सूकर की बांडा एवं पूर्णिया नस्लों के लिए बीएयू को मिला आइसीएआर का पंजीकरण प्रमाणपत्र

झारखंड
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  • अब इन नस्लों पर बढ़ेगा अनुसंधान और विकास कार्य

रांची। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आइसीएआर) ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय को हाल में पंजीकृत उसकी दो सूकर नस्लों (बांडा एवं पूर्णिया) के लिए 16 फरवरी को पंजीकरण प्रमाणपत्र दिया। किसी भी पशु नस्ल पर अनुसंधान, प्रसार एवं विकास नीति बनाने के लिए उसका पंजीकरण जरूरी है। इसलिए अब इन नस्लों के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में काम बढ़ सकेगा।

झारखंड में ग्रामीणों के बीच सूकर पालन बहुत लोकप्रिय है। यहां सूकर आबादी असम के बाद सर्वाधिक है। वर्ष, 2019 की पशु जनगणना के अनुसार लगभग 12.8 लाख सूकर हैं। हालांकि पहले झारखंड की अपनी कोई पंजीकृत सूकर नस्ल नहीं थी।

आइसीएआर मुख्यालय नई दिल्ली में आयोजित एक विशेष समारोह में संस्‍थान के उप महानिदेशक (पशुपालन) डॉ बीएन त्रिपाठी, भारत सरकार के पशुपालन आयुक्त अभिजीत मित्रा, राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (करनाल) के निदेशक डॉ बीपी मिश्र और आइसीएआर की विशेष सचिव अलका नगीना अरोडा ने प्रमाणपत्र प्रदान किया। केंद्रीय कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कार्यक्रम में ऑनलाइन भाग लिया।

लगभग एक दशक के शोध प्रयास के बाद बीएयू के पशु उत्पादन एवं प्रबंधन विभाग के वैज्ञानिक डॉ रविन्द्र कुमार द्वारा पंजीकृत/खोजी गयी ये नस्लें किसानों के बीच काफी लोकप्रिय है। झारखंड की ग्रामीण परिस्थितियों में न्यूनतम लागत पर आसानी से पाली जा सकती है।

पशु उत्पादन एवं प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष डॉ सुशील प्रसाद और राष्ट्रीय सूकर अनुसंधान केंद्र (गुवाहाटी) के मुख्य वैज्ञानिक डॉ शांतनु बानिक बांडा नस्ल के पंजीकरण के लिए सह आवेदक थे। डॉ शांतनु बानिक और झारखंड सरकार के वेटनरी ऑफिसर डॉ शिवानन्द काशी पूर्णिया नस्ल के लिए सह आवेदक थे।

उनके सहयोग एवं मार्गदर्शन से इस नस्ल की खोज एवं गुण निर्धारण का काम पूर्ण किया गया। पहले इन्हें देशी/ स्थानीय नस्ल के नाम से जाना जाता था। अब देश में सूकर के पंजीकृत नस्लों की संख्या 11 हो गयी है।

डॉ रविन्द्र कुमार ने बताया कि बांडा नस्ल झारखंड के मुख्यतः रांची, गुमला, लोहरदगा, बोकारो, धनबाद, रामगढ, पश्चिम सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सिमडेगा एवं गोड्डा आदि जिलों में बहुतायत में मिलती है। बांडा सूकर की छोटे आकार की नस्ल है। इसका रंग काला, कान छोटे एवं खड़े, पेट बड़ा और गर्दन पर कड़े बाल होते हैं।

यह नस्ल एक वर्ष में करीब 20-30 किग्रा वजन की हो जाती है। एक बार में 3-5 बच्चे देने की क्षमता रखती है। एक वयस्‍क बांडा का वजन औसतन 28 से 30 किलो होता है। यह प्रजाति दूर तक दौड़ सकती है। सुदूर भ्रमण से जंगलों से भी खाने योग्य पोषण प्राप्त कर लेती है।

पूर्णिया नस्ल मुख्य रूप से झारखंड के संथालपरगना क्षेत्र एवं बिहार के पूर्णिया एवं कटिहार जिलों में पायी जाती है। यह नस्ल माध्यम आकार और काले रंग की होती है। इसके बाल सधे और लंबे होते हैं। ब्रश बनाने के भी काम आते हैं। एक सूकर पालने पर बिना विशेष लागत के साल में 10 से 12 हजार रुपए की आय हो सकती है।

बीएयू कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने इन नस्लों का पंजीकरण प्रमाणपत्र मिलने पर सम्बंधित वैज्ञानिकों को बधाई दी है। इसे झारखंड का गौरव बढ़ाने वाली उपलब्धि बताया।