संघ ने शिक्षकों की इन ज्‍वलंत समस्‍याओं पर मंत्री का फिर ध्‍यान कराया आकृष्‍ट

झारखंड शिक्षा
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रांची। अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ ने स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता मंत्री जगरनाथ महतो को स्मार पत्र देकर शिक्षकों की ज्वलंत समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट कराया है। संघ के प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र चौबे, महासचिव राममूर्ति ठाकुर और मुख्य प्रवक्ता नसीम अहमद ने कहा कि वर्तमान समय में शिक्षकों पर अत्यधिक गैर कक्षा कार्यों का है। विगत वर्षों से शिक्षकों पर अत्यधिक प्रतिवेदनों की तैयारी एवं भेजने का अवांछित कार्य बोझ है। हर दिन किसी न किसी कार्यालय से प्रतिवेदन की मांग की जाती है। विलंब होने पर शिक्षकों का वेतन बंद करने की कार्रवाई आम बात हो गई है। इससे पठन-पाठन प्रभावित होता है।

चावल उठाव पर लगे रोक

पदधारियों ने कहा कि कुछ ऐसे भी कार्यों का दबाव है, जो किसी आदर्श शिक्षण संस्थान के शिक्षकों के लिए नहीं होता। मसलन एमडीएम चावल उठाव के लिए गोदाम तक शिक्षकों को जाना पड़ता है। चावल उठाव के लिए गोदाम आना-जाना किसी शैक्षणिक संस्थान में शिक्षकों के मूल कर्तव्य से भटकाव की स्थिति उत्पन्न करता है। किसी भी उन्नत और आदर्श शिक्षण संस्थान में शिक्षकों से यह सब काम नहीं लिया जाता। इससे बचाव के लिए गोदाम से चावल विद्यालय तक पहुंचाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। चावल के बोरो को बेचने एवं रिकार्ड रखने और उसे बेचकर राशि प्राप्त करने का कार्य भी विद्यालयों को सौंपा गया है। यह अपने आप में ही आश्चर्यजनक प्रतीत होता है। इसपर तत्काल रोक लगनी चाहिए।

अत्यधिक प्रतिवेदन की मांग

विभाग और कार्यालय स्तर से निमित्त अत्यधिक कागजी डिजिटल प्रतिवेदनओं की मांग की जाती है, जबकि विद्यालय में कोई लिपिक नहीं है। ऐसे में रिपोर्टिंग कार्य को न्यूनतम किया जाना शिक्षा हित में होगा।

मूल पाठ्यक्रम पीछे रह जाता है

झारखंड शिक्षा परियोजना के अंतर्गत कार्यरत विभिन्न एनजीओ द्वारा अपने-अपने मॉडलों को विद्यालयों तक लागू करने के लिए लाया जाता है। नतीजतन एक का फलाफल पता चले बिना दूसरा मॉडल सामने आ जाता है। इस प्रकार वर्ग विशेष का मूल पाठ्यक्रम पीछे रह जाता है।

बीएलओ कार्य में संलिप्तता

वर्तमान में भी काफी संख्या में शिक्षकों को बीएलओ कार्य में लगाया जाता है, जिससे वर्ष के कुल दिनों का एक बड़ा भाग इस कार्य में व्यतीत हो जाता है। इसे शिक्षण के लिए हितकर नहीं कहा जा सकता। इसके अतिरिक्त अन्य कई कारण हैं, जो शिक्षण कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं।

विषयवार शिक्षकों की कमी

प्रदेश के मध्य एवं उत्क्रमित विद्यालय में कक्षा 6 से 8 के लिए विषयवार शिक्षकों की कमी है। अधिकांश पद रिक्त पड़े हैं। कार्यरत अहर्ताधारी शिक्षकों की इन पदों पर प्रोन्नति लंबित रखे जाने के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है। विभाग स्तर से आदेश निकलने के बावजूद जिलों में प्रोन्नति कार्य को नहीं किया जाना घोर आश्चर्य का विषय है।

प्रधानाध्यापक विहीन हुए विद्यालय

विद्यालय प्रोन्नति को लंबित रखे जाने के कारण राज्य के 3,299 पद हेडमास्टर के खाली है। राज्‍य के 96% मध्य विद्यालय प्रधानाध्यापक विहीन हैं। यह विद्यालय व्यवस्था के प्रतिकूल है। राजधानी रांची सहित 16 जिला में एक भी प्रधानाध्यापक नहीं है। इसका प्रतिकूल असर शिक्षा व्यवस्था में पड़ता है।

शिक्षकों को एमएसीपी लाभ मिले

शिक्षकों के लिए एमएसीपी लाभ का स्वीकृति प्रदान करना चाहिए। क्योंकि केंद्र एवं राज्य के अन्य सभी कर्मियों के लिए पूरे सेवाकाल में 3 वित्तीय लाभ देने के लिए सुनिश्चित योजना लागू है। प्रदेश के शिक्षकों को भी यह लाभ मिलना चाहिए।

स्‍कूलों में पद का सृजन हो

वर्ष 2003 के बाद से अब तक राज्‍य के हजारों प्राथमिक विद्यालयों को मध्य विद्यालय में उत्‍क्रमित कर दिया गया। हालांकि इन विद्यालयों में आज तक मध्य विद्यालय के अनुरूप स्नातक प्रशिक्षित शिक्षक एवं प्रधानाध्यापक के पद सृजित नहीं किए जा सके। परिणाम स्वरूप मध्य विद्यालय होते हुए भी यह विद्यालय आज तक प्राथमिक विद्यालय की क्षमता अनुरूप ही संचालित हो रहे हैं। यह मूलभूत आवश्यकताओं के प्रतिकूल है। इन विद्यालयों में तत्‍काल पद सृजन की दिशा में आवश्यक कार्रवाई किया जाना छात्रों के हित में होगा।

अंतर जिला स्थानांतरण नीति अपूर्ण

संशोधित स्थानांतरण में भी अंतर जिला स्थानांतरण की नीति संकुचित और जटिलता है। इससे शिक्षकों के अपने गृह जिले में पदस्थापन का अवसर नहीं मिलता है। बहुत ही सीमित दायरे में अंतर जिला स्थानांतरण का प्रावधान लाया गया है। इसमें क्षेत्रीय भाषा, गृह जिला आरक्षण के नियम को शिथिल करना होगा। साथ ही, मैचुअल ट्रांसफर का एक बार अवसर  देना होगा। इसके बाद ही शिक्षकों का अंतर जिला स्थानांतरण संभव हो पाएगा।

ऊर्दू शिक्षकों को गैर योजना मद में लाएं

प्रदेश के करीब 800 उर्दू शिक्षक योजना से गैर योजना में परिवर्तन की बाट जोह रहे हैं। उनको वेतन निकासी में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस दिशा में जल्‍द से जल्‍द कार्रवाई किये जाने की जरूरत है।

नई शिक्षक नियुक्ति नियमावली पर विचार

नई शिक्षक नियुक्ति नियमावली में भविष्य में नियुक्त होने वाले शिक्षकों का वेतनमान निम्न स्तर का कर दिया गया है। यह राज्य कर्मियों के लिए केंद्रीय वेतनमान की स्वीकृति के सिद्धांतों के प्रतिकूल है। नई शिक्षा नीति में निर्धारित शिक्षक पात्रता एवं अहर्ता के मानक के अनुरूप नहीं है। नियुक्त होने वाले राज्य के युवाओं के लिए उत्साहजनक नहीं है। इस पर पूर्ण विचार अपेक्षित है। इससे झारखंड के प्रतिभा का पलायन होगा। झारखंड के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित होना पड़ेगा।