- मिलेट्स उत्पादन में भी झारखंड सरप्लस स्टेट बन सकता है
रांची। झारखंड में प्राचीन काल से परंपरागत तरीके से मोटे अनाज यानी मिलेट्स की खेती होती आ रही है। स्थानीय परिवेश में इसके खाद्य उत्पादों का सेवन प्रचलित रहा है। 60 के दशक के बाद गेहूं और धान को बढ़ावा देने से लोगों की थाली से मिलेट्स उत्पाद दूर हो गए। आज मिलेट्स को पोषणयुक्त आहार का पॉवर हाउस और सुपर फ़ूड कहा जा रहा है। उक्त बातें खूंटी में आयोजित झारखंड मिलेट्स मेला एवं सम्मेलन में मुख्य नोट्स प्रस्तुत करते हुए बीएयू कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने 27 अप्रैल को कही।
डॉ सिंह ने कहा कि कोरोनाकाल में मिलेट्स को पोषण गुणों के आधार पर वैश्विक स्तर पर पहचान मिली। आज वर्ष 2023 को पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष के रूप में मना रहा है। वैश्विक, राष्ट्रीय एवं स्थानीय बाजार में मिलेट्स उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है। किसानों को मिलेट्स से अच्छी आय की संभावना बढ़ी है।
धान की जगह मिलेट्स की खेती हो
कुलपति ने कहा कि बीएयू ने अधिक उपजशील मिलेट्स के अनेकों उन्नत किस्मों को विकसित किया है। बीएयू के सामुदायिक विज्ञान विभाग में मिलेट्स के प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्धित उत्पादों का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रदेश की वर्षाश्रित खेती स्वतः मिलेट्स फसल की खेती के लिए उपयुक्त है। प्रदेश की ऊंची (अपलैंड) भूमि में धान की जगह मिलेट्स की खेती को बढ़ावा देकर सब्जी फसल की तरह झारखंड को मिलेट्स मामले में सरप्लस स्टेट बनाया जा सकता है।
पोषण सुरक्षा का बेहतर विकल्प
बीएयू मिलेट्स के उन्नत किस्मों की बीज की उपलब्धता बढ़ाने की दिशा में कार्य कर रहा है। कहा कि बढ़िया मूल्य एवं पोषण गुण की वजह से मिलेट्स प्रदेश में आजीविका एवं पोषण सुरक्षा का बेहतर विकल्प बन सकता है। बीएयू के हॉस्टल, मेस एवं कैंटीन में मिलेट्स उत्पादों को शामिल करने का निर्देश दिया गया है। विद्यालयों के मिड डे मिल में शामिल कर जागरुकता को और बढ़ावा दिया जा सकता है।
सम्मेलन में तकनीकी पैनल चर्चा
इस सम्मेलन में राय यूनिवर्सिटी के डीन एग्रीकल्चर डॉ आरपी सिंह रतन की अध्यक्षता में आयोजित तकनीकी पैनल चर्चा में बीएयू मिलेट्स वैज्ञानिक डॉ अरुण कुमार ने किसानों को विभिन्न मिलेट्स फसल, उनका महत्व, उन्नत किस्म एवं वैज्ञानिक खेती तकनीक, पोषक गुण आदि की जानकारी दी।
इस चर्चा में किसानों ने मिलेट्स की उत्पादन एवं उत्पादकता में कमी की समस्या बताई। डॉ अरुण कुमार ने स्थानीय उपयुक्त अनुशंसित उन्नत किस्मों का चयन, ऊंची (अपलैंड) भूमि में मिलेट्स की खेती, खेतों में जल-जमाव को दूर करने और खर-पतवार नियंत्रण को मिलेट्स की सफल खेती का मूल मंत्र बताया।
मिलेट्स मेला में तकनीकी प्रदर्शित की
बिरसा कॉलेज (खूंटी) में लगे मिलेट्स मेला में बीएयू के अनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग तथा बीएयू द्वारा संचालित केवीके सिमडेगा ने मिलेट्स फसलों से सबंधित तकनीकी, उत्पादों, बीज आदि के प्रादर्श प्रदर्शित किया। इस स्टांल में केवीके सिमडेगा प्रधान डॉ एसके सिंह तथा बीएयू वैज्ञानिक (मिलेट्स) डॉ सबिता एक्का ने किसानों एवं लोगों को मिलेट्स की महत्ता, उन्नत खेती तकनीकी, मिलेट्स उत्पादों का उत्पादन आदि की जानकारी दी। स्थानीय किसानों की खेती सबंधी समस्यायों का निदान किया. स्टांल में किसानों को मिलेट्स की उन्नत खेती से सबंधित तकनीकी फोल्डर मुफ्त उपलब्ध कराया गया।
बीज की उपलब्धता की जानकारी मांगी
केवीके सिमडेगा प्रधान डॉ एसके सिंह से स्टांल में अनेकों स्टार्टअप कंपनी एवं एनजीओ के प्रतिनिधियों ने मिलेट्स बीज की उपलब्धता के बारे जानकारी मांगी। डॉ सिंह ने बताया कि सिमडेगा जिले के करीब 25 हजार हेक्टेयर में मिलेट्स फसलों में रागी, गुन्दली, सांवा (सोसो) एवं ज्वार की खेती की जाती है। केवीके द्वारा गत वर्ष 200 किसानों के खेतों में मिल्लेट्स फसल पर एफएलडी कराया गया।
केवीके सिमडेगा में रागी के 12 क्विंटल और गुन्दली के एक क्विंटल उन्नत बीज बिक्री के लिए उपलब्ध है। एफएलडी से लाभान्वित किसान के पास भी 40 क्विंटल से अधिक बीज बिक्री के लिए उपलब्ध है। केवीके द्वारा जिले में एफएलडी, ट्रेनिंग एवं जागरुकता अभियान के माध्यम से मिलेट्स की खेती को बढ़ावा दी जा रही है।
इस दो दिवसीय झारखंड मिलेट्स मेला एवं सम्मेलन का आयोजन केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्कृत एवं उद्योग मंत्रालय, नई दिल्ली एवं पीएचडी चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के संयुक्त तत्वावधान में उपायुक्त, खूंटी के सहयोग किया गया है।