पत्रकार और लेखक राधाकृष्‍ण विश्‍वकर्मा की आई तीसरी किताब

झारखंड
Spread the love

रांची। पत्रकार और लेखक राधाकृष्‍ण विश्‍वकर्मा ‘उद्भ्रांत’ की तीसरी कविता संग्रह प्रतिबिंब-2 प्रकाशित हुई है। करीब तीन दशक के बाद उनकी यह रचना आई है। पहली रचना प्रतिबिंब भाग-1 वर्ष 1992 में और दूसरी 1993 में कहानी संग्रह ‘यह सच नहीं है’ प्रकाशित हुई थी।

उनकी इस पुस्तक में विभिन्न सामाजिक कुरीतियों से संबंधित रचनाएं हैं। हल्‍के शब्‍दों में इसपर वार करते हैं। इन रचनाओं में मुझे मत मारो, चेहरे पर चेहरा, लूटता बचपन, किशोर अपराधी जैसी कविताएं भी शामिल हैं। नारी अस्मिता, कन्या और करियर, शादी ब्याह की असलियत, स्वाबलंबी बेटियां, गोरी-काली बीबी आदि हैं।

लेखक ने अपनी कविता के माध्‍यम से राजनीति पर भी चोट किया है। राजनीति से रू-ब-रू कराती हुई राजनितिक वंशवाद, चुनाव वाले बाबू, नोटबंदी आदि रचनाएं हैं।

इसी तरह सीनियर सिटीजन एवं प्रौढ़ा, बुजुर्गों से संबंधित-अब बन गया हूं, सीनियर-सिटीजन, वृद्ध-चौपाल, आश्रय की तलाश आदि हैं। देशभक्ति सहित पत्रकारिता, मानव अंतरवेदना से संबंधित अनुभव पर आधारित कई कविताएं हैं।