नई दिल्ली। दक्षिण अफ्रीका से फिर चीते भारत आएंगे। इसके लिए दोनों देशों ने एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। समझौते के अनुसार फरवरी, 2023 के दौरान 12 चीतों का एक प्रारंभिक जत्था दक्षिण अफ्रीका से भारत लाया जाना है। ये चीते 2022 के दौरान नामीबिया से भारत लाए गए आठ चीतों के साथ शामिल हो जायेंगे।
चीतों की आबादी को बढ़ाना भारत की प्राथमिकता है। इसके संरक्षण के महत्वपूर्ण एवं दूरगामी परिणाम होंगे। इसका लक्ष्य कई पारिस्थितिक उद्देश्यों को हासिल करना होगा, जिसमें भारत में उनकी ऐतिहासिक सीमा के भीतर चीते की भूमिका को फिर से स्थापित करना और स्थानीय समुदायों की आजीविका संबंधी विकल्पों को बेहतर करना तथा उनकी अर्थव्यवस्थाओं को आगे बढ़ाना शामिल है। फरवरी में 12 चीतों के लाने के बाद अगले 8 से 10 वर्षों के लिए सालाना 12 चीतों को स्थानांतरित करने की योजना है।
पिछली शताब्दी में अधिक शिकार और निवास स्थान के नुकसान के कारण इस प्रतिष्ठित प्रजाति के स्थानीय स्तर पर विलुप्त हो जाने के बाद चीता को एक पूर्व दायरे वाले देश में फिर से लाने की पहल भारत गणराज्य की सरकार से प्राप्त अनुरोध के बाद की जा रही है। इस बहु-विषयक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम को दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रीय जैव विविधता संस्थान (एसएएनबीआई), दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रीय उद्यान (एसएएनपार्क), चीता रेंज विस्तार परियोजना, और दक्षिण अफ्रीका में लुप्तप्राय वन्यजीव ट्रस्ट (ईडब्ल्यूटी) के सहयोग से राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) और भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के साथ मिलकर वानिकी, मत्स्य पालन और पर्यावरण विभाग (डीएफएफई) द्वारा समन्वित किया जा रहा है।
भारत में चीता को फिर से लाने से संबंधित यह समझौता ज्ञापन (एमओयू) भारत में चीता की व्यवहार्य और सुरक्षित आबादी स्थापित करने हेतु दोनों पक्षों के बीच सहयोग की सुविधा प्रदान करता है; संरक्षण को बढ़ावा देता है। यह सुनिश्चित करता है कि चीता के संरक्षण को बढ़ावा देने संबंधी विशेषज्ञता को साझा व आदान-प्रदान हो और उसके लिए आवश्यक क्षमता का निर्माण किया जाए।
इसमें मानव-वन्यजीव संघर्ष समाधान, वन्यजीवों का कब्जा एवं स्थानांतरण और दोनों देशों में संरक्षण के कार्यों में सामुदायिक भागीदारी शामिल है। समझौता ज्ञापन के अनुसार, दोनों देश बड़े मांसाहारी जीवों के संरक्षण में प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण, प्रबंधन, नीति और विज्ञान के क्षेत्र में पेशेवरों के प्रशिक्षण के माध्यम से सहयोग और उत्कृष्ट कार्यप्रणालियों का आदान-प्रदान करेंगे, और दोनों देशों के बीच स्थानांतरित चीतों के लिए एक द्विपक्षीय संरक्षकता की व्यवस्था बनायेंगे।
इस समझौता ज्ञापन की शर्तों की प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिए इसकी हर पांच साल में समीक्षा की जाएगी।