राजधानी रांची के बंसल परिवार के लिए आजादी का अमृत महोत्सव के हैं अलग मायने

झारखंड
Spread the love

रांची। पूरा भारतवर्ष आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। यह महोत्सव हर देशवासी के लिए गर्व का क्षण है। इसमें लोग अपने-अपने स्तर से योगदान दे रहे हैं। इस महोत्सव में दो शब्दों की महत्ता साफ झलकती है। एक आजादी और दूसरा अमृत।

आजादी का तात्पर्य लोग अपने-अपने हिसाब से लगाते हैं। किसी को पढ़ने की आजादी चाहिए। किसी को आसमां छूने की। किसी को फौज में जाकर देश की सेवा करने की। किसी को हर कुछ करने की आजादी चाहिए।

हालांकि झारखंड की राजधानी रांची के व्यवसायी वीरेंद्र बंसल के परिवार के लिए आजादी का मतलब औरों से परे है। वह समाज में दोयम दर्जे की समझे जाने वाली महिलाओं को इस परिधि से आजाद करना चाहते हैं। उन्हें सशक्त और आत्मनिर्भर होता देखना चाहते हैं। यही वजह है कि वीरेंद्र की मां मोली देवी बंसल और पिता सोहन लाल बंसल ने आजादी का अमृत महोत्सव पर महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उनका रोजगार सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने 10 से 12 महिलाओं के समूह को एक सेनेटरी पैड मशीन सहयोग के रूप में देने का संकल्प लिया है।

वीरेंद्र कहते हैं कि महिलाओं का समूह सेनेटरी पैड बनाएंगी। मार्केट में सेल करेंगी। इसका कई तरह का सकारात्मक प्रभाव समाज में देखने को मिलेगा। इससे महिलाएं स्वयं सशक्त और आत्मनिर्भर होंगी। लड़कि‍यों को हाईजेनिक पैड मिल पाएगा। वह निरोग हो सकेंगी। इससे आने वाली पीढ़ी सेहतमंद होगी। स्वच्छ भारत अभियान को भी बड़ा बल मिलेगा। यह महिलाओं समेत समाज के लिए अमृत जैसा काम करेगा।

इस तरह की पहल के लिए लायंस क्लब ऑफ रांची ईस्ट की टीम ने बंसल परिवार का आभार जताया है। उनके व्यापार के बढ़ने की कामना ईश्वर से की है। महिलाओं से लगातार संपर्क लायंस क्लब की सुनीता अग्रवाल कर रही हैं। सुनीता अग्रवाल ने बंसल परिवार को खासकर वीरेंद्र बंसल को धन्यवाद देती हैं कि उन्होंने इस कार्य को करने का बीड़ा उठाया।

इधर लायंस क्लब ऑफ रांची ईस्ट के अध्यक्ष रत्नलाल अग्रवाल ने अपनी भावी योजनाएं शेयर की। उन्होंने कहा कि लायंस क्लब महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर हमेशा से गंभीर रहा है।

आजादी के 75वें अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में कुछ महिलाओं के समूह के बीच सिलाई मशीन का वितरण किया जाएगा। इन महिलाओं को ट्रेनिंग देकर इन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाएगा, ताकि ये खुशहाल जीवन जी सकें।