल के डॉ अभिषेक रंजन ने बचाई।
डॉ अभिषेक ने 4 अप्रैल, 2023 को मीडिया को बताया कि झारखंड में पहली बार अप्लास्टिक अनीमिया का हॉर्स एटीजी के साथ इम्यूनोसप्रेसिव पद्वति से 84 वर्षीय महिला का सफल इलाज किया गया। वह पेशे से वरीय गाईनोलॉजिस्ट हैं। इस रोग में बोन मैरो सूख जाता है, जहां हेमैटोपोएटिक ब्लड सेल का निर्माण होता है। इसके कारण सेलों का निर्माण नहीं होता, जो कि गंभीर पैनसिटोपेनिया की ओर अग्रसर करती है। यह काफी लाईफ थ्रीटनिंग परिस्थिति होती है।
गंभीर स्थिति में रोगी को डॉ अभिषेक की चिकित्सा में रांची स्थित सेंटेविटा अस्पताल में भर्ती कराया गया। परीक्षण के बाद पाया गया कि रोगी गंभीर पैनसिटोपेनिया के साथ-साथ अति निम्न डब्ल्यूबीसी काउंट के साथ ऐबसॉल्यूट न्यूट्रोफिल्स काउंट जो 500 से कम, प्लैटलेट्स 20000 से कम और निम्न हेमोग्लोबिन से पीड़ित है। इसके आगे बोन मैरो परीक्षण, बॉयोप्सी, मॉलेकुलर पैनल व फ्लो साईटोमेट्री के विस्तृत मूल्याकंन से पता चला कि रोगी अति गंभीर अप्लास्टिक अनीमिया से ग्रसित है, जो एक मेडिकल इमरजेंसी और लाईफ थ्रीटनिंग परिस्थिति है।
सेंटेवीटा अस्पताल में मरीज को लगभग 10 लाख रुपए लागत के साथ लगभग 20 दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती रखा गया है। अगले 2 से 3 महीनों के दौरान मरीज को फॉलो-अप के लिए आना और अन्य दवाओं के साथ लगभग 2 लाख/माह की लागत वाली विशेष दवा टैबलेट वैलकेड दी जाती है। झारखंड में पहली बार हेमेटोलॉजी में इस तरह की जटिल प्रक्रिया हुई है।
इससे पहले मरीजों को इस प्रकार के इलाज के लिए राज्य से बाहर जाना पड़ता था, जहां इलाज और भी महंगा होता है। लगभग 25 से 30 लाख रुपए खर्च होते हैं। मरीज को वहां 3 से 4 महीने तक रहना भी पड़ता है, जिससे मानसिक तनाव और आर्थिक बोझ भी पड़ता है।
सेंटिविटा अस्पताल ने यह दुर्भल एवं जटिल समस्या का समाधान कम लागत में एवं कम समय में कर दिखाया है। इस कार्य में अस्पताल प्रबंधन के साथ-साथ डॉ अभिषेक रंजन व उनकी टीम का बहुत ही उल्लेखनीय योगदान रहा है।