कैदियों की स्थिति पर पीएसआई की रिपोर्ट में हुए कई खुलासे

देश नई दिल्ली
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नई दिल्ली। भारत में अदालत और अस्पतालों तक पहुंचने वाले कैदियों की संख्‍या में 65% और 24% की गिरावट आई है। मौत की संख्‍या बढ़ी है। इसका खुलासा प्रिजन स्टैटिस्टक्स इंडिया (पीएसआई), 2020 में प्रकाशित रिपोर्ट में हुआ है। यह दिसंबर, 2021 में प्रकाशित हुई है। भारत सरकार की इकाई नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो द्वारा समय-समय पर पीएसआई का प्रकाशन किया जाता है। पीएसआई में जनवरी 2020 से दिसंबर 2020 तक के आंकड़े प्रस्तुत किये गए हैं।

न्यायिक अधिकारियों का दौरा

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) ने पीएसआई 2020 का विश्लेषण किया है। इससे पता चलता है कि अदालतों में कैदियों की पेशी 2019 में लगभग 44.51 लाख से कम होकर 15.49 लाख हो गई। 2020 में कैदियों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच भी प्रभावित हुई। चिकित्सा उपस्थिति के लिए कैदियों द्वारा की गई यात्राओं की संख्या, 2019 में 4.77 लाख से घटकर 2020 में 3.62 लाख रह गई। चिकित्सा कर्मियों का जेल दौरा भी 2019 में 24,524 से कम होकर 2020 में 20,871 रह गया। न्यायिक अधिकारियों का दौरा 2019 में 16178 से घटकर 2020 में लगभग आधा 9,257 रह गया।

स्थिति में सुधार नहीं

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट की मुख्य संपादक सुश्री माजा दारूवाला ने कहा कि पीएसआई 2020 महामारी की हालत में जेलों की स्थिति की एक गंभीर तस्वीर प्रस्तुत करता है। इन संस्थानों में भीड़-भाड़ कम करने और इन भीड़-भाड़ वाली जगहों पर संक्रमण फैलने की आशंका के कारण छूत के जोखिम को कम करने की कोशिशों के बावजूद इन संस्थानों की समग्र स्थिति में सुधार नहीं हुआ है।

क्षमता से ज्यादा भीड़

वर्ष 2020 में गिरफ्तारियां लगभग 9 लाख ज्यादा हुईं। दिसंबर 2020 में जेल में कैदियों की पूरी संख्या के मामले में जेल की आबादी 1.5% बढ़कर 481,387 से 488,511 हो गई। वर्ष के दौरान जेलों में प्रवेश करने और छोड़ने वालों की संख्या 2019 में 19.02 लाख से गिरकर 2020 में 16.31 लाख हो गई। दिसंबर 2020 तक राष्ट्रीय स्तर पर क्षमता से ज्यादा 18% थी। यह पिछले वर्ष की तुलना में 2 प्रतिशत अंक की मामूली कमी थी। यह आंकड़ा 1,306 जेलों में राष्ट्रीय औसत है।

नौ राज्‍यों में औसत से अधिक

नौ राज्यों में भीड़भाड़ की दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। इस भीड़ का मुख्य कारण ‘विचाराधीन कैदियों’ की उपस्थिति है। उनकी हिस्सेदारी दिसंबर 2019 में 69% से बढ़कर दिसंबर 2020 में 76% हो गई है। यह दर्शाता है कि प्रत्येक 1 दोषी कैदी के लिए 3 लोग हिरासत में हैं, जो ‘जांच, पूछताछ या मुकदमे’ की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वर्ष, 2016 में जेल की आबादी में विचाराधीन कैदियों की हिस्सेदारी 68% थी।

3 में से 1 कर्मचारी पद रिक्त

देश भर में और यह महामारी की अवधि के बावजूद चिकित्सा अधिकारी और कर्मचारियों की कमी बनी हुई है। कुछ राज्यों में उनकी संख्या वास्तव में कम हो गई है। राष्ट्रीय स्तर पर, चिकित्सा कर्मचारियों और अधिकारियों की रिक्तियां लगभग 33% हैं। प्रत्येक 3 में से 1 पद भरा नहीं गया है। देश की जेलों में लगभग 489,000 कैदियों की सेवा के लिए 797 चिकित्सा अधिकारी थे। इसका मतलब है कि प्रत्येक चिकित्सा अधिकारी औसतन 613 कैदियों की देखभाल कर रहे थे। हालांकि, मॉडल जेल मैनुअल 2016 के अनुसार प्रत्येक 300 कैदी के लिए एक चिकित्सा अधिकारी की आवश्यकता है। 17 राज्यों में स्वीकृत संख्या इस मानदंड को पूरा नहीं करती है। केवल 9 राज्य  ही अपने चिकित्सा अधिकारी के रिक्त पदों को कम करने में सफल रहे हैं।

पिछले साल से अधिक मौत

जनवरी से दिसंबर 2020 तक कुल मौतें पिछले वर्ष के 1764 से बढ़कर 1887 हो गईं। मौतों को ‘प्राकृतिक’ ‘अप्राकृतिक’ और ‘कारण ज्ञात नहीं’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है और कोविड से संबंधित मौतों को अलग नहीं किया गया है।

वीडियो कांफ्रेंसिंग सुविधाएं

वीडियो कांफ्रेंसिंग सुविधा से लैस जेलों की औसत संख्या 2019 में 60% से बढ़कर 2020 में 69% हो गई। 13 राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों  की जेलों में 100% कवरेज था। इसके विपरीत 6 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों  में आधे से भी कम जेलें इस सुविधा से युक्त थीं। 142 जेल वाले तमिलनाडु में वीसी सुविधा के साथ केवल 10% या 14 जेल थे। लक्षद्वीप की 4 जेलों में से किसी में भी यह सुविधा उपलब्ध नहीं थी।