रांची। आत्महत्या समाज के लिए नासूर बनता जा रहा है। आए दिन आत्महत्या की खबरें सामने आ रही है। जांच में की वजह अलग-अलग सामने आती है। विशेषज्ञों का मानना है कि जागरुकता से आत्महत्या से होने वाली मौत को रोका जा सकता है। इसके लिए झारखंड की राजधानी रांची के कांके स्थित केंद्रीय मनश्विकित्सा संस्थान (CIP) पहल की है। इसके तहत अब लोगों को क्षेत्रीय भाषाओं में भी जागरूक किया जाएगा।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरों की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 2019 में 1646 लोगों ने आत्महत्या की। वर्ष, 2018 में 1317 लोगों ने आत्महत्या की थी। 2019 में एक माह में 137 लोग आत्महत्या की, वहीं कोरोना के दौरान 4 माह में हर महीने 197 लोगों ने जान दी।
ब्यूरों के मुताबिक साल, 2019 के अनुसार झारखंड में औसत आत्महत्या 4.4 है, वहीं इन चार माह में हर दिन औसतन सात लोग जान दे रहे हैं। आत्महत्या का राष्ट्रीय औसत एक लाख आबादी पर 10.4 है। 2019 में झारखंड में 1646 लोगों ने आत्महत्या की। यह 2018 के मुकाबले 20% ज्यादा है।
सीआईपी के निदेशक प्रो (डॉ) बासुदेब दास के मुताबिक झारखंड के चार क्षेत्रीय भाषाओं में जागरुकता सामग्री जारी की जाएगी। इसमें हो, संथाली, कुड़ुख और नागपुरी शामिल हैं। इन भाषाओं को बोलने वालों की झारखंड में बड़ी संख्या है। क्षेत्रीय भाषओं के माध्यम से लोगों तक भावनाएं या बात पहुंचाने में आसानी होती है।
डॉ दास ने बताया कि ये जागरुकता सामग्री अंतराष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम संगठन (IASP) द्वारा विकसित की गई है। उनकी सामग्री को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने की अनुमति भी ली गई है।
सीआईपी में 12 सितंबर को ‘आत्महत्या रोकथाम को लेकर जागरुकता’ से संबंधित इन पोस्टरों का विमोचन किया जाएगा। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व उपकुलपति सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ सत्य नारायण मुंडा और सामजिक कार्यकर्ता दयामणि बारला होंगे।