मुंबई। अडानी समूह की एसीसी (ACC) लिमिटेड ने दिल्ली और हैदराबाद में अपना नया प्रोडक्ट ‘एसीसी एरोमैक्सएक्स’ लॉन्च किया है। अत्याधुनिक अल्ट्रालाइट फिलर और इंसुलेशन कंक्रीट वाला यह प्रोडक्ट निर्माण उद्योग में एक नया आयाम जोड़ता है। यह एक विशेष प्रकार की मिनरल फोम-आधारित इंसुलेटिंग तकनीक है। एक अद्वितीय सुपरलाइट कंक्रीट है, जो निर्माण के समय ही सतह को इन्सुलेट करने वाला एक लंबे समय तक चलने वाला रूफिंग सॉल्यूशन बन जाता है।
एसीसी एरोमैक्सएक्स एक विशेष प्रकार का खनिज इन्सुलेशन फोम है, जिसमें सीमेंटयुक्त घोल होता है। इसे खास तौर पर वेल-डिस्ट्रीब्यूटेड एयर बबल्स बनाने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है। इसके परिणामस्वरूप वांछित थर्मल इन्सुलेशन हासिल होता है। यह 300 किग्रा/एम3 और उससे अधिक के कम घनत्व में उपलब्ध है।
एसीसी के रिसर्च और डेवलपमेंट संबंधी बेहतर अनुभव पर आधारित सटीक फॉर्मूलेशन के कारण कम घनत्व निरंतर कायम रहता है। यह पूरी तरह से आग प्रतिरोधी, लंबे समय तक चलने वाला और टिकाऊ है। यह किसी भी प्रकार के आकार और छिद्रों को भर सकता है। एसीसी एरोमैक्सएक्स डेडवेट को कम करके थर्मल इंसुलेशन और स्ट्रक्चरल एफिशिएंसी के बीच संतुलन के लिए सॉल्यूशंस की एक विस्तृत रेंज प्रदान करता है।
एसीसी एरोमैक्सएक्स अपने बेहतर थर्मल इन्सुलेशन गुणों के साथ, बाहरी तापमान की तुलना में आंतरिक तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है। इस प्रकार, ऊर्जा दक्षता में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन से उपजे प्रभाव को कम करना संभव हो जाता है। यह सबसे हल्का है जो स्ट्रक्चर के डेड लोड को काफी कम करता है और मौजूदा भराव समाधानों की तुलना में अधिक स्ट्रक्चरल एफिशिएंसी पैदा करता है। यह न केवल स्ट्रक्चरल एफिशिएंसी लाता है, बल्कि डेडवेट कम होने के कारण लागत दक्षता भी लाता है।
सीमेंट बिजनेस के सीईओ अजय कपूर ने कहा, ‘हम रिसर्च और डेवलपमेंट संबंधी अपनी क्षमताओं के माध्यम से कम कार्बन वाले प्रोडक्ट्स और सस्टेनेबल सॉल्यूशंस को विकसित करने के लिए अपने प्रोएक्टिव एप्रोच के अनुसार काम करना जारी रखेंगे। एसीसी एरोमैक्सएक्स के लॉन्च के साथ, ग्राहकों के पास अब ऐसा कंक्रीट चुनने का विकल्प है जो ऊर्जा कुशल और टिकाऊ निर्माण समाधानों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन पर उनके प्रभाव को कम करता है। हम अन्य इनोवेटिव ‘ग्रीन सीमेंट’ समाधानों को लॉन्च करना जारी रखेंगे, क्योंकि हमारे बाजार की सस्टेनेबिलिटी संबंधी जरूरतें विकसित और परिपक्व हो रही हैं।’