- कृषि वैज्ञानिकों के साथ समन्वय बनाकर काम करने की जरूरत
- फसल की क्षति और मार्केट लिंकेज की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए
रांची। झारखंड में सुखाड़ की आशंका को लेकर कृषि विभाग सतर्क हो गया है। वर्ष, 2022 में औसत से 58 फीसदी कम बारिश होने की वजह से किसानों में मायूसी है। किसान के चेहरे पर मुस्कुराहट बरकरार रहे, इसके लिए 26 जुलाई को कृषि मंत्री बादल पत्रलेख की अध्यक्षता में कृषि विज्ञान केंद्र, आईसीएआर, बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के साथ राज्य के वर्तमान हालात पर महामंथन किया गया। नेपाल हाउस स्थित सभागार में कृषि वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि राज्य में भीषण संकट की आशंका प्रबल होती जा रही है। सबसे कम बारिश की वजह से बुवाई का काम काफी कम हुआ है, जो एक चिंता का विषय है।
कृषि वैज्ञानिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाये
बादल ने कहा कि ऐसी विषम परिस्थिति में राज्य के किसान कृषि वैज्ञानिकों से शोध की गुणवत्ता के उत्कृष्ट उदाहरणों की अपेक्षा रखता है। राज्य के निर्माण में कृषि वैज्ञानिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाये और कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुरूप दस्तावेज तैयार कर किसानों तक जागरुकता अभियान चलाया जाए। हमें राज्य मल्टीक्राप को बढ़ावा देने के लिए चावल और गेहूं के साथ दाल और दलहन व अन्य खेती पर भी फोकस करना होगा। साथ ही, फूड सिक्योरिटी के साथ न्यूट्रिशन सिक्यूरिटी लोगों को मिले, इसका भी ख्याल रखने की जरूरत है। उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र को क्वालिटी सीड्स प्रोडक्शन के लिए आधुनिक सुविधा उपलब्ध कराने की भी बात कही।
आने वाले 20 दिन काफी क्रिटिकल
कृषि मंत्री ने कहा कि राज्य के किसानों को लेकर वह काफी चिंतित हैं। झारखंड राज्य फसल राहत योजना के तहत राज्य के 20,000 कॉमन सर्विस सेंटर किसानों को असिस्ट कर रहे हैं। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कहा कि आने वाले 20 दिन काफी क्रिटिकल है। इसलिए सभी को मिलकर काम करना होगा। जरूरत इस बात की है कि सुखाड़ की स्थिति में भी संभावनाओं की तलाश जारी रखी जाए। अगर भविष्य में सुखाड़ जैसे हालात बनते हैं तो केंद्र सरकार से अनुदान के लिए राज्य सरकार की ओर से मजबूत तरीके से दावेदारी पेश की जानी चाहिए।
कृषि विज्ञान केंद्र राज्य के बैकबोन : सचिव
कृषि विभाग के सचिव अबू बकर सिद्दीख पी ने कहा के राज्य में बारिश कम होने की वजह से उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए शॉर्ट टर्म और वैकल्पिक फसल पर जोर देने की जरूरत हैं। उन्होंने उड़द, मडुआ और सोयाबीन की खेती करनी होगी। साथ में मक्का, अरहर, ज्वार और बाजरा जो न्यूट्रीशनली रिच हैं, उन पर फोकस करना होगा। उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से कहा कि कृषि विज्ञान पर केंद्र राज्य का बैकबोन है। इसलिए इनकी भूमिका जागरुकता के साथ-साथ तकनीकी मदद देने में भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधियों और पदाधिकारी किसानों के साथ समन्वय बनाए, ताकि राज्य में सुखाड़ की आशंका को लेकर निदान की दिशा में कदम बढ़ाए जा सके।
निदेशक ने वर्तमान स्थिति पर दिया प्रेजेंटेशन
कृषि निदेशक श्रीमति निशा उरांव ने राज्य की वर्तमान स्थिति पर प्रेजेंटेशन दिया। बताया कि राज्य में अब तक औसत से 51 फीसदी कम बारिश हुई है। राज्य के 21 जिलों में स्पेशल केयर करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि पेडी में सबसे ज्यादा शॉर्ट फॉल दिखाई दे रहा है। वर्ष, 2021 में 36.7 4% अब तक एरिया कवर किया गया था। वर्ष, 2022 में मात्र 14.11 प्रतिशत ही एरिया में फसल लगी है। उन्होंने बताया कि राज्य में शॉर्ट ड्यूरेशन वैराइटी पर फोकस किया जा रहा है। नई तकनीकी की जानकारी किसानों तक पहुंचाने की योजना है। विशेष कृषक गोष्ठी का आयोजन जारी है। इसके माध्यम से किसानों को नई तकनीकी का बारे में जानकारी दी जा रही है। कृषि निदेशालय ने ब्लॉक चेन रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। उन्होंने कहा कि बारिश के स्तर को देखते हुए अलग-अलग जिलों का समूह बनाया गया है। सभी जिलों से अलग-अलग स्पेशल मीटिंग की जा रही है।
कृषि वैज्ञानिकों ने दिए ये सुझाव
महामंथन के दौरान बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी कृषि वैज्ञानिक केंद्र और आईसीएआर के कृषि वैज्ञानिकों ने सलाह दी। उन्होंने कहा कि झारखंड के इको सिस्टम के मुताबिक कृषि में विभिन्न अव्यवों को जोड़ने की जरूरत है। राज्य में डीएसआर मेथड पर भी काम करने की आवश्यकता है। मौजूदा परिस्थिति में किसानों को बीज वितरण में मिल रही 50 फीसदी सब्सिडी को बढ़ाकर 75% सब्सिडी अनुदान देने की जरूरत है। कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिए सरफेस वाटर हार्वेस्टिंग पर नीति बनाने की जरूरत पर बल देते हुए वैज्ञानिकों ने कहा कि अगर नीति राज्य सरकार द्वारा बनाई जाती है तो मिट्टी की नमी को बचाया जा सकेगा।
बैठक में मुख्य रूप से निदेशक मृत्युंजय वर्णवाल, शशि प्रकाश झा सहित बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, कृषि विज्ञान केंद्र और आईसीएआर के कृषि वैज्ञानिक सहित कई पदाधिकारी उपस्थित थे।